मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए बीजेपी और कांग्रेस के नेता लगातार तैयारियों में जुटे हैं। लेकिन इन दोनों पार्टियों के लिए नई चुनौती बनी हुई है। चुनौती प्रदेश में अन्य पार्टियों का बढ़ता दबदबा है। जिसका वजूद पहले एमपी में नहीं था।
- बीजेपी और कांग्रेस दोनों की बढ़ सकती है परेशानी
- दोनों दलों के सामने आया नया ‘संकट’
- नए दलों की एंट्री से किसे होगा लाभ किसे नुकसान
- मप्र की सियासत में नए दलों का बढ़ता दबदबा
ऐसी पार्टियों की इस सूची में आम आदमी पार्टी के साथ औवेसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल मुस्लिमीन और भारत राष्ट्र समिति बीआरएस जैसे सियासी दल शामिल हैं। साथ ही सपा और बसपा की भी नजर एमपी की उन सीटों पर है, जो यूपी की बॉर्डर से लगी हुई हैं। यूपी से सटे एमपी क्षेत्र में इन दोनों पार्टियों का दबदबा बहुत ज्यादा है। जीत भले न मिले लेकिन इतना तय है कि ये सभी दल अगर चुनावी मैदान में उतरते हैं तो कहीं बीजेपी तो कहीं कांग्रेस को नुकसान पहुंचाएंगे। जिसमें सबसे ज्यादा नुकसान कांग्रेस को होगा।
प्रदेश के मुस्लिम वोटर्स पर औवेसी की नजर
दरअसल साल 2011 की जनगणना के अनुसार राज्य में मुसलमानों की आबादी 6.6 फीसदी है। औवेसी की पार्टी एआईएमआईएम मुस्लिम आबादी के दम पर पिछले साल निकाय चुनाव के जरिए एमपी की राजनीति में पहली बार दस्तक दे चुकी है। निकाय चुनाव में उसने राज्य की कुछ पार्षद सीटों पर जीत भी हासिल की है। जिसके बाद से ही पार्टी नेताओं के हौसले बुलंद है। एआईएमआईएम के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी मप्र की चुनिंदा सीटों पर अपने प्रत्याशी को उतारने की तैयारी में लगे हुए हैं।
क्या वोट कटवा साबित होगी AAP
आम आदमी पार्टी भी कांग्रेस के लिए वोट कटवा साबित हो सकती है। पिछले निकाय चुनाव में आम आदमी पार्टी ने उम्मीद से बेहतर प्रदर्शन किया था। निकाय चुनाव में सिंगरौली महापौर की सीट जीतने के साथ ही आम आदमी पार्टी के एमपी में 17 पार्षद जीतकर आए हैं। जिससे आम आदमी पार्टी के संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के भी हौसले बुलंद हैं। केजरीवल एमपी की सभी विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान कर चुके हैं। जिससे बीजेपी ही नहीं कांग्रेस के कर्णधारों के माथे पर भी चिंता की लकीरें दिखाई देने लगी हैं। राज्य के बड़े शहरों भोपाल, इंदौर, जबलपुर के अलावा राऊ-महू जैसे कस्बाई क्षेत्र में भी अल्पसंख्यकों की संख्या बहुत ज्यादा है। इन सभी के अलावा राज्य में दो दर्जन सीटें ऐसी हैं जहां अल्पसंख्यक समुदाय के 30 से 40 हजार वोटर्स हैं। मोपाल मध्य में 1.11 लाख, भोपाल उत्तर 87 हजार, बुरहानपुर में 96 हजार, जबलपुर पूर्व 77 हजार, इंदौर 5 नंबर सीट पर 69 हजार तो भोपाल की नरेला विधानसभाा क्षेत्र में 68 हजार मुस्लिम मतदाता हैं। इसी तरह रतलाम सीट पर करीब 51 हजार मुस्लिम वोटर्स हैं। मध्यप्रदेश विधानसभा की करीब 36 सीटें ऐसी है जहां मुस्लिम मतदाता चुनाव में निर्णायक साबित होते हैं। हालांकि मौजूदा दौर में इन सीटों पर बीजेपी और कांग्रेस की चुनावी स्थिति को देखे तो बराबर नजर आ रही है। पिछले 2018 के विधानसभा चुनाव की बात करें तो प्रदेश की 33 विधानसभा सीटों में से बीजेपी के पास 18 सीटें थीं। जबकि 15 कांग्रेस के खाते में रही। लेकिन निकाय चुनाव के नतीजे से ये दोनों दल प्रभावित है। क्योंकि निकाय चुनाव में ओवैसी की पार्टी ने बुरहानपुर और उज्जैन में कांग्रेस के समीकरण को बिगाड़ दिया।
प्रदेश में AAP का बढ़ता जनाधार
आम आदमी पार्टी भी प्रदेश की सभी 230 सीटों पर चुनाव लड़ने का एलान कर चुकी है। आप की प्रदेश इकाई ने बताया कि फिलहाल पार्टी राज्य के शहरी क्षेत्र में ही चुनाव लड़ेगी। केजरीवाल की पार्टी ने पिछले साल के निकाय चुनाव में सिंगरौली महापौर के सीट पर अपना कब्जा जमाया है। साथ ही पार्टी ने राज्य के 17 पार्षद सीटों पर जीत हासिल किया है। पार्टी यदि केवल शहरी क्षेत्र में ही अपने प्रत्याशी को उतारती है तो बीजेपी और कांग्रेस के जनाधार में सेंध लगना तय माना जा रहा है। इसका नुकसान भी राज्य की दो प्रमुख पार्टियों को ही होगा। कांग्रेस के लिए आम आदमी पार्टी पहले से संकट के तौर पर रही है। पहले दिल्ली और उसके बाद पंजाब में कांग्रेस को ‘आप’ से ही झटका लगा है। इसलिए कांग्रेस भी ‘आप’ के हर एंगल पर काम कर रही है।