महाकुंभ में त्रिवेणी संगम स्नान के लिए देश के कोने-कोने से करोड़ों श्रद्धालु पहुंच रहे हैं। मेले में देश-विदेश से पहुंचे साधु-संतों का भी अनोखा संसार देखने को मिल रहे हैं। नाम जप और सत्संग से श्रद्धालुओं को निहाल करते नजर आ रहे हैं। यह साधु संत 24 घंटे धूनी रमाए बैठे रहते हैं। महाकुंभ में कोई संत रबड़ी खिला रहे हैं तो कोई श्रद्धालुओं को सैर करा रहे हैं। संत बंगाली बाबा और बड़े बाबा के अनमोल वचन संगम तट पर धर्म और आध्यात्म के प्रति लोगों की आस्था बढ़ा रहे हैं।
- महाकुंभ में संतों का अद्भुत रंग
- सतों के संग, महाकुंभ के रंग
- कहीं कार वाले बाबा का करिश्मा
- तो कहीं रबड़ी वाले बाबा की धूम
- क्या चाबी वाले बाबा खोलेंगे सतयुग का दरवाजा!
- महाकुंभ में कांटों वाले बाबा का हठयोग
यूपी के प्रयागराज महाकुंभ में एक नहीं ऐसे कई अनोखे संत महात्मा और बाबा बैरागी देखने को मिल रहे हैं, जो महाकुंभ के बाद शायद नजर न आएं, ये अपनी दुनिया में खो हो जाते हैं। इसी कड़ी में कई अनोखे बाबा के नाम सामने आ रहे हैं। चाहे वे रूद्राक्ष वाले बाबा हों या भक्तों को एक अद्भुत प्रसाद बांटने वाले बाबा। इन्ही बाबाओं की महाकुंभ की एक झलक पाने के लिए लोग बेताब रहते हैं महाकुंभ में सबसे पहले जानते हैं M.TECH. वाले बाबा के बारे में…!
महाकुंभ में छाए एमटेक वाले बाबा
- 40 लाख का सालाना पैकेज छोड़ा ,बन गए साधू
- तीन लाख रूपये थी एक महीने की सैलरी
- मोह माया को छोड़ा और निरंजनी अखाड़े से जुड़े
- बन गए नागा सन्यासी
- इनका नाम है दिगंबर कृष्ण गिरी
- हरिद्वार में नागा साधुओं को देखा, और ले लिया संन्यास
- बाबा गिरी महाराज,एमटेक वाले बाबा
संगम नगरी प्रयागराज के महाकुंभ में इस समय देश-विदेश से तमाम साधु-संत पहुंचे हैं। अभी तक आईआईटी बाबा के बारे में सुना होगा। अब एमटेक वाले बाबा भी प्रसिद्ध हो रहे हैं। ये 40 लाख रुपए का अपना सालाना पैकेज छोड़कर संत बने हैं। वैसे इनकी महीने की सैलेरी तीन लाख से अधिक थी, लेकिन अब मोह माया छोड़ वो निरंजनी अखाड़े से जुड़ कर सन्यासी बन गए हैं। इनका नया नाम दिगंबर कृष्ण गिरी है। उनका कहना है जब दोस्तों संग हरिद्वार घूमने गए थे। तब उन्होंने नागा साधुओं को देखा था। तब से उनके मन में सन्यासियों के बारे में जानने की जिज्ञासा होने लगी। दिगंबर कृष्णा गिरी ने कर्नाटक यूनिवर्सिटी से एमटेक किया है। इनका जन्म तेलुगू ब्राह्मण परिवार में हुआ था। वह एसीसी बिड़ला और डालमिया के साथ कजारिया जैसी कंपनियों में काम कर चुके हैं। सन्यास से पहले वह 2010 में दिल्ली के कंपनी में जीएम के पद रह चुके हैं। वहां उनके अंडर में करीब 450 लोग काम भी करते थे।
अद्भुत प्रसाद बांटने वाले बाबा
- महाकुंभ में एक अद्भुत प्रसाद बांटने वाले बाबा
