लोकसभा चुनाव 2024 के दौरान झारखंड में एनडीए को खासी बढ़त मिली थी। एनडीए ने झारखंड विधानसभा क्षेत्र की 51 सीटों पर उस समय बढ़त हासिल की थी। लेकिन 6 माह बाद ही हुए विधानसभा चुनाव में अब इस आंकड़े को हेमंत सोरेन ने छू लिया है। कुछ इसी तरह के हालात महाराष्ट्र में भी नजर आई। झारखंड के जैसे हालात है। यहां इंडिया गठबंधन ने लोकसभा चुनाव में शानदार प्रदर्शन किया था। लेकिन विधानसभा चुनाव में महाराष्ट्र की तस्वीर बदल गई। ऐसे में अब बड़ा सवाल यह उठता है कि आखिर 6 माह में ही जनता ने यूटर्न क्यों ले लिया?
- महाराष्ट्र और झारखंड में 6 महीने में मतदाता का यूटर्न?
- महाराष्ट्र में NDA की सरकार
- INDIA ने बरकरार रखी झारखंड की सरकार
- लोकसभा चुनाव के समय इससे अलग थी तस्वीर
- झारखंड में बीजेपी का लोकसभा चुनाव में अच्छा प्रदर्शन,विधानसभा चुनाव में बदल गई तस्वीर
- महाराष्ट्र में इंडिया गठबंधन ने लोस चुनाव में किया अच्छा प्रदर्शन, विस चुनाव में बदल गई तस्वीर
दरअसल महाराष्ट्र के साथ झारखंड विधानसभा का जनादेश लोकसभा चुनाव 2024 से ठीक उलट हैं। इन दोनों राज्यों में महज 6 महीने में ही मतदाताओं ने बड़ा यूटर्न ले लिया है। कोयलांचल झारखंड में लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने बढ़त हासिल की थी। वहीं अब विधानसभा के चुनाव में हेमंत सोरेन गठबंधन को जीत मिली है।
महाराष्ट्र में 2024 के लोकसभा चुनाव के दौरान महाविकास अघाड़ी को अच्छी बढ़त मिली थी। लेकिन अब जब विधानसभा चुनाव हुए तो यहां महाविकास अघाड़ी को बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा। लोकसभा चुनाव में महाविकास अघाड़ी ने 31 सीटों पर विजय हासिल की थी। लोकसभा की 48 सीट में से 31 पर जीत दर्ज कर एमवीए के हौसले बुलंद थे। विधानसभा बार देखें तो एमवीए को राज्य की 31 लोकसभा क्षेत्र में आने वाली 151 सीटों पर बढ़त मिली थी। लेकिन महज 6 महीने में ही मतदाताओं ने यूटर्न ले लिया। अब महाविकास अघाड़ी में शामिल दल 3 अकों तक भी पहुंचे। महायुति के उम्मीदवारों ने मुंबई समेत सभी इलाकों में क्लीन स्विप किया है।
महाराष्ट्र में लोकसभा चुनाव के दौरान जो पार्टियां जीतती हैं, पिछले 20 साल से वहां के मतदाता उसी पार्टी की अपने राज्य में सरकार बनवाने का काम करते आए हैं। इस बार 2024 के चुनाव में तमाम उलटफेर के बाद भी बीजेपी केंद्र में जहां सरकार बनाने में सफल हुई तो वहीं इसका असर जनता के मूड पर भी देखने को मिला।
वहीं विधानसभा के इन चुनावों में विपक्ष यह बताने में विफल रहा कि आखिर महाराष्ट्र एकनाथ शिंदे सरकार को क्यों हटाया जाए?। महाराष्ट्र में विपक्ष गद्दारी को मुद्दा बनाने की कोशिशों में जुटा रहा, जिसे मतदाताओं ने नकार दिया। सीट बंटवारे को लेकर उद्धव और कांग्रेस के बीच हुई चिकचिक ने भी महाराष्ट्र में हार में बड़ी भूमिका निभाई है।
कांग्रेस विदर्भ में फेल पूरी तरह साबित हुई। वहां पार्टी के कद्दावर नेता अपना भी चुनाव हार गए और पार्टी को भी हरवा दिया। हिंदुत्व के मुद्दों के आगे महाराष्ट्र में जातिगत समीकरण कमजोर नजर आया। जनता जातिगत समीकरणों को छोड़ धर्म के मुद्दे पर मुखर नजर आ रही थी।
महिला वोर्टस ने ऐसे बदला चुनावी गेम
महाराष्ट्र की एकनाथ शिंदे सरकार ने महिला वोटर्स को साधने में सफलता हासिल की। सुरक्षा और महिला सम्मान जैसे मुद्दों पर सरकार ने महिलाओं को साधा। इससे वोट प्रतिशत पर भी असर पड़ा। अब कहा जा रहा है कि महाराष्ट्र में भी महिला वोटर्स ही इस बार चुनाव में गेमचेंजर बनी हैं।
इसी तरह की तस्वीर झारखंड में नजर आई। जहां लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने झारखंड की 14 में से 9 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल की तो इंडिया गठबंधन के खाते में सिर्फ 5 सीट की मिली। वहीं विधानसभा बार आंकड़ों को देखें तो लोकसभा चुनाव के समय विधानसभा की 51 सीटों पर बीजेपी को बढ़त मिली थी, लेकिन अब जब विधानसभा चुनाव के नतीजे आए तो उसमें बड़ा उलटफेर नजर आया। बीजेपी गठबंधन को 20 सीटें मिली। बीजेपी के साथ हुए इस खेल के पीछे के तीन प्रमुख कारण रहे हैं। हेमंत सोरेन के मुकाबले बीजेपी के पास कोई स्थानीय मजबूत चेहरा था ही नहीं। जिसके चलते बीजेपी मतदाताओं को साध नहीं पाई। चुनाव में हेमंत फैक्टर ही हावी रहा था। चुनाव में बीजेपी कलैक्टिव लीडरशिप के ही भरोसे अपना चुनाव लड़ती रही। झारखंड में बीजेपी ने आदिवासी के साथ मुस्लिम समीकरण को भी तोड़ने पर फोकस किया, लेकिन सफल नहीं हुई। वहीं झारखंड में भी महिला मतदाता फैक्टर बनकर उभरी। झारखंड की करीब 68 विधानसभा सीटों पर महिला मतदाताओं ने पुरुषों के मुकाबले अधिक वोटिंग की। जो नतीजे आए हैं इसका असर भी उनमें देखने को मिला। झारखंड में सीएम हेमंत सोरेन ने लोकसभा चुनाव के बाद मैया सम्मान योजना को लागू कर पूरा गेम चेंज कर दिया।
(प्रकाश कुमार पांडेय)