आखिर महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव का मतदान भाी हो गया। अब 23 नवंबर का इंतजार है, जब चुनावी फैसला सुनाया जाएगा। मतदान के बाद एग्जिट पोल भी सामने आ गए, जिसमें मुकाबला महायुति की ओर जाता नजर आ रहा है। हालांकि पिछले कुछ चुनावों को देखें तो तमाम पूर्वानुमान और विश्लेषण ध्वस्त होते नजर आए हैं।
महाराष्ट्र के चुनाव में स्थितियां और अधिक उलझी हुई। रहीं। दरअसल पूरे चुनाव के दौरान महाराष्ट्र का माहौल कुछ ऐसा रहा है कि गहमागहमी के साथ भ्रम जाल भी बुना गया। मराठा सरदार शरद पवार की भूमिका इस चुनाव के बाद क्या होगी? इस पर भी मंथन होने लगा है।
दरअसल वे जिस खेमे में हैं फिलहाल उस खेमे के अनुकूल परिणाम आएंगे या नहीं यह दावे के साथ नहीं कहा जा सकता। एग्जिट पोल बीजेपी नेतृत्व वाले महायुति गठबंधन को 150 से 170 सीट मिलने का दावा करते नजर आ रहे हैं। लेकिन ये केवल पूर्वानुमान हैं, परिणाम नहीं। महाराष्ट्र की सियासत में एक मजबूत स्तंभ के रुप में पहचान बनाने वाले शरद पवार इस बार भी कुछ अजूबा फैसला ही करेंगे। महाराष्ट्र में उनका करीब चार दशकों से सियासी दबदबा रहा है। फिर चाहे वे मुख्यमंत्री रहे हों या सत्ता के पीछे की शक्ति के रुप में उनका काम करना। दो बार वे विपक्ष में भी रहे। 83 साल की उम्र में उन्हें अब अहसास होने लगा है कि शायद यह उनका आखिरी दांव है। शरद पवार यह भलीभाती जानते हैं कि महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के नतीजों से आने वाले महीनों में राष्ट्रीय राजनीति की दिशा तय होना है। महायुति गठबंधन को हार का सामना करना पड़ता है, तो इससे हरियाणा में हुई उसकी चुनावी जीत महज एक संयोग माना जाएगा। उसके भविष्य पर सवाल उठना शुरु हा जाएंगे। लोकसभा चुनाव में महाराष्ट्र में महायुति गठबंधन का प्रदर्शन ऐसा नहीं रहा था कि वह विधानसभा चुनाव में जीत का दावा कर सके, हालांकि चुनाव के दौरान बनी परिस्थितियों के बाद महायुति का मनोबल बढ़ा है।
वहीं शरद पवार की मेहनत के साथ, कांग्रेस, शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे वाले गुट को मिलाकर बने महाविकास अघाड़ी गठबंधन एमवीए को जीत मिनती है, तो उससे न केवल इंडिया गठबंधन मजबूत होगा। बल्कि निश्चित तौर पर भारतीय राजनीति के महारथी और विपक्ष के रणनीतिकार के रुप में शरद पवार मजबूत छवि के रुप में उभरेंगे।
महाराष्ट्र में तीन बार मुख्यमंत्री रहे शरद पवार को मराठा राजनेता के में पहचान मिली है। इसलिए बहुत कुछ दांव पर है। उम्र और स्वास्थ्य के चलते वे शारीरिक तौर पर भले कमजोर हों, लेकिन दिमाग पहले जैसा ही अब भी तेज है। सच कहा जाए तो एमवीए शरद पवार के ही दिमाग की उपज थी। गठबंधन में रहते 2019 का विधानसभा चुनाव जीतने के बाद जब संयुक्त शिवसेना और भाजपा सरकार बनाने के लिए सहमति पर पहुंचने में विफल रहे, तो शरद पवार ने किसी जादूगर की तरह एमवीए गठबंधन को सामने लाकर खड़ा कर दिया था। हालांकि उन्हें इसकी कीमत भी चुकाना पड़ा, जब तीन साल बाद भाजपा ने पहले एकनाथ शिंदे को तोड़ तो उसके बाद शिवसेना और फिर शरद पवार के भतीजे अजित पवार को तोड़कर एनसीपी की रीढ़ कमजोर कर दिया था।
(प्रकाश कुमार पांडेय)