महाराष्ट्र में 2019 में सत्ता में आने के बाद देवेंद्र फडणवीस मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित हो चुके थे, लेकिन शिवसेना ने सीएम पद को लेकर पेच फंसा दिया था। शिवसेना में 2022 में टूट हुई। फडणवीस का इसमें अहम किरदार रहा था। 2024 तक उद्धव और उनकी पार्टी लगातार फडणवीस को निशाने पर लेती रही थी, लेकिन अब अचानक ही शिवसेना यूबीटी के नेता फडणवीस की शान में कसीदे पढ़ते नजर आ रहे हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर इसकी वजह क्या है?
- संजय राउत के बाद ठाकरे को अच्छे लगने लगे देवेंद्र फडणवीस
- अचानक क्यों अच्छे लगने लगे देवेन्द्र,3 वजहों में छिपा है इसका राज
- शिवसेना के मुख पत्र सामना में देवेंद्र फडणवीस की तारीफ
पहले महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से मुलाकात की और इसके बाद अब शिवसेना के मुख पत्र सामना में उनकी तारीफ भी कर दी। आखिरकार महाराष्ट्र के सियासी गलियारों में उद्धव ठाकरे के मन में क्या चल रहा है यह हर कोई जानना चाहता है। उनके सियासी स्टैंड को लेकर चर्चा होने लगी है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि पांच साल से भाजपा पर सियासी तौर पर मुखर रहने वाले उद्धव ठाकरे को अब सीएम देवेंद्र फडणवीस अचानक अच्छे क्यों लगने लगे हैं? वो भी तब जब उनकी पार्टी शिवसेना यूबीटी महाराष्ट्र में सबसे बड़े विपक्षी दल के रुप में काम कर रही है। बता दें विधानसभा की 288 सीटों वाले महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे की पार्टी के पास केवल 20 विधायक हैं। इन 20 विधायकों के दम पर वह राज्य में सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी होने का तमगा हासिल कर चुकी है।
क्या थी आखिर बीजेपी से अलगाव की वजह
साल 2019 में हुए महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में बीजेपी और शिवसेना संयुक्त ने गठबंधन में चुनाव लड़ा और बड़ी जीत दर्ज की थी। बीजेपी ने 105 तो शिवसेना ने 56 सीट जीती थी। ऐसे में बीजेपीकी ओर से देवेंद्र फडणवीस को सीएम का चेहरा घोषित किया था, लेकिन उस समय उद्धव ठाकरे और उनकी पार्टी ने सीएम पद को लेकर पेच फंसा दिया। उद्धव ठाकरे ने सीएम पद की मांग बीजेपी के सामने रख दी थी। जिसके बाद दोनों दलों के बीच गठबंधन टूट गया। फडणवीस महाराष्ट्र में पांच ही दिन के लिए मुख्यमंत्री रहे और बहुमत न होने से उन्हें कुर्सी छोड़नी पड़ी थी। इसके बाद उद्धव ठाकरे ने कांग्रेस एनसीपी का सहारा लिया और मुख्यमंत्री बन गए।
लेकिन 2022 में उद्धव के दल में भारी टूट हुई। एकनाथ शिंदे अपने समर्थक 40 विधायकों को लेकर एनडीए की शरण में चले गए। तब महाराष्ट्र में नई सरकार बनी और शिंदे मुख्यमंत्री बने। उस समय फडणवीस को उपमुख्यमंत्री बनाया गया था। उस समय शिवेसना को तोड़ने का बड़ा आरोप भी फडणवीस पर ही उद्धव गुट ने लगाया था। उस समय कहा गया था कि महाराष्ट्र में शिंदे के साथ समन्वय करने में देवेन्द्र फडणवीस ने ही बड़ी भूमिका निभाई थी। इसके बाद 2023 में शरद पवार की पार्टी भी टूट का शिकार हुई। 2024 में हुए लोकसभा चुनाव में इनकी बगावत के बाद भी शरद पवार और उद्धव ठाकरे के साथ मिलकर कांग्रेस गठबंधन में बेहतरीन परफॉर्मेंस किया। हालांकि विधानसभा चुनाव में बीजेपी गठबंधन ने बढ़त बनाई, फडणवीस इसके बाद एक बार फिर मुख्यमंत्री बनाए गए। अब उद्धव को फिर अच्छे क्यों लगने लगे फडणवीस ?
नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी पहली वजह
शिवसेना (यूबीटी) महाराष्ट्र विधानसभा में सबसे बड़े विपक्षी दल के रुप में चुनकर आई है, लेकिन इसके बाद भी उसके पास विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी को हासिल कर पाने के लिए जरूरी 10 फीसदी विधायक नहीं हैं। महाराष्ट्र विधानसभा में 288 सीट हैं, जिसमें से नेता प्रतिपक्ष के लिए 29 विधायक होना जरूरी है। फिलहाल उद्धव के दल के पास 20 विधायक ही हैं। उद्धव ठाकरे की ओर से आदित्य को विधायक दल का नेता नियुक्त कर दिया गया है। अब उद्धव की कोशिश है की उनका बेटे आदित्य को आधिकारिक रुप से नेता प्रतिपक्ष का दर्जा मिल जाए। दरअसल नेता प्रतिपक्ष को कैबिनेट मंत्री की तरह सुविधाएं मिलती हैं। लेकिन यह तभी संभव है जब सरकार इस पर राजी हो।ऐसे में सियासी गलियारों में अब उद्धव की ओर से की गई हालिया तारीफ को इससे भी जोड़कर देखा जा रहा है।
सिर पर हैं बीएमसी चुनाव
बृहन्मुंबई नगरपालिका के चुनाव अप्रैल 2025 में प्रस्तावित हैं। ऐसे में बीएमसी चुनाव से पहले ठाकरे परिवार अपना गढ़ बचाने की कवायद में जुट गया है। बता दें साल 1996 से अब तकयहां ठाकरे की ही पार्टी जीत रही है। विधानसभा चुनाव के बाद अब ठाकरे की नजर में मुंबई नगरपालिका चुनाव हैं। बता दें आर्थिक दृष्टिकोण से भी मुंबई नगरपालिका को काफी अहम माना जाता है। पिछली बार 2024-25 के लिए बीएमसी का कुल बजट करीब 59,954.75 करोड़ रुपए का था, जो गोवा और त्रिपुरा जैसे कई छोटे राज्यों के बजट से ज्यादा है।
पवार की रणनीति पर चलते उद्धव
महाराष्ट्र की राजनीति में शरद पवार को एक बड़ा चेहरा माना जाता है। पवार पक्ष में रहे अथवा विपक्ष में। सभी को साधकर वे चलते हैं। ऐसे में कहा जाता है कि शरद पवार की न तो किसी से सियासी दुश्मनी है और न ही किसी से ज्यादा सियासी दोस्ती है। ऐसे में कहा जा रहा है कि उद्धव ठाकरे भी पवार की रणनीति पर चलकर सबको साधने की राजनीति करने की कोशिश करते नजर आ रहे हैं। संभवत: यह भी एक वजह है कि फडणवीस को लेकर उद्धव और उनकी पार्टी सॉफ्ट दिख रही है।