लोकसभा चुनाव का अंतिम ‘रण’ पूर्वांचल में दांव पर विपक्षी गठबंधन की साख..! बीजेपी के सामने सीट बचाने की चुनौती

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लोकसभा चुनाव का रण अब अपने अंतिम चरण में पहुंच गया है। 1 जून शनिवार को 8 राज्यों की 57 सीटों के लिए वोटिंग होगी। इस अंतिम चरण में 904 उम्मीदवार चुनावी मैदान में हैं। जिसमें वाराणसी से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, हिमाचल प्रदेश की मंडी लोकसभा सीट से बीजेपी की प्रत्याशी कंगना रनौत और कांग्रेस प्रत्याशी विक्रमादित्य सिंह, गोरखपुर सीट से भोजपुरी स्टार रवि किशन, हमीरपुर सीट से केंद्रीय मंत्री अनुराग सिंह ठाकुर तो बिहार की पटना साहिब लोकसभा सीटसे बीजेपी प्रत्याशी रविशंकर प्रसाद सहित तमाम दलों को कई दिग्गज अंतिम चरण के चुनाव मैदान में हैं।

अंतिम चरण के चुनाव मैदान में हैं कई दिग्गज

लोकसभा चुनाव के इस 7वें और अंतिम चरण में उत्तरप्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, चंडीगढ़, झारखंड, ओडिशा की बची हुई सीटों पर चुनाव होगा। आठ राज्यों की इन 57 सीटों पर होने वाली वोटिंग के लिए चुनाव आयोग को कुल 2105 नामांकन पत्र मिले थे जिनमें से जांच और नाम वापस लेने के बाद अब चुनावी रण में 904 उम्मीदवार में बचे हैं।

वाराणसी सहित यूपी की 13 सीटोंं पर वोटिंग

लोकसभा चुनाव के 7वें यानी अंतिम चरण में 1 जून 2024 को यूपी की 13 लोकसभा सीटों पर मतदान होगा। लोकसभा की इन सीटों पर जीत के लिए एनडीए, इंडिया गठबंधन के साथ बसपा ने भी पूरी ताकत झोंक रखी है। इसी अंतिम चरण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र वाराणसी भी शामिल है। इसके साथ ही गोरखपुर जैसी हाई प्रोफाइल लोकसभा सीट पर भी इसी चरण में मतदान होगा। गोरखपुर सीट से पहले राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सांसद रहे थे। फिलहाल यहां से बीजेपी की ओर से अभिनेता रवि किशन सांसद हैं वे दोबारा मैदान में उतरे हैं।

खास बात यह है कि इस क्षेत्र को पूर्वांचल एक्सप्रेस वे और जीटी रोड राजधानी लखनऊ और नई दिल्ली से जोड़ते हैं। यानी दिल्ली का रास्ता यहीं से होकर गुजरता है। सियासी विशेषज्ञों का कहना है इस बार जातियों के वर्चस्व की अंदरूनी लड़ाई चुनाव में है। जो जातियों समीकरण साधने में कामयाब होगा उसकी चुनावी राह आसान होगी।

यूपी के पूर्वांचल में जाति की लड़ाई

पूर्वांचल में पिछड़ा, अति पिछड़ा और पूरी अति दलित समाज के लगभग 60 प्रतिशत मतदाता हैं। यही असली किंग मेकर भी कहे जाते हैं। यहां की आधा दर्जन सीटों पर मुस्लिम मतदाताओं का प्रभाव है।

पूर्वी यूपी में बीजेपी के घटक दलों का जनाधार

एनडीए गठबंधन में भाजपा के साथ शामिल सुभासपा, निषाद पार्टी और अपना दल का पूर्वी यूपी में जनाधार है। दो अन्य दलों ने बीते द दिनों एनडीए को समर्थन की घोषणा की है। इनमें जनवादी पार्टी व महान दल शामिल है। यह दल अति पिछड़ा नोनिया चौहान और मौर्या समाज में पकड़ रखते हैं।

बीजेपी ने 2019 में 13 में से 11 सीट जीती

2019 के चुनाव में इन 13 में से 11 सीटों पर एनडीए जीती थी। दो सीटों पर विपक्ष जीती थी। इस बार एनडीए सभी की 13 सीटों को जीतने के इरादे से ताकत लगा रहे हैं। वहीं विपक्षी इंडिया गठबंधन अपनी सीट को बढ़ाने के लिए जातीय गणित सेट करने में जुटा है। ऐसे में दोनों पक्ष मुकाबले को रोचक बना रहे हैं। हालांकि पिछले लोकसभा चुनाव के आंकड़े देखें तो इन सीटों पर इंडिया गठबंधन इन की लड़ाई उतनी आसान नहीं। अगर विपक्ष थे को सीटें बढ़ानी है तो उन्हें कम से कम 15% वोट पक्ष में बढ़ाना होगा।

पिछली बार सपा-बसपा में था गठबंधन

पिछले 2019 के चुनाव में यूपी में सपा-बसपा का गठबंधन था, जो भाजपा के सामने मजबूत था। इसके बाद भी विपक्ष को 2019 में दो सीटें से ही संतोष करना पड़ा था। इस बार तो बसपा ने किसी से गठबंधन नहीं किया है वह अलग चुनाव लड़ रही है। दूसरी ओर कांग्रेस का संगठन भी यूपी में जमीन पर उतना मजबूत नहीं है। जबकि एनडीए ने जातीय समीकरणों को यहां खासा मजबूत कर लिया है। पूर्वांचल में बीजेपी ने राजभर के साथ चौहान, निषाद और गैर यादव ओबीसी समाज को साधने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। ओपी ओमप्रकाश राजभर, अपना दल सोनेलाल और निषाद पार्टी इस बार एनडीए के साथ हैं। पिछले 2019 के चुनाव में बीजेपी को इन सीटों पर औसतन 52.11% वोट मिले थे। जबकि विपक्ष को 37.43% वोट ही मिले थे।

नारी शक्ति सम्मेलन के जरिए महिला मतदाताओं का साधा

वाराणसी में पीएम नरेंद्र मोदी ने नारी शक्ति सम्मेलन किया था। इसके जरिये पूर्वी उप्र की महिलाओं को नया संदेश दिया। अब चुनावी विश्लेषकों का कहना हैं कि महिला मतदाता जातीय समीकरण की चिंता किए बगैर मतदान करतीं हैं। दोनों गठबंधन सामाजिक समीकरण से जीत की गारंटी तलाश रहे हैं। सभी 13 सीटें जीतने के लिए सपा और कांग्रेस ने अपने संगठन को मैदान में उतार दिया है। समाजवादी पार्टी की रणनीति पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक पर फोकस कर रही है। दरअसल 2014 से बीजेपी उतना की जीत के पीछे गैर-यादव ओबीसी और गैर-जाटव दलितों का वोट की लामबंदी है। इस बार विपक्ष गठबंधन ने इन्हीं मतदाताओं को संविधान पर खतरा और आरक्षण के नाम पर साधने का प्रयास किया है।

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