मध्यप्रदेश में इसी साल के अंत में विधानसभा चुनाव होना हैं। इसके बाद अगले साल 2024 में लोकसभा चुनाव होंगे। ऐसे में बीजेपी हर वर्ग को साधने की कवायद में जुट गई है। केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह के सतना दौरे को भी इसी से जोड़कर देखा जा रहा है। अमित शाह शुक्रवार को सतना जिले के दौरे पर रहेंगे। यहां वे कोल जनजाति महाकुंभ में शामिल होंगे। इस दौरान शाह विंध्य अंचल को बड़ी सौगात दे सकते हैं।
एक लाख लोगों के जुटाने का लक्ष्य
कोल जनजाति महाकुंभ में सवा लाख से भी ज्यादा लोगों को लाने का लक्ष्य बीजेपी ने रखा है। इसके लिए प्रदेश से लेकर जिला स्तर तक के पदाधिकारी सक्रिय हो गए हैं। जनजाति महोत्सव में सतना ही नहीं रीवा, सीधी, सिंगरौली, अनूपपुर, शहडोल, उमरिया, कटनी, पन्ना और छत्तरपुर से भी कोल समाज के लोग शामिल होंगे। महाकुंभ में 10 जिलों से आने वाले लोगों को लाने के लिए 1450 बसों को लगाया गया है। बता दें अकेले सतना जिले में 850 बस कोल समाज के लोगों को कार्यक्रम स्थल तक लाने के लिए तैनात की गई हैं।
सीएम भी होगे शाह के साथ शामिल
स्थानीय सांसद गणेश सिंह की माने तो 24 फरवरी को मेडिकल कॉलेज का उद्घाटन कार्यक्रम तय हुआ है। मुख्य अतिथि के तौर पर गृहमंत्री अमित शाह रहेंगे तो कार्यक्रम की अध्यक्षता मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान करेंगे। सांसद ने बताया कि कि शबरी माता की जयंती का कार्यक्रम भी आयोजित किया गया है। इसमें रीवा संभाग के सभी जिलों से लगभग 1 लाख कोल जनजाति समाज के लोग इस महाकुंभ में भाग लेने के लिए आ रहे हैं। कार्यक्रम में भी अमित शाह बतौर मुख्य अतिथि शामिल होंगे।
आदिवासी वोट पर शाह की नजर
राज्य की कुल 29 लोकसभा सीटों में से 6 सीटें शहडोल, मंडला, रतलाम, खरगोन, बैतूल और धार अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं। वहीं राज्य विधानसभा की बात करें तो यहां 230 सीटों में से 47 सीटें आदिवासी वर्ग के लिए हैं। वहीं 35 सीटों पर आदिवासी वोर्ट हार जीत में बढ़ी भूमिका निभाते हैं। दरअसल अब तक मध्य प्रदेश में होने वाले चुनावों में बीजेपी और कांग्रेस में मुख्य मुकाबला रहा है। लेकिन 2023 में होने वाले चुनाव में तस्वीर कुछ बदलने वाली है। बीजेपी-कांग्रेस ने तो कमर कस ही ली है और आदिवासियों को साधने कोई कसर नहीं छोड़ी जा रही। वहीं आदिवासी संगठन जयस ने अपनी तैयारी शुरू कर दी है। जिसके लिए जयस के राष्ट्रीय संरक्षक और मनावर से विधायक डॉ.हीरालाल अलावा रणनीति पर मजबूती से काम कर रहे हैं। वहीं दूसरे दल भी काफी सक्रीय हो गये हैं। इस समय आदिवासियों को लुभाने के लिए चुनाव को देखते हुए बिसात बिछानी शुरु कर दी है। एमपी में विधानसभा की 230 सीटों में से 47 आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित हैं। प्रदेश की 35 सीटें ऐसी हैं जहां हार-जीत आदिवासी वोटर्स से तय होती है।