लोकसभा चुनाव हो चुके हैं। एनडीए की नई सरकार अस्तित्व में आ गई है, नरेन्द्र मोदी फिर लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री बने हैं। देश की जनता खासकरर मध्यमवर्गीय परिवार को पीएम से खासी उम्मीदें हैं क्योंकि थोक महंगाई बढकर 15 महीनों के ऊपरी स्तर पर पहुंच गई है। 14 जून को जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार मई में थोक महंगाई बढकर 2.61 प्रतिशत पर पहुंच गई है। फरवरी 2023 में थोक महंगाई दर 3.85 प्रतिशत रही थी। वहीं अप्रैल 2024 में महंगाई 1.26 प्रतिशत रही थी, जो 13 महीने का उच्चतम स्तर था। इससे एक महीने पहले मार्च 2024 में ये 0.53 प्रतिशत रही थी। फरवरी में थोक महंगाई 0.20 प्रतिशत रही थी। उधर रिटेल महंगाई में गिरावट देखने को मिली थी।
- महंगाई ने किया आमजन का किया जीना दुश्वार
- महंगाई ने निकाला दम…जरुरी चीज़ों के बढ़ गए दाम
- लोकसभा चुनाव खत्म…महंगाई ने पकड़ी रफ्तार
- दूध, टोल के बाद बढ़े खाने-पीने की चीजों के दाम
- फरवरी में थोक महंगाई 0.20 प्रतिशत रही
- रिटेल महंगाई में गिरावट देखने को मिली थी
- अप्रैल 2024 में महंगाई 1.26 प्रतिशत रही
- जो 13 महीने का उच्चतम स्तर था
दरअसल, लाकसभा चुनाव खत्म हात हा देश की जनता को महंगाई से दो-दो हाथ करने का समय आ गया है। जून का पहला सोमवार जनता के लिए महंगाई का ट्रिपल डोज लेकर आया है। देश की सबसे बड़ी दूध उत्पादन कंपनी अमूल इंडिया और मदर इंडिया ने दूध के दाम बढ़ा दिया है। वहीं एनएचआई ने भी टोल दरों में 5 फीसदी की वृद्धि कर दी है। जानकारों का कहना है कि नई सरकार के गठन के साथ ही महंगाई का करंट और बढ़ जाएगा। लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद आम लोगों के बीच दूसरा सवाल भी रेंगने लगा है। दरअसल, लोकसभा चुनाव खत्म होते ही महंगाई का करंट लगना शुरू हो कारण गया है। खाद्य पदार्थों के साथ ही की शुद्ध आवष्यक वस्तुओं के दाम बढने ताजा लगा है। जानकारों का कहा है कि बाद से आने वाला समय महंगाई से दो- वर्षों में दो हाथ करने वाला रहेगा।
मध्यवर्गीय परिवार परेशान, आय कम खर्चा ज्यादा
पिछले कुछ साल के आंकड़े उठाकर देखतें तो भारतीय परिवारों में खासकर मध्यवर्गीय परिवारों का खर्च लगातार बढ़ता जा रहा है। जबकि इसके अनुपात में उनकी आमदनी में वृद्धि नहीं हो रही। इस वजह से आम भारतीय की बचत भी निरंतर घट रही है। हाल ही में सांख्यिकी और कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय की ओर से जारी आंकड़ों पर गौर करते हैं तो उसमें बताया गया कि देश में परिवारों की शुद्ध बचत पिछले तीन वर्षों में लगातार कमी दर्ज की गई है। यह घटकर वित्तवर्ष 2022-23 में केवल 14.16 लाख करोड़ रुपए रह गई।
मंत्रालय की ओर से जारी ताजा राष्ट्रीय खाता सांख्यिकी 2024 के अनुसार वित्तवर्ष 2020-21 में परिवारों की शुद्ध बचत 23.29 लाख करोड़ रुपए पर पहुंच गई थी, और उसके बाद से इसमें लगातार गिरावट दर्ज की जाती रही है। वित्तवर्ष 2021-22 में देश के परिवारों की शुद्ध बचत घटकर 17.12 लाख करोड़ रुपए रह गई। यह पिछले पांच वर्षों में बचत का सबसे निचला स्तर बताया जा रहा है है। बचत घटने का सबसे बड़ा कारण परिवारों के जीवन निर्वाह व्यय और अन्य व्ययों में बढ़ोतरी है।