जन्मदिवस पर मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में छोड़ा। लेकिन यह कवायद पूरी होती इससे पहले ही कूनों नेशनल पार्क की जमीन को लेकर विवाद शुरू हो गया। जमीन देने वाले पूर्व राजपरिवार ने आपत्ति जताई है। उनका कहना है कि शेर आते तो जंगल बचता। लेकिन चीतों के लिए पेड़ काटकर मैदान बनाए जा रहे हैं। ये गलत है। दरअसल चीतों के नये घर श्योपुर स्थित कूनो नेशनल पार्क की जमीन को लेकर यह विवाद खड़ा हुआ है। बता दें अभ्यारण्य के लिए दी गई जमीन को लेकर पालपुर राजघराने के वंशज कोर्ट पहुंच गए हैं। उन्होंने कोर्ट में याचिका दायर की है। इस पूरे मामले की अगली सुनवाई अब 19 सितंबर को होगी।
क्या कहते हैं राजघराने के वंशज
राजघराने के वंशजों ने जो की ओर से दी गई याचिका में कहा गया है कि यह जमीन शेरों को रखने के लिए दी गई थी। अब सेंचुरी में चीते बसाए जा रहे हैं। पालपुर राजघराने के वंशज ने एक वीडियो जारी किया है। जिसमें अपना दर्द सुनाते हुए कहा या तो हमें अपनी जमीन वापस दी जाए या सेंचुरी यानी अभयारण्य में शेर लाए जाएं। बता दें पालपुर राजघराने के वंशजों की ओर से श्योपुर जिले स्थित विजयपुर के अतिरिक्त सत्र न्यायालय में याचिका दायर की गई है। जिसमें ग्वालियर हाईकोर्ट के आदेश की अवमानना किये जाने की बात कही जारही है। राज परिवार का कहना है कि हाईकोर्ट ने उनकी याचिका और दावों के जवाब में अपना जवाब देने के जिला प्रशासन को निर्देश दिए थे। कलेक्टर ने हाईकोर्ट के सीधे आदेश के बावजूद उनकी याचिका का हवाला दिए बिना रिपोर्ट पेश कर भूमि अधिग्रहण करने का आदेश जारी कर दिये। इस मामले में अगली सुनवाई 19 सितंबर को विजयपुर एडीजे कोर्ट में होगी।
राजपरिवार का दावा
दरअसल राज परिवार की तरफ से दायर याचिका में कूनो नेशनल पार्क के अंदर प्रशासन द्वारा अधिग्रहित राज परिवार के किले और जमीन पर कब्जा वापस करने की मांग की गई है। पालपुर राजघराने का दावा है कि उन्होंने अपना किला और जमीन शेरों को बसाने के लिए सरकार को दी थी। न कि चीतों के लिए। शेर आते तो जंगल सुरक्षित रहता। अब चीतों के लिए खुद सरकार पेड़ काटकर मैदान बना रही है। आगे भी पेड़ काटे जाएंगे।
गिर से लाए जाना थे शेर
राज परिवार की तरफ से कहा गया है कि जब कूनो को गिर शेरों को लाने के लिए अभयारण्य घोषित किया गया था। ऐसे में में उन्हें अपना किला ही नहीं करीब 260 बीघा जमीन भी छोड़ना पड़ी। यही वजह है कि पालपुर राजघराने के वंशज अपनी पुश्तैनी संपत्ति वापस पाने के लिए राज्य सरकार के खिलाफ कोर्ट चले गए हैं। कूनो पालपुर पर शासन करने वाले परिवार के वंशज गोपाल देव सिंह का कहना है उन्होंने संपत्ति वापस लेने के लिए सत्र अदालत में याचिका दायर की है।
क्या है जमीन विवाद की जड़
