भारत भूमि साधु-संतों की तपस्थली के रूप में पहचानी जाती है। आमजन के लिए यह तप स्थल ही तीर्थ स्थल बन जाते हैं। ऐसे ही एक संत थे भटयाण के सियाराम बाबा। पूरे संसार को मोक्ष का संमार्ग दिखाने वाले महान संत आज मोक्षदा एकादशी के दिन परमज्योति में विलीन हो गए। उन्हें निमाड़ का संत भी कहा जाता था। बता दें सियाराम बाबा ने खरगोन जिले की नागलवाड़ी नाग मन्दिर के साथ अयोध्या में प्रभु श्री राम के मंदिर निर्माण में करोड़ों रुपये का दान किया था। देश के अनगिनत मन्दिर हैं जहां संत सियाराम बाबा ने दान की राशि अर्पित की। वे चढ़ावे में कभी भी 10 रुपये से अधिक नही लेते थे।
- निमाड़ को दिलाई पूरे भारत में आध्यात्मिक पहचान
- अद्भुत सादगी पसंद थे परमपूज्य संत शिरोमणि 1008 सियाराम बाबा
- मोक्षदा एकादशी के दिन संत श्री सियाराम बाबा ने त्यागी देह
- संत श्री सियाराम बाबा ने त्यागी देह
- 110 साल की उम्र में ली अंतिम सांस
- दान में लेते थे केवल दस रुपये
- 12 साल की उम्र में किया था मौन धारण
- मौनव्रत खोला तो पहला शब्द मुंह से सियाराम ही निकला
प्रसिद्ध संत श्री सियाराम बाबा जब 12 साल के थे तब से उन्होंने मौन व्रत धारण कर लिया था। यह कोई नहीं जानता था सियाराम बाबा कहां से आए थे। बाबा ने जब अपना मौन व्रत तोड़ा तो उनके मुंह से पहला शब्द सियाराम निकला था। इसके बाद से ही निमाड़ में उन्हें सियाराम बाबा के नाम से लोग पुकारने लगे। बुजुर्ग ग्रामीण बताते हैं कि बाबा 50-60 साल पहले निमाड आए थे। उन्होंने मध्य प्रदेश के खरगोन जिले में नर्मदा तट पर आश्रम का निर्माण किया था। जिसे भट्याण आश्रम के नाम से आज भी लोग जानते हैं।
सियाराम बाबा के बारे में कहा जाता है कि उनकी उम्र करीब 110 साल थी। वे रोजाना 21 घंटे रामायण का पाठ करते थे। बगैर चश्मे के उन्हें आश्रम में रामायण की चौपाइयों को पढ़ते जब लोग देखते थे तो दंग रह जाते थे। संत बाबा वस्त्र के नाम पर शरीर पर केवल एक लंगोट बंधे रहते थे। चाहे कड़ाके की ठंड हो और बरसात या फिर भीषण गर्मी का मौसम बाबा ने कभी लंगोट के अतिरिक्त कुछ धारण नहीं किया। ग्रामीण बताते हैं कि उन्हें आज तक किसी ने पूरे कपड़े में नहीं देखा। निमाड़ अंचल के श्रद्धालु बताते हैं कि बाबा ने दस साल तक खड़े होकर तप किया था।
संत श्री सियाराम बाबा का चमत्कार
इतिहास गवाह रहा है कि भारत में संतों और महंतों ने योग और ध्यान के बल पर कई बार विश्व को चौंकाने का काम किया है। कठीन साधना के जरिये इंद्रियों को अपने बस में करने, संयम रखने और शरीर को हर मौसम के अनुकूल ढाल कर सब को हैरान किया है। ऐसे संत थे बाबा सियाराम। जिनके दर्शन के लिए देश ही नहीं बल्कि विदेशों से भी भक्तों निमाड़ अंचल पहुंचते थे। सियाराम बाबा के बारे में कई दिलचस्प और हैरान कर देने वाली बातें हैं। उन्होंने मध्य प्रदेश के खरगोन जिले में नर्मदा तट पर स्थित भट्याण आश्रम का निर्माण किया था। ऐसा माना जाता है कि सियाराम बाबा का जन्म महारष्ट्र में हुआ था। उन्होंने 7-8वीं तक पढ़ाई भी की थी। किसी संत के संपर्क में आने के बाद उन्होंने वैराग्य धारण कर लिया। सियाराम बाबा की एक ख़ास बात ये थी कि वे दान के रुप में सिर्फ़ 10 रुपए ही स्वीकार करते थे। कोई श्रद्धालु 10 रुपए से अधिक दान देता था तो बाकी के पैसे वे उन्हें लौटा देते थे। कहते हैं कि एक बार अर्जेंटीना और ऑस्ट्रिया से कुछ लोग बाबा के दर्शन के लिए खरगोन के आश्रम पहुंचे थे। विदेशी भक्तों ने जब 500 रुपए का नोट बाबा को दान में दिया तो बाबा ने महज 10 रुपए लेकर बाकी के 490 रुपये उन्हें लौटा दिये। सियाराम बाबा समाज कल्याण के कार्य में भी सक्रिय रहते थे। बताया जाता है कि बाबा ने नर्मदा घाट की मरम्मत के साथ ही बारिश से बचने के लिए शेड निर्माण के लिए 2 करोड़ 57 लाख रुपए दान में दिए थे। यह राशि उन्हें आश्रम की जमीन डूब क्षेत्र में आने के बाद मुआवजे के रूप में मिली थी।
बिना माचिस के किया करते थे दीप प्रज्वलित
कुछ दिनों पहले संत सियाराम बाबा का एक वीडियो भी सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हुआ था। जिसमें संत सियाराम बाबा बिना माचिस की सहायता के दीप प्रज्वलित करते दिखाई दे रहे थे। उनके बारे में ऐसा कहा जाता है कि संत सियाराम बाबा ने कई साल तक खड़े होकर तपस्या की थी। इतना ही नहीं उन्होंने योग साधना के बल पर मौसम अनुरूप अपने शरीर को ढाल लिया था।
(प्रकाश कुमार पांडेय)