- रोज 120 किलो रबड़ी का प्रसाद बांट रहे
- श्रद्धालुओं को वितरित करते हैं रबड़ी
- यह रबड़ी बाबा का सेवा कार्य
- 2019 के महाकुंभ मेला से शुरू हुआ था
- अब यह निरंतर चलता आ रहा
- रबड़ी बाबा के दर्शन के लिए दूर-दूर से आते हैं भक्त
महाकुंभ में कई साधु संतों के कुटिया के सामने प्रसाद के रूप में अजब गजब चीजें दी जा रही शामिल हैं। इन्हीं में एक नाम श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणि से जुड़े गुजरात के सिद्धपुर पाटन महाकाली बीड़ मंदिर के महंत देव गिरि का भी नाम शामिल है। महंत देव गिरि के कुटिया के सामने प्रसाद के रूप में रबड़ी बांटी जा रही है। यही वजह है कि महंत देव गिरि अब रबड़ी बाबा के नाम से महाकुंभ में प्रसिद्ध हो गए हैं। श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणि से जुड़े और गुजरात के सिद्धपुर पाटन महाकाली बीड़ मंदिर के महंत देव गिरि जो अब रबड़ी बाबा के नाम से पहचाने जाते हैं उन्होंने बताया 2019 के कुंभ मेले में प्रयाजराज आए थे। उसी दौरान प्रसाद के रूप में रबड़ी बांटने का संकल्प लिया था। तब से यह सिलसिला लगातार जारी है। इस बार भी महाकुंभ की शुरुआत से ही वे रबड़ी का प्रसाद वितरण कर रहे हैं। प्रतिदिन 130 लीटर दूध से रबड़ी बनाई जाती है। दिनभर आश्रम में कड़ाही चढ़ी रहती है। पूरे दिन रबड़ी बनती और श्रद्धालुओं में बांटी जाती है। रबड़ी का प्रसाद बांटने की वजह से भक्तगण उन्हें प्रेमवश रबड़ी वाले बाबा कहने लगे हैं। महंत देव गिरि से रबड़ी का प्रसाद लेने के लिए महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान समेत देश के अलग अलग हिस्सों के श्रद्धालु उनके पास पहुंच रहे हैं।
महंत देव गिरि, रबड़ी वाले बाबा
- कार वाले बाबा
- महाकुंभ में आए कार वाले बाबा
- 50 साल पुरानी गाड़ी में रहते है बाबा
- गाड़ी से कर चुके हैं बद्रीनाथ-रामेश्वरम तक का सफर
- 35 साल पहले एक भक्त ने दी ये गाड़ी
- यह कार ही उनका घर और मंदिर
- गाड़ी को बाबा मानते है अपनी मां
- गाड़ी में एक तरफ त्रिशूल, एक तरफ घंटियां
- गाड़ी के अंदर अपने भगवान की स्थापना
महाकुंभ में एक कार वाले बाबा भी चर्चा में हैं। जिनकी कार की चर्चा में है। यह कार लगभग 50 साल पुरानी है। लगभग 35 साल पहले उनके भक्तों ने भेंट में कार दी थी। यह कार ही उनका घर और मंदिर है। इतना ही नहीं इसे वे अपनी मां मानते हैं। कार में एक तरफ त्रिशूल है तो एक तरफ घंटियां लगी है। फूल माला चढ़ी है। इतना ही नहीं गाड़ी पर लाउडस्पीकर भी लगा है और अंदर अपने भगवान की स्थापना की है। जबकि गाड़ी की छत पर सोने के लिए बेड की व्यवस्था भी है। गाड़ी में जरुरत का पूरा समान है। इस गाड़ी से वे पूरे भारत का भ्रमण कर चुके हैं।