उज्जैन में बाबा महाकाल के दर्शन को सभी जाते हैं। लेकिन कम ही लोग जानते है कि बाबा महाकाल की मान्यता और खासियत क्या है। आइए आज आपको बताते हैं कि कालों के काल महाकाल से जुड़े रहस्य
महाकाल का अर्थ
महाकाल के दो अर्थ होते हैं काल मतलब समय और काल का मतलब है मृत्यु
महाकाल को महाकाल इसलिए भी कहते है कि क्योंकि प्राचीन समय में विश्व में मानक समय का निर्धारण उज्जैन से ही होता था।
महाकाल शिवलिंग की कहानी
उज्जैन मेँ भगवान शिव राक्षण दूषण का अंत करने के लिए प्रकट हुए थे । भगवान शिव ने यहां दूषण राक्षस का वध किया और उज्जैन के लोगो के आग्रह पर उज्जैन में ही ठहर गए। दूषण के अंत करने के कारण इसे इसे महाकाल कहा
उज्जैन में कोई राजा रात नहीं रूकते
राजा विक्रमादित्य के बाद से कोई भी राजा उज्जैन में रात नही रूका क्योकि उज्जैन के राजा केवल महाकाल है । पौराणिक कथाओ के अनुसार राजा भोज के काल से उज्जैन में कोई राजा रात नही रूकता । अब ये मान्यता मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री के लिए भी मानी जाती है।
महाकाल दक्षिण मुखी है
देश के सभी शिवलिंगो की जलधारा उत्तर की ओर है लेकिन महाकाल की जलाधारी दक्षिण की ओऱ है । मान्यता है कि पृथ्वी पर सबसे प्रसिद्द बडी मान्यता महाकाल की है।
महाकाल की भस्म आरती
महाकाल की भस्म आरती का रहस्यमहाकाल की भस्म आरती के बारे में कहा जाता है जब से बाबा महाकाल उज्जैन आए तभी से भस्म आरती होती है।
कैसे शुरू हुई भस्म आरती
बाबा उज्जैन में दूषण राक्षस के वध के लिए आए ,उसका वध करके उसकी भस्म से उन्होने श्रृंगार किया । यही वजह है कि सुबह बाबा की भस्म आरती होती है।
पुजारी ने दी बेटे की बलि
कथाओ के मुताबिक एक बार उज्जैन के श्मशान में कोई शव नही जला तो पुजारी ने अपने बेटे की बलि दी और उसकी राख से बाबा की आरती की।
बाबा ने दिया जीवन दान
इससे भोले बाबा बहुत प्रसन्न हुए और पुजारी के पुत्र को वापस जीवनदान दिया । बताते हैं कि इसके बाद से बाबा की मान्यता और बढ़ती चली गई ।
अब ऐसे होती है भस्म आरती
बाबा की ये भस्म आरती ताजे मुर्दे की राख से होती थी लेकिन आजकल ये गाय के गोबर के कंडो से होती है।
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