मध्यप्रदेश मौसम के साथ अब विधानसभा चुनाव की गर्माहट भी महसूस की जाने लगी है। नवंबर दिसंबर में चुनाव होना हैं। ऐसे में बीजेपी ने उन सीटों पर फोकस किया है, जो लंबे समय से कांग्रेस के कब्जे हैं। वहीं कांग्रेस ने भी उन सीटों के लिए खास रणनति बनाई है. जहां पिछले कई चुनाव से उस े हार का सामना करना पड़ा था।
- विधानसभा चुनाव में 6 महीने का समय
- बीजेपी ने ‘मिशन 103’ पर शुरू किया काम
- इन सीटों पर लंबे समय से कांग्रेस का कब्जा
- 103 में से 36 सीटों पर कांग्रेस के दिग्गज काबिज
- 36 सीटों पर जीत हासिल करना भाजपा के लिए चुनौती
- भाजपा ने ‘आकांक्षी विधानसभा’ नाम दिया
- गुजरात और यूपी वाला फॉर्मूला अपनाएगी भाजपा
- कांग्रेस का मिशन 66 पर जोर
- 66 सीटों पर पहले से प्रत्याशी तय कर सकती है कांग्रेस
- दिग्विजय सिंह लगातार कर रहे यहां बैठकें
- पदाधिकारियों, नेताओं और कार्यकर्ताओं की बैठकें
2018 और 2022 में भी नहीं जीत सकी बीजेपी यहां
बता दें राज्य में ऐसी करीब 103 सीटें हैं। जिन पर 2018 और इसके बाद 2020 में हुए उपचुनाव में पार्टी को हार का सामना करना पड़ा था। यही वजह है कि बीजेपी ने अब ‘मिशन 103’ पर काम शुरू कर दिया है। इन 103 सीटों में से 35 सीटों पर कांग्रेस के दिग्गज विधायक काबिज हैं। जिन पर जीत हासिल करना बीजेपी के लिए किसी चुनौती से कम नहीं। पार्टी ने इन सीटों को आकांक्षी विधानसभा नाम दिया है। इसके साथ ही गुजरात और यूपी के फार्मलू पर चलते हुए कांग्रेस के दिग्गजों की सीट पर जीत की रणनीति बनाई जा रही है।
कांग्रेस के दिग्गजों की सीट पर बीजेपी की रणनीति
आकांक्षी विधानसभा सीटों में पूर्व सीएम कमलनाथ का गढ़ छिंदवाड़ा, नेता प्रतिपक्ष डॉ. गोविंद सिंह का विधानसभा क्षेत्र लहार, गुना जिले की राघौगढ़ सीट जहां से दिग्विजय के बेटे जयवर्धन सिंह विधायक हैं। तो वहीं खरगोन जिले की कसरावद सीट जहां पर सुभाष यादव के बेटे सचिन यादव विधायक हैं। इसके साथ ही भोपाल की उत्तर विधानसभा सीट पर भी कांग्रेस विधायक आरिफ अकील टक्कर देने के लिए बीजेपी किसी बड़े चेहरे की तलाश में है। बता दें 2003, 2008 और 2013 में बीजेपी जीत दर्ज कर सत्ता पर काबिज हुई थी लेकिन कांग्रेस के दिग्गजों के इलाकों में बीजेपी जीतने में कामयाब नहीं हो सकी। इन सीटों को लेकर बनाई जा रही रणनीति को लेकर बीजेपी के नेता जीत को बड़े बड़े दावे कर रहे हैं। ऐसे में अब देखने वाली बात होगी कि बीजेपी की तमाम तैयारियां मतदाताओं को कितना प्रभावित करती हैं। क्या मध्यप्रदेश में बीजेपी का गुजरात और यूपी वाला फार्मूला कारगर साबित होगा, या 2018 की तरह एक बार फिर कांग्रेस सत्ता हासिल करने में सफल होगी। ये आने वाला वक्त ही बतायेगा।
कांग्रेस का ‘मिशन 66’ पर जोर
मध्यप्रदेश कांग्रेस ने भी चुनाव से पहले नई रणनीति पर काम शुरु कर दिया है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और पूर्व सीएम कमलनाथ खुद हर अभियान पर नजर रख रहे हैं। अब कमलनाथ ने पार्टी को नया टॉस्क दिया है। पार्टी की ओर से मिशन 66 की शुरूआत की है। दरअसल कांग्रेस की नजर भी उन सीटों पर है जहां पार्टी को पिछले कई चुनावों से पराजय का सामना करना पड़ रहा है। यह वे सीटें हैं, जहां पर कांग्रेस पिछले 25 साल से जीतने में कामयाब नहीं हो सकी है। बता दें कि कांग्रेस की राजनीतिक मामलों की कमेटी की लगातार बैठकें हो रही हैं। इन सीटों की जिम्मेदारी खुद दिग्विजय सिंह ने अपने कंधों पर ले ली है। वे लगतार यहां दौरा कर रहे हैं। पार्टी के स्थानीय नेताओं पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं के साथ मंत्रणा कर रहे हैं।
66 सीटों पर समय ये पहले तय होंगे कांग्रेस प्रत्याशी
माना जा रहा है कि कांग्रेस इन 66 सीटों पर पहले से उम्मीदवार घोषित कर सकती है। दरअसल ऐसा इसलिए किया जा रहा है ताकि प्रत्याशियों को तैयारी के लिए पर्याप्त समय मिल सके। पिछली बैठकों में कमलनाथ ने पार्टी कार्यकर्ताओं को नई गाइडलाइन में काम करने के लिए निर्देशित किया था। उन्होंने नेताओं से कहा था कि हारी हुई सीटों पर अपनी गतिविधियां बढ़ाएं, जनसंपर्क करें, बूथ स्तर पर कार्यकर्ताओं को सक्रिय किया जाए। बता दें ये सीटें वो हैं जो कि पिछली पांच पंचवर्षीय यानि कि 25 साल से जिन पर कांग्रेस लगातार हार रही है। वहां सबसे पहले उम्मीदवार घोषित किये जाएंगे। ऐसा इसलिए किया जा रहा है ताकि प्रत्याशियों को तैयारी के लिए पर्याप्त समय मिल सके। बता दें कांग्रेस चुनाव मामलों की कमेटी की ओर से तय किया है कि जिन सीटों पर कांग्रेस मजबूत है। वहां पार्टी बाद में फोकस करेगी पहले उन सीटों पर फोकस किया जाए जो कमजोर सीट हैं।