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Home शहर और राज्य मध्य प्रदेश

MP assembly elections 2023:बीजेपी-कांग्रेस के एजेंडे में आदिवासी!

DigitalDesk by DigitalDesk
November 16, 2022
in मध्य प्रदेश, मुख्य समाचार, राजनीति
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MP assembly elections 2023:बीजेपी-कांग्रेस के एजेंडे में आदिवासी!
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फोकस में जनजातीय समुदाय! 47 सीट आरक्षित, 84 पर सीधा प्रभाव

मध्य प्रदेश में साल 2023 में विधानसभा चुनाव होना हैं। इससे पहले बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही दल अपनी अपनी तैयारी में जुटे हुए हैं। 2018 में विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने अनुसूचित जाति जनजाति वर्ग से मिले सपोर्ट से सरकार बनाई थी। हालांकि 15 महीने बाद ये सरकार गिर गई। उस समय ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस का हाथ छोड़कर बीजेपी का दामन थाम लिया था। अब 2023 के चुनाव में जुटी कांग्रेस के सामने बड़ी चुनौती ये है कि उसे सिंधिया गुट से भी दो दो हाथ करना होगा। ऐसे में बीजेपी ने आदिवासी मतदाताओं पर डोरे डार रही है।

मध्य प्रदेश में 15 नवंबर को बिरसा मुंड की जयंती पर पेसा एक्ट लागू कर दिया गया है। प्रदेश के शहडोल जिले में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की मौजूदगी में आयोजित जनजातीय गौरव दिवस कार्यक्रम में जनजातीय समुदाय के हित में पेसा एक्ट को लागू किया गया। कार्यक्रम में मौजूद प्रदेश के सीएम शिवराज सिंह चौहान पेसा एक्ट की 5 प्रमुख बातें भी बताईं। प्रदेश में लागू हुए पेसा एक्ट के तहत स्थानीय संसाधनों पर स्थानीय अनुसूचित जातिए जनजाति के लोगों की समिति को अधिकार दिए जाएंगे। इससे अनुसूचित जाति और जनजाति वाली ग्राम पंचायतों को सामुदायिक संसाधन जैसे जमीन, खनिज संपदा, लघु वनोपज की सुरक्षा और संरक्षण का अधिकार मिल जाएगा।
दररअसल आदिवासियों की सालों से उठ रही मांग पेसा एक्ट को लागू कर बीजेपी ने विधानसभा चुनाव से पहले अपना ट्रम्प कार्ड चल दिया है। यह कानून मध्यप्रदेश में आदिवासियों के अधिकारों को बढ़ाएगा। मप्र में आदिवासी जनसंख्या बाहुल्य राज्य है। ऐसे में आदिवासी परम्पराए रीतिण्रिवाजोंए संस्कृति का संरक्षण के लिए यह एक्ट बनाया गया है तो इस पर सियासी बयानबाजी भी तेज हो गई है। किस तरह बीजेपी कांग्रेस एक दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं देखिए एक रिपोर्ट।

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1996 में लागू किय था पेसा एक्ट

देश में पेसा एक्ट को 1996 में लागू किया गया था। इसका पूरा नाम पंचायत एक्सटेंशन टू दि शेड्यूल एरियाज एक्ट है। इस कानून को लाने का उद्देश्य अनुसूचित क्षेत्र और आदिवासी क्षेत्रों में रह रहे लोगों के लिए ग्राम सभा, स्वशासन को बढ़ावा देना है। यह कानून आदिवासी समुदाय को स्वशासन की खुद की प्रणाली पर आधारित शासन का अधिकार प्रदान करता है। यह एक्ट ग्राम सभा को विकास योजनाओं को मंजूरी देने और सभी सामाजिक क्षेत्रों को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने का अधिकार देता है। इस कानून के तहत आदिवासियों को जंगल के संसाधनों का समुचित उपभोग करने का अधिकार मिलता है।