बता दें पालपुर रियासत के वंशज शिवराज कुंवर, पुष्पराज सिंह, कृष्णराज सिंह, विक्रमराज सिंह, चंद्रप्रभा सिंह, विजया कुमारी ने 2010 में ही ग्वालियर हाईकोर्ट में याचिका दायर कर कूनो सेंचुरी के लिए भूमि अधिग्रहण का विरोध किया। उन्होंने इसके खिलाफ साल 2010 में याचिका दायर की थी। हाईकोर्ट ने भी याचिका में दिए गए तथ्यों पर संतोष जताते हुए कहा था कि ये मामला सेशन कोर्ट का है। सीधे हाईकोर्ट इस तरह के मामलों में सुनवाई नहीं की जा सकती। ऐसे में कोर्ट ने साल 2013 में श्योपुर कलेक्टर के माध्यम से इस मामले को विजयपुर सेशन कोर्ट में ले जाने के निर्देश दिए थे।
2013 से टालते रहे कलेक्टर
साल 2013 से श्योपुर में पदस्थ कलेक्टर इस मामले को टालते रहे। पालपुर रियासत के वंशजों ने इसके बाद 2019 में श्योपुर कलेक्टर के खिलाफ हाईकोर्ट की अवमानना की कार्रवाई शुरू की तब तात्कालीन कलेक्टर ने आनन.फानन में विजयपुर सत्र न्यायालय में मामला पहुंचाया। पालपुर रियासत का आरोप है कि कलेक्टर ने गलत जानकारी के साथ कोर्ट में मामला पेश किया। ऐसे में हाईकोर्ट के आदेश की अवमानना के खिलाफ राजघराने ने विजयपुर कोर्ट में याचिका लगाई। जिसकी पहली सुनवाई पिछले दिनों 8 सितंबर को की गई। इस मामले में अगली सुनलाई कूनो सेंचुरी में चीतों के आने के दो दिन बाद यानी 19 सितंबर को होगी।
राज परिवार की आपत्ति
राज परिवार का तर्क है कि उन्होंने शेर परियोजना के लिए जमीन दी थी। परियोजना के लिए जमीन अधिग्रहण की अधिसूचना 1981 में जारी की गइ। कूनो पालपुर सेंचुरी में करीब 220 बीघा सिंचित और उपजाऊ जमीन अधिग्रहित की गई। जिसके बदले में 27 बीघा असिंचित और ऊबड़.खाबड़ ही नहीं पथरीली जमीन उन्हें बदले में दी गई। 220 बीघा जमीन के बीच पालपुर रियासत का ऐतिहासिक किला भी है। इतना ही नहीं बावड़ी और मंदिर के साथ दूसरी सम्पत्ति भी है। जिसका अधिग्रहण में कोई उल्लेख नहीं किया गया। इतना ही नहीं इनका कोई मुआवजा भी नहीं दिया गया। इसके बाद भी सरकार उनकी इन सम्पत्तियों का उपयोग कर रही है। राजघराने के वंशज गोपाल देव सिंह ने तर्क देते हुए कहा कि पालपुर के राजा स्वर्गीय जगमोहन सिंह जो तीन बार विधायक भी रहे थे। उन्होंने इस सेंचुरी की खुद नींव इसलिए रखी थी कि कम से कम जानवर और जंगल सुरक्षित रहे, लेकिन समय के साथ उन्हें बेदखल कर दिया गया ये गलत है। गोपालदेव ने कहा उनकी प्रॉपर्टी की वैल्यू को शून्य माना गया। जिसके चलते उचित मुआवजा भी नहीं मिला। अब चीतों को लेकर आए हैं। जंगल को भी काट दिया गया। शासन उन्हें साल 2013 से लगातार टालता रहा है। उनका प्रकरण कोर्ट में भी नहीं पहुंच रहा है। उनका कहना है अभ्यारण्य का नाम पालपुर होना चाहिए। हटा कर कूनो नेशनल पार्क कर दिया। मुआवजा तो मिलना दूर की बात है उन्हें थोड़ी सी इज्जत भी नहीं दी गई। राजघराने के वंशजों का कहना है वे अकेले नहीं हैं। उनके साथ ही आसपास के करीब 400 से ज्यादा आदिवासी परिवारों को भी अभी तक उचित मुआवजे नहीं दिया गया है।