विधानसभा चुनाव 2023: कांग्रेस को याद आई पुरानी लड़ाई, कमलनाथ पर तब भारी पड़ी थी सिंधिया की बगावत और अदावत

Jyotiraditya Scindia Former CM Kamal Nath Digvijay Singh

मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव अब करीब आ गए हैं। पिछले पांच साल में इस राज्य ने दो सरकारें देखी। साल 2018 में आए चुनाव नतीजों के बाद राज्य में 15 साल बाद कांग्रेस ने सरकार बनाई थी। कमलनाथ राज्य के मुख्यमंत्री बने थे। हालांकि राज्य की कमलनाथ सरकार 15 महीने तक ही चल सकी थी। 15 महीने बाद एक बार फिर राज्य में बीजेपी की सत्ता में वापसी हुई। ये कैसे हुआ इसे हम इस तरह देख सकते हैं। मध्यप्रदेश में 2018 के विधानसभा चुनाव कई मायनों में बेहद रोमांचक रहा था। 230 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस को बहुमत से दो कम 114 सीटें मिलीं थीं। वहीं, भाजपा को 109 सीटें मिली। सरकार कांग्रेस की बनी लेकर कुछ माह के लिए। राज्य में बीते पांच साल में हुए सियासी उठापटक के बारे में हम आपको बताते हैं किस तरह हुई थी उस समय सियासी उठा-पटक।

मध्यप्रदेश में इसी साल नवंबर-दिसंबर में विधानसभा चुनाव होने हैं। भाजपा, कांग्रेस समेत सभी दल चुनावी तैयारियों में जुट गए हैं। चुनाव के पहले भाजपा ने महिलाओं को हर महीने एक हजार देने के लिए लाड़ली बहना योजना का ऐलान किया है। पार्टी इस योजाना के साथ ही बगैर किसी चेहरे के सत्ता वापसी की उम्मीद कर रही है। वहीं कांग्रेस एक बार फिर किसानों की कर्ज माफी के साथ ही 500 रुपये में एलपीजी सिलेंडर देने का वादा करके फिर से सत्ता में आने की उम्मीद कर रही है। तो आम आदमी पार्टी भी भोपाल में फ्री बिजली की घोषणा करके राज्य में चुनावी बिगुल बजा दिया है।

2018 में नतीजे क्या रहे थे?

मध्यप्रदेश में पिछला विधानसभा चुनाव 2018 बेहद रोमांचक रहा था। 230 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस को 114 सीट मिली थी जो बहुमत से दो कम थीं। वहीं तत्कालीन ​सत्ता में बैठी बीजेपी को 109 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा था। नतीजों के बाद कांग्रेस ने बसपा, सपा और अन्य के साथ मिलकर सरकार बनाई… इस तरह से राज्य में 15 साल बाद कांग्रेस के नेतृत्व में सरकार बनी और कमलनाथ मुख्यमंत्री बने। दिसंबर 2018 से मार्च 2020 तक कांग्रेस ने सरकार चलाई। इस दौरान कई मौके आए जब पार्टी के नेताओं ने अपनी सरकार पर वादे पूरे करने के लिए दबाव बनाया…15 महीने पूरे होते-होते कमलनाथ सरकार की सत्ता से विदाई की पटकथा तैयार हो चुकी थी.. 2-3 मार्च की रात अचानक मध्य प्रदेश के कई विधायक गुरुग्राम के एक होटल में जमा हुए इन विधायकों में कई दिग्गज शामिल थे।

इन विधायकों ने लिखी सरकार गिराने की पटकथा

सिंधिया की पीएम से मुलाकात ने बदली तस्वीर

गुरुग्राम की होटल में भाजपा के नरोत्तम मिश्रा, रामपाल सिंह और अरविंद भदौरिया भी नजर आए। मामला बिगड़ता देख दिग्विजय सिंह उनके मंत्री बेटे जयवर्धन सिंह के साथ जीतू पटवारी डैमेज कंट्रोल में जुटे। पटवारी और जयवर्धन भी उसी होटल में पहुंचे थे। जहां बागी विधायक जमा हुए थे करीब दो घंटे के ड्रामे के बाद दोनों रामबाई और तीन कांग्रेस विधायक ऐंदल सिंह कंसाना, रणवीर जाटव, कमलेश जाटव को लेकर लौट आए। वहीं तब तक रघुराज कंसाना, हरदीप सिंह डंग, बिसाहूलाल सिंह, राजेश शुक्ला, संजीव सिंह कुशवाह और सुरेंद्र सिंह बेंगलुरु पहुंच गए थे। 5 मार्च 2020 को मध्य प्रदेश के सियासी ड्रामे का केंद्र बेंगलुरू हो गया। दो हफ्ते के भीतर यहां बागी विधायकों की संख्या बढ़ते-बढ़ते 22 पहुंच गई। इस बीच दस मार्च 2020 का दिन आया। दिल्ली में कांग्रेस के दिग्गज नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया की अचानक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात होती है। इस मुलाकात ने एमपी की सियासत का रुख ही बदल दिया। सिंधिया ने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया था। अगले दिन 11 मार्च को वे बीजेपी के अध्यक्ष जेपी नड्डा की मौजूदगी में बीजेपी में शामिल हो गए।।

सुप्रीम कोर्ट तक पहुंची विधायकों की बगावत और अदावत

राज्य में सियासी उठापटक यहीं नहीं रुकी थी। आगे यह मामला देश की सर्वोच्च अदालत पहुंच गया था। उस समय मध्य प्रदेश में फ्लोर टेस्ट के लिए भाजपा और कांग्रेस दोनों पार्टियों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। 19 मार्च को कोर्ट ने आदेश दिया कि मध्य प्रदेश विधान सभा में फ्लोर टेस्ट 20 मार्च 2020 की शाम 5 बजे तक का समय दिया। लेकिन इससे पहले ही कांग्रेस ने अपनी हार मान ली और 20 मार्च को दोपहर में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद मुख्यमंत्री कमलनाथ ने अपना इस्तीफा सौंप दिया। अगले दिन 21 मार्च को, दिल्ली में, जे पी नड्डा की उपस्थिति में, विधायकी से इस्तीफा दे चुके सभी 22 बागी भाजपा में शामिल हो गए। इसके बाद 23 मार्च 2020 को, शिवराज सिंह चौहान ने नए मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली। तब कमलनाथ की सरकार गिरने के बाद भी कांग्रेस में इस्तीफे का दौर नहीं थमा था। 23 जुलाई 2020 को कांग्रेस के दूसरे तीन विधायकों ने पार्टी को अलविदा कहकर बीजेपी का दामन थाम लिया था। इसके अलावा 3 सीट जौरा, आगर और ब्यावरा अपने संबंधित मौजूदा विधायकों के निधन के कारण खाली हो गईं। तीन नवंबर 2020 को सभी 28 खाली सीटों को भरने के लिए उपचुनाव कराया गया। जिसमें 28 में से बीजेपी को 19 और कांग्रेस को 9 सीटें मिलीं। यहां दिलचस्प था कि कांग्रेस से बगावत करने वाले 25 विधायकों में से 18 नेता बीजेपी के टिकट पर दोबारा चुनाव जीत गए जबकि सात को हार का सामना करना पड़ा।

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