मध्यप्रदेश में कांग्रेस सत्ता में वापसी के लिए साम, दाम, दंड, भेद सभी तरीके अपना रही है। मध्यप्रदेश में दो पूर्व मुख्यमंत्रियों ने कांग्रेस की जिम्मेदारी अपने कंधो पर ले रखी है। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और कमलनाथ कांग्रेस की सत्ता में वापसी के लिए जी तोड़ मेहनत कर रहे हैं।
- दिग्विजय सिंह ने 2018 में की थी पंगत में संगत
- अब हारी हुई सीटों पर दिग्विजय सिंह का जोर
- कमलनाथ के साथ कर रहे संगठन को मजबूत
- साम,दाम, दंड भेद सभी अपनाए जा रहे
- कमलनाथ का बूथ मजबूत करने पर जोर
- 2018 की कहानी दोहराना चाहते हैं कमलनाथ और दिग्विजय
संगठन को मजबूत करने की कोशिश
दिग्विजय सिंह संगठन को मजबूत बनाने के सभी कोशिशों में लगे हैं। वो हारी हुई सीटों को दौरा कर रहे हैं। साथ ही कार्यकर्ताओं की कमरा बंद बैठकें ले रहे हैं। पिछले 2018 के विधानसभा चुनाव में भी दिग्विजय सिंह ने पंगत में संगत जैसे कार्यक्रम कर कार्यकर्ताओं की बैठकें लीं थी। सभी को एकजुट करने की कोशिश की थी। वहीं दिग्विजय सिंह ने नर्मदा परिक्रमा भी की थी। जिसके चलते तकरीबन 90 सीटों पर कांग्रेस के कार्यकर्ता को चुनावों के लिए सक्रिय किया गया था।
वहीं कमलनाथ उस चेहरे के तौर पर काम कर रहे हैं जो कही न कही सभी को साधने का काम कर रहे हैं। 2018 में कमलनाथ को मध्यप्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया था। उसके बाद कमलनाथ के चेहरे पर पार्टी के सभी बड़े नेता एक जुट दिखाई दे रहे थे। अब दोनों नेता संगठन को मजबूत करने पर जोर दे रहे है। दिग्विजय सिंह के मुताबिक जनता कांग्रेस को वोट तो करना चाहती है लेकिन कमजोर संगठन के देखकर कहीं न कहीं जनता वोट देने से पीछे हट जाती है।
चुनाव से पहले बूथ मजबूत करने की कवायद
वहीं कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ भी मान रहे हैं कि बूथ की मजबूती सबसे ज्यादा जरूरी है। इसलिए बूथों को मजबूत करने पर जोर देना होगा। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि दिग्विजय और कमलनाथ दोनों मिलकर 2018 की कहानी दोहराना चाह रहे हैं। कांग्रेस नेताओं का मानना है कि अगर थोड़ी कोशिश की जाए तो 2018 से ज्यादा सीटें हासिल की जा सकती हैं। बहरहाल कोशिशें लगातार चल रही हैं। ऐसे में देखना होगा कि दोनो नेताओं की मेहनत क्या रंग लाती है। 2018 दोहराती है या 2023 में कांग्रेस फिर विपक्ष की भूमिका निभाती है।