जनजातीय वर्ग के अधिकार में वृद्धि

पेसा एक्ट के तहत अब गांव की जमीन और वन क्षेत्र के नक्शा, खसरा, बी 1 आदि ग्राम सभा को पटवारी और बीट गार्ड हर साल उपलब्ध कराएंगे। लोगों को रिकॉर्ड लेने के लिए बार बार तहसीलों के चक्कर नहीं काटने पड़ेंगे। राजस्व अभिलेखों में कोई गलती पाई जाती है, तो ग्राम सभा को उसमें सुधार के लिए अपनी अनुशंसा भेजने का पूरा अधिकार होगा। अधिसूचित क्षेत्रों में बिना ग्राम सभा की सहमति के किसी भी प्रोजेक्ट के लिए गांव की जमीन का भू अर्जन नहीं किया जाएगा। गैर जनजातीय व्यक्ति या कोई भी अन्य व्यक्ति छल कपट से बहला फुसलाकर, विवाह करके जनजातीय लोगों की जमीन पर गलत तरीके से कब्जा करने नहीं कर सकेगा। फिर भी कोई जमीन खरीदने की कोशिश करे तो ग्राम सभा को हस्तक्षेप करने का पूरा अधिकार होगा। ग्राम सभा को कब्जा किए जाने या खरीदारी की बात पता चलती है तो वह उस भूमि का कब्जा फिर से जनजातीय व्यक्ति को दिलवा सकेगी। साथ ही ग्राम सभा को ऐसा करने में कोई कठिनाई होती है तो वो भूमि का कब्जा वापस दिलाने के लिए मामले को उपखंड अधिकारी को भेज सकेगी। अधिसूचित क्षेत्रों में ग्राम सभा की अनुशंसा के बिना खनिज के सर्वे, पट्टा देने या नीलामी की कार्यवाही नहीं की जा सकेगी। खनिज पट्टों की स्वीकृति में अनुसूचित जनजाति की सहकारी सोसायटियों, महिला आवेदकों और पुरूष आवेदकों को अपनी अपनी श्रेणियों में प्राथमिकता दी जाएगी।

विधानसभा की 47 सीटों पर आदिवासी भारी

आंकड़ों के लिहाज से देखें तो साफ समझ आ जाएगा कि बीजेपी आदिवासी वोट बैंक पर इतना जोर क्यों दे रही है। दरअसल में मध्य प्रदेश में आदिवासियों की आबादी पर नजर डालें तो यह दो करोड़ से ज्यादा है। यह दो करोड़ से ज्यादा आदिवासी प्रदेश की कुल 230 विधानसभा सीटों में से 87 सीटों पर प्रभावी भूमिका में हैं। यानी इन सीटों पर आदिवासी वोट हार या जीत तय कर सकते हैं। इसमें भी खास बात यह है कि इन 87 विधानसभा सीटों में से 47 सीटें आदिवासियों के लिए आरक्षित हैं। यही वजह है कि बीजेपी का पूरा फोकस आदिवासी वोट बैंक पर है। प्रदेश में आदिवासियों की आबादी दो करोड़ के करीब है। इसी कारण बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही दल आदिवासी वोटर्स को साधकर रखना चाहते हैं। 2018 के चुनाव में कांग्रेस को 47 सीटों में से 30 पर जीत मिली थी।

विपक्ष ने खडे़ किये सवाल

पेसा एक्ट के लागू होने से पहले विपक्ष ने सरकार पर सवाल खड़े करना शुरू कर दिया। नेता प्रतिपक्ष डॉक्टर गोविंद सिंह ने कहा विधानसभा चुनाव सामने हैं। इसलिए बीजेपी आदिवासियों पर डोरे डाल रही है। बीजेपी सरकार के लिए आदिवासी वर्ग केवल और केवल वोट बैंक से ज्यादा कुछ नहीं है। मध्य प्रदेश में 18 साल से बीजेपी की सरकार है लेकिन कभी आदिवासी वर्ग के हित में पेसा कानून लागू नहीं किया गया। जबकि देश में अन्य 10 राज्यों में पेसा कानून लागू है।

बीजेपी ने दिया विपक्ष को जवाब

मध्यप्रदेश के गृहमंत्री डॉक्टर नरोत्तम मिश्रा ने कांग्रेस के आरोप पर पलटवार किया है। डाॅण्नरोत्तम मिश्रा ने कहा नेता प्रतिपक्ष का बयान उन्होंने भी सुना। सांप बिच्छू जैसी बात हो कर रहे थे। दरअसल जिस प्रकार के लोगों के साथ गिरे हुए रहते हैं। उनका इशारा उस तरफ रहा होगा। कमलनाथ पेसा एक्ट कानून का विरोध कर रहे हैं। जबकि हुआ अभी तक जनजाति वर्ग के वोट से जीते रहे हैं। जल जंगल जमीन पर ग्राम सभाओं को अधिकार मिल जाता है तो इससे अच्छी और क्या बात हो सकती है।

जयस और जीजीपी भी सक्रिय

आदिवासियों के बीच पैठ बनाना बीजेपी और संघ के एजेंडे में शामिल रहा है। यही वजह है कि बीजेपी की सरकार इस वर्ग पर खास फोकस करती हैं। बीजेपी के लिए कांग्रेस के साथ साथ वो उभरते हुए नए संगठन चुनौती हैं जो आदिवासियों में तेजी से पैठ बना रहे हैं। इनमें जयस और गोंडवाना गणतंत्र जैसे संगठन हैं। इन संगठनों की राजनीति हिस्सेदारी ने भी बीजेपी के माथे पर चिंता की लकीरें खींच दी हैं।

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