चुनाव के दौरान उठा बेरोजगारी और महंगाई का मुद्दा…लेकिन विपक्ष को इसलिए नहीं मिला युवाओं का साथ…

Lok Sabha Elections Unemployment Inflation Issue NDA India Alliance Exit Poll

लोकसभा चुनाव के बाद अब लोगों को 4 जून का इंतजार है। 4 जून को नतीजे सामने आने वाले हैं। 16 मार्च से शुरू हुए इस चुनावी सफर के दौरान कई मर्तबा बढ़ती महंगाई, बेरोजगारी जैसे ज्वलंत मुद्दों पर विपक्ष मोदी सरकार को घेरते हुए नजर आया। इतना ही नहीं चुनाव अभियान के दौरान भी देश भर में खासकर युवा मतदाताओं ने बेरोजगारी को अपनी प्रमुख समस्या बताया। बेरोजगारी को पहली बार मुख्य मुद्दे के रूप में इस बार मार्च अप्रैल में लोकनीति सीएसडीएस सर्वेक्षण में भी उठाया गया था। यह सर्वेक्षण मतदान से ठीक पहले किया गया था। सर्वेक्षण के दौरान सामने आया कि पिछले चुनाव के विपरीत इस चुनाव में बेरोजगारी का मुद्दा एक निर्णायक फैक्टर के रूप में सामने आया है।

इतना ही नहीं चुनाव अभियान के दौरान भी देश भर में खासकर युवा मतदाताओं ने बेरोजगारी को अपनी प्रमुख समस्या बताया। बेरोजगारी को पहली बार मुख्य मुद्दे के रूप में इस बार मार्च अप्रैल में लोकनीति सीएसडीएस सर्वेक्षण में भी उठाया गया था। यह सर्वेक्षण मतदान से ठीक पहले किया गया था। सर्वेक्षण के दौरान सामने आया कि पिछले चुनाव के विपरीत इस चुनाव में बेरोजगारी एक निर्णायक फैक्टर के रूप में सामने आया है।

हालांकि यह एक बड़ा आश्चर्य है कि भाजपा ने अपने चुनावी अभियान में बेरोजगारी के मुद्दे को लेकर बात करना उचित नहीं समझा। पार्टी के चुनावी घोषणा पत्र को भी उठा कर देखें तो 2036 के ओलंपिक मेजबानी से लेकर मेट्रो ट्रेन से जुड़ी तमाम सुविधाओं के लिए एक वादे और दावे बीजेपी ने किये। लेकिन बेरोजगारी की जमीनी सच्चाई से यह मेल नहीं खाते। दरअसल केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने तो बेरोजगारी के मुद्दे को लेकर एक बयान दिया। पिछले दिनों एक साक्षात्कार में शाह ने कहा था कि दुर्भाग्य से लोगों ने बेरोजगारी को सरकारी नौकरी से जोड़ दिया है। उन्होंने कहा कि 130 करोड़ की आबादी में किसी भी सरकार के लिए सभी को नौकरी देना असंभव है। हालांकि अमित शाह की यह बात सही है कि सरकारी सरकारों के पास रोजगार देने की क्षमता सीमित होती है । तब निजी क्षेत्र का विस्तार करके इस कमी को पूरा किया जा सकता है। खासकर छोटे और मध्यम स्तर के उद्योगों को बढ़ावा देकर जहां कुशल और अर्ध कुशल श्रमिकों की मांग रहती है। इनका समय आयोजित किया जा सकता है। बता दे देश में कामगारों में एक बड़ी संख्या ऐसे अर्ध कुशल और कुशल कामगारों की ही है।

इसके बाद भी इसके बाद भी शाह की टिप्पणी कठोर मानी जा सकती है क्योंकि शाह ऐसी सरकार के शीर्ष नेता की ओर से यह टिप्पणी आई थी। जो 22 करोड़ समेत परिवारों के प्रभावशाली नेटवर्क बनाने पर गर्व करती है केंद्र सरकार ने इन परिवारों को दूसरे लाभों के अलावा मुफ्त मासिक, मुफ्त रसोई गैस कनेक्शन, शौचालय, सब्सिडी युक्त सस्ते घर और प्रत्यक्ष नगद हस्तांतरण लाभ के साथ मुफ्त स्वास्थ्य बीमा की सुविधा दी है। जब इतना सब दिया जा सकता है तब नौकरी क्यों नहीं दी जा सकती। यह बड़ा सवाल है। सच्चाई यह भी है कि जब आप एक लाभार्थी संस्कृति विकसित करते हैं। जिससे लोग इतने बड़े पैमाने पर सरकार की ओर से मिलने वाली मुफ्त सौगात आने के आदी हो चुके होते हैं। तब वह अपने दैनिक जीवन में मानवीय श्रम और प्रयास की भावना को दरकिनार करते नजर आते हैं। लगातार बढ़ते राजकोषीय घाटे के प्रबंधन पर दबाव के बाद भी सरकार ने कल्याणकारी योजनाओं की अपनी सूची में कमी नहीं। इससे जाहिर है चुनावी लाभ के लिए यह किया गया।

बता दे सरकारी नौकरियां आर्थिक सुरक्षा स्थायित्व और अपने रुतबे के चलते एक औसत भारतीय का हमेशा से ही यही सपना रहा है। इसे दुर्भाग्य कहे कि पिछले कुछ सालों में सरकारों ने भर्ती में भारी कटौती कर दी। सरकार जहां कटौती करती नजर आई वहीं विपक्ष ने इसे बड़ा मुद्दा बनाकर चुनाव में हवा दी। कांग्रेस ने घोषणा पत्र में केंद्र में स्वीकृत पदों पर करीब 30 लाख भारती के और सरकारी विभागों के साथ सार्वजनिक उपक्रम में संविदा कर्मचारियों को नियमित करने के साथ अग्निवीर योजना को खत्म करने जैसे कई अहम बातें युवाओं से की। हालांकि इस बात पर कोई स्पष्ट नहीं कि कांग्रेस सरकारी खजाने पर इस अतिरिक्त बोझ को किस तरह पूरा करेगी। जिससे यह आशंका भी बढ़ती जा रही है कि यह बातें भी कहीं का किसी साबित ना हो जाए।

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