बांग्लादेश में तख्ता पलट के बाद भारत चीन और अमेरिका को साधने में कितना कामयाब हुआ हैं जो देश माने जाते हैं बांग्लादेश में तख्ता पलट के जिम्मेदार साथ ही।वहीं म्यांमार के विद्रोही गुट अरकान आर्मी की बांग्लादेश में घुसने की शुरू हो चुकी है। बांग्लादेश इसके लिए भारत को जिम्मेदार ठहरा रहा है।
- बांग्लादेश में तख्तापलट के बाद क्या ?
- अराजकता पर काबू कब तक ?
- US से युनूस का फोन-
- हिंदुओं के अत्याचार पर लगी फटकार
- चीन को साधने भारत कितना आगे ?
- अराकान आर्मी की बांग्लादेश में घुसपैठ
बांग्लादेश में जारी हिंसा के बीच भारत और चीन के विशेष प्रतिनिधियों की 23वीं बैठक 18 दिसंबर को हुई थी। जिसका नेतृत्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने किया था। इस बैठक से भारत को आशातीत सफलताएं भी मिलीं। नाथुला दर्रे से व्यापार की बात हो या फिर तिब्बत के रास्ते मानसरोवर की यात्रा इन सब मुद्दों पर सहमति बनीं जो 2020 के गलवान घाटी में सैनिकों के बीच हुई झड़प के बाद बंद थी। वहीं अगर बात करें अमेरिका की तो एस जयशंकर जैसे ही अपने 6 दिनों से अमेरिकी यात्रा के लिए उड़ान भरी अमेरिका ने बांग्लादेश के प्रमुख यूनुस को फोन लगाया। बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचार पर फटकार लगा दी। मोहम्मद यूनुस को मिमियाते हुए इस पर रोक लगाने का आश्वासन देना पड़ा। जिसे भारत को एक कूटनीतिक सफलता के रूप में देखा जा सकता है।
भारत-चीन, बीजिंग मीटिंग में क्या-क्या हुआ
- 1-भारत और चीन कई बिंदुओं पर सहमति जताई।
- 2-अक्टूबर 2024 के डिसएंगेजमेंट समझौते को लागू करने और सीमा क्षेत्रों में शांति और स्थिरता बनाए रखने की जरूरत बताई।
- 3-भारत और चीन के बीच सामान्य द्विपक्षीय संबंधों से सीमा मुद्दों को अलग करने पर सहमत बनी।
- 4-सीमा पार आदान-प्रदान और सहयोग को मजबूत करना।
- 5 _भारतीय तीर्थयात्रियों की तिब्बत यात्रा को फिर से शुरू करना
- 6_सीमा पार नदी सहयोग और नाथुला (सिक्किम) सीमा व्यापार को बढ़ावा देना।
- 7-सीमा मुद्दों को सुलझाने के लिए दोनों पक्षों के बीच विशेष प्रतिनिधियों की बैठक तंत्र को मजबूत करना।
दरअसल अमेरिका और चीन यह वही देश हैं जो बांग्लादेश में तख्ता पलट के लिए अप्रत्यक्ष रूप से जिम्मेदार माने जाते रहे हैं। यह भी माना जाता रहा है की दोनों देश भारत पर नजर बनाए रखने के लिए बांग्लादेश के बंदरगाहों का इस्तेमाल करना चाहते थे और शेख हसीना के रहते यह संभव नहीं हो पा रहा था। क्योंकि जहां अमेरिका सेंट मार्टिन द्वीप पर नियंत्रण कर बंगाल की खाड़ी में अपना पैर पसारने की इच्छा रखता है तो वहीं दूसरी ओर चीन भी बांग्लादेश के मोंगला बंदरगाह पर नियंत्रण कर वहां एक मिसाइल बेस कैंप स्थापित करना चाहता है। जिससे भारत पर नजर रखी जा सके।
बांग्लादेश में हो रहे विरोध और अराजकता से अंदर से खोखला होते बांग्लादेश पर अब एक और संकट मंडराने लगा है। यह संकट है म्यांमार के विद्रोही गुट अरकान आर्मी का। अराकान आर्मी ने हाल ही में बांग्लादेश से सटी सीमा पर महत्वपूर्ण क्षेत्र पर कब्जा कर लिया है। 10 दिसंबर 2024 को यह घोषणा की गई कि AA ने म्यांमार की जुंटा द्वारा मौंगडॉव टाउनशिप में रखी गई। अंतिम शेष सैन्य चौकी पर नियंत्रण हासिल कर लिया है। जिससे बांग्लादेश के साथ 270 किलोमीटर लंबी सीमा पर पूर्ण नियंत्रण स्थापित हो गया है। इस घटनाक्रम ने बांग्लादेश में चिंता बढ़ा दी है। जहां हिंसा और अस्थिरता का खतरा वहीं कुछ अपुष्ट खबरों में दावा किया गया है कि अराकान आर्मी बांग्लादेशी की सीमा के अंदर तक घुस गई है। हालांकि इस दावे की अभी तक पुष्टि नहीं हुई है लेकिन इस बाते से भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि अराकान आर्मी ने सीमा से निकटवर्ती इलाकों में कब्जा कर लिया है।
बांग्लादेशी सेना के पूर्व अधिकारी इसके लिए भारत को जिम्मेदार मन रहे हैं। उन्होंने भारत को धमकी भी दी है कि अगर भारत इन विद्रोहियों की मदद बंद नहीं करता तो परिणाम अच्छा नहीं होंगे जो भारत कभी भी बर्दाश्त नहीं करेगा।
आखिर क्या है अराकान आर्मी
अराकान आर्मी (AA) म्यांमार में स्थित एक जातीय सशस्त्र समूह माना जाता है। जो मुख्य रूप से रखाइन जातीय अल्पसंख्यक का प्रतिनिधित्व करता है। साल 2009 में स्थापित किये गये AA की ओर से उन रखाइन लोगों के लिए स्वायत्तता और अधिक अधिकार की लगातार मांग करते हुए संघर्ष किया किया जा रहा है, जिन्होंने म्यांमार सरकार के भेदभाव और हिंसा का सामना किया है। इस AA समूह ने हाल के वर्षों में विशेष रूप से फरवरी 2021 के दौरान म्यांमार में हुए सैन्य तख्तापलट के बाद प्रमुखता हासिल की। जिसने देश में मौजूदा संघर्षों और शक्ति संघर्षों को और अधिक बढ़ा दिया है।