महाकुंभ में 45 दिन का कल्पवास…कठिन साधना करते हैं कल्पवासी…ईश्वर के करीब पहुंचने का प्रयास है कल्पवास

Maha Kumbh 45 days Kalpavas Difficult Sadhana Kalpavasi

महाकुंभ का पावन अवसर श्रद्धा, तप और भक्ति का संगम है। हर 12 साल में आयोजित होने वाले इस दिव्य धार्मिक आयोजन में लाखों कल्पवासी माघ के पूरे माह प्रयागराज में त्रिवेणी के तट पर अपने जीवन को साधना, संयम और तपस्या के रंग में रंगते हैं। त्रिवेणी के तट पर शुरू हुए महाकुंभ में बड़ी संख्या में कल्पवासी महाकुंभ नगर पहुंच रहे हैं। यह साधक अपनी गृहस्थी को समेटकर गाड़ियों में जरूरत का सामान लादे यहां तपस्या के लिए आते हैं। तंबू में रहते हुए एक अलग ही जीवन जीते हैं।

कल्पवासियों के जीवन की शुरुआत घर से ही तपस्या की तैयारी के साथ होती है। अपनी आवश्यक वस्तुएं जैसे बर्तन, बिस्तर, लकड़ी, राशन के साथ पूजा की सामग्री लेकर प्रयागराज पहुंचते हैं। महाकुंभ नगर में अपने तंबू लगाकर कल्पवासी पूरे 45 दिनों तक रहने की तैयारी से पहुंच रहे हैं। इस दौरान वे अपनी पूरी दिनचर्या को साधना और संयम के नियमों के अनुसार वे ढाल लेते हैं। कल्पवासी सुबह सूर्योदय से पहले गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के त्रिवेणी पवित्र संगम में स्नान कर दिन की शुरुआत करते हैं। इसके बाद वे ध्यान, भजन और प्रवचन में समय बिताते हैं। एक समय भोजन करने वाले ये साधक साधारण आहार लेते हैं और अधिकतर समय भक्ति और साधना में लीन रहते हैं। उनकी दिनचर्या में कथा और सत्संग सुनना, दान-पुण्य करना और धार्मिक अनुष्ठान शामिल होते हैं। रात में तंबू में साधारण बिस्तर पर सोकर वे अगले दिन फिर से साधना के लिए तैयार होते हैं। माघ मास में कल्पवास का विशेष महत्व है।

ईश्वर के करीब पहुंचने का प्रयास है कल्पवास

प्रशगराज महाकुंभ केवल धार्मिक अनुष्ठानों का आयोजन नहीं होता है, बल्कि यहां पर एक ऐसा आध्यात्मिक अवसर लोगों को मिलता है जो उनमें ऊर्जा का संचार करता है। उन्हें नई दिशा प्रदान करता है। यहां कल्पवासी आत्मचिंतन और साधना करते हैं जिसके लिए उन्हें उचित माहौल मिलता है। यह तप कल्पवासी को ईश्वर के और करीब ले जाता है। महाकुंभ में कल्पवास करना महज एक धार्मिक परंपरा ही नहीं है, बल्कि यह संयम, त्याग और तपस्या का जीवंत उदाहरण भी है। कल्पवासी साधारण जीवन जीते है। और दिन में केवल एक बार ही भोजन करते हैं। पूरा दिन भक्ति में बिताने वाले ये साधक जीवन को एक नई दृष्टि से देखना सिखाता हैं।

मान्यता है कि इस दौरान संगम में स्नान और तपस्या करने से पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। कल्पवासियों के जीवन की शुरुआत घर से ही तपस्या की तैयारी के साथ होती है। अपनी आवश्यक वस्तुएं जैसे बर्तन, बिस्तर, लकड़ी, राशन, और पूजा सामग्री लेकर प्रयागराज पहुंचते हैं। महाकुंभ नगर में अपने तंबू लगाकर कल्पवासी 45 दिनों तक रहने की तैयारी से आते हैं। इस दौरान वे अपनी पूरी दिनचर्या को साधना और संयम के नियमों के अनुसार ढाल लेते हैं। कल्पवासी सुबह सूर्योदय से पहले गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के त्रिवेणी संगम में स्नान कर दिन की शुरुआत करते हैं। इसके बाद वे ध्यान, भजन और प्रवचन में समय बिताते हैं।

एक समय भोजन करने वाले ये साधक साधारण आहार लेते हैं और अधिकतर समय भक्ति और साधना में लीन रहते हैं। उनकी दिनचर्या में कथा और सत्संग सुनना, दान-पुण्य करना और धार्मिक अनुष्ठान शामिल होते हैं। रात में तंबू में साधारण बिस्तर पर सोकर वे अगले दिन फिर से साधना के लिए तैयार होते हैं। माघ मास में कल्पवास का विशेष महत्व माना गया है। ऐसाी मान्यता है कि कल्पवास के दौरान त्रिवेणी संगम पर स्नान और तपस्या करने से जातक के पापों का नाश होता है और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। कल्पवास से जातक की मनोकामनाएं भी पूरी होती हैं। उनके जीवन में सुख और शांति के साथ परिवार में समृद्धि आती है। धार्मिक मान्यता है कि कल्पवास की साधना से जहां आत्मशुद्धि होती है और व्यक्ति ईश्वर से जुड़ने का अनुभव करता है। बता दें महाकुंभ में कल्पवास के लिए श्रद्धालु पूरे भारत से प्रयागराज आते हैं। उत्तर प्रदेश और बिहार के साथ मध्य प्रदेश, राजस्थान और दक्षिण भारत तक से यहां श्रद्धालु इस पावन अवसर पर प्रयागराज पहुंच कर कल्पवास कर रहे हैं। कल्पवासियों वाहनों में लदा सामान यह साफ बताता है कि वे अपनी पूरी गृहस्थी लेकर यहां आए हैं।

 

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