लोकसभा चुनाव 2024: वीआईपी सीट में शामिल राजगढ़ पर इस बार सबकी नजरें, क्या कांग्रेस को वापस मिलेगा उसका यह गढ़

लोकसभा चुनाव अब करीब हैं। मध्यप्रदेश में बीजेपी ने इस बार प्रदेश की सभी 29 की 29 सीटों पर अपना कब्जा जमाने की रणनीति पर काम शुरु कर दिया है। इसमें राजगढ़ लोकसभा सीट भी शामिल हैं। मध्यप्रदेश की राजगढ़ लोकसभा सीट इस बार भी दिग्विजय सिंह की साख दांव पर नजर आ रही है। राघोगढ़ राज घराने के वर्चस्व वाली इस सीट पर बीजेपी पिछले दो चुनाव से जीत हासिल करती आ रही है। हालांकि यहां से अगर किसी पार्टी ने सबसे ज्यादा जीत हासिल की है तो वह कांग्रेस ही है। दिग्विजय सिंह खुद दो बार यहां से सांसद रह चुके हैं। उनके भाई लक्ष्मण सिंह पांच बार इस सीट से जीतकर संसद के गलियारे तक पहुंचे। हालांकि यहां पर दोनों भाइयों को हार का भी स्वाद चखना पड़ा है। क्श्या है राजगढ़ लोकसभा सीट का सियासी समीकरण आइये हम जानते हैं।

राजगढ़ लोकसभा सीट का सियासी समीकरण

मध्यप्रदेश में लोकसभा की वीआईपी सीटों में राजगढ़ भी शामिल है। इस बार सबकी नजरें इस सीट पर टिकी हैं। कभी दिग्विजय सिंह और फिर उनके छोटे भाई लक्ष्मण सिंह भी यहां से चुनकर लोकसभा जा चुके हैं। चंबल और मध्य भारत अंचल में आने वाली राजगढ़ लोकसभा सीट का चुनावी इतिहास भी बेहद दिलचस्प रहा है। जहां बीजेपी और कांग्रेस से ज्यादा राजघरानों का दबदबा देखने को मिला है। पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह और उनके परिवार के सदस्यों का इस क्षेत्र में सीधा सियासी दखल माना जाता है। लेकिन पिछले कुछ चुनाव पर नजर डाले तो यहां बीजेपी का भी चुनाव में अच्छा दबदबा देखने को मिला है।

दो चुनाव से बीजेपी जीत रही

एक समय राजगढ़ लोकसभा सीट पर जनसंघ की पकड़ मजबूत मानी जाती थीए लेकिन धीरे.धीरे समीकरण बदले और इस सीट पर कांग्रेस ने अपने पैर जमाने शुरू किए। दिग्विजय सिंह और उनके छोटे भाई लक्ष्मण सिंह इस सीट से लगातार लोकसभा पहुंचते रहे हैं। हालांकि 2014 और इसके बाद 2019 के चुनाव में इस सीट पर बीजेपी ने जबरदस्त जीत हासिल की। ऐसे में बीजेपी इस बार भी य​हां अपनी जीत को लेकर उत्साहित नजर आ रही है। 2023 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के कई बड़े नेताओं ने हार का स्वाद चखा था। इसके चलते कांग्रेस इस बार राजगढ़ लोकसभा सीट पर किसी दिग्गज नेता को मैदान में उतार सकती है।

राजगढ़ सीट का सियासी इतिहास

राजगढ़ लोकसभा सीट के इतिहास पर गौर करें तो 1952 से सीट अस्तित्व में आई थी। कांग्रेस के टिकट पर लीलाधर जोशी 1952 और 1957 का लगातार दो बार चुनाव जीते। और राजगढ़ के पहले सांसद चुने गए थे। साल 1952 और इसके बाद 1957 तक राजगढ़ और शाजापुर संसदीय क्षेत्र हुआ करता था। तब अनारक्षित और आरक्षित वर्ग से एक एक सांसद चुने जाते थे। ऐसे में लीलालधर जोशी आरक्षित वर्ग से भागू नंदू मालवीय भी सांसद सांसद बने। 1957 में आरक्षित वर्ग से कन्हैयालाल सांसद बनकर दिल्ली गए। 1962 के बाद 1967 और 1971 के चुनावों तक राजगढ़ जिला तीन लोकसभा सीटों शाजापुर, भोपाल और गुना में बंटा रहा था। इस दौरान साल 1962 में निर्दलीय भानुप्रकाश सिंह तो 1967 में बाबूराव पटेल और जगन्नाथ राव जोशी जनसंघ से सांसद बने। साल 1977 के चुनाव से राजगढ़ संसदीय सीट अस्तित्व में आ गई थी। साल 1977 और इसके बाद 1980 के चुनाव में जनता पार्टी के टिकट पर बसंत कुमार पंडित यहां से चुनाव मैदान में उतरे और सांसद चुने गए।

राघौगढ़ राजपरिवार ने सात बार जीता चुनावी रण

साल 1984 में हुए लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस की ओर से दिग्विजय सिंह पहली बार इसी सीट से सांसद बने। हालांकि 1989 के चुनाव में दिग्विजय सिंह को बीजेपी के प्यारेलाल खंडेलवाल ने चुनाव हराया था। लेकिन इसके बाद 1991 में दिग्विजय सिंह की इस सीट पर वापसी हुई उन्होंने प्यारेलाल खंडेलवाल को परास्त किया था। 1994 में हुए उपचुनाव में यहां से दिग्विजय सिंह के छोटे भाई लक्ष्मण सिंह पहली बार सांसद चुनकर दिल्ली पहुंचे। लक्ष्मण सिंह ने साल 1996 ,1998, 1999 और इसके बाद 2004 के लोकसभा चुनाव में यहां से लगातार विजयी हासिल की थी। हालांकि 2004 का चुनाव लक्ष्मण सिंह ने बीजेपी के टिकट पर लड़ा और जीता था। यही वजह है कि इस सीट पर राघौगढ़ राज परिवार का दबदबा भी देखा जाता रहा है। दिग्विजय सिंह और उनके छोटे भाई लक्ष्मण सिंह इस सीट से करीब 7 चुनाव में जीत हासिल कर चुके हैं। 2009 में कांग्रेस के टिकट पर आमलाबे नारायण सिंह ने चुनाव में जीत हासिल की थी। जबकि 2014 की मोदी लहर और इसके बाद 2019 से बीजेपी के टिकट पर रोडमल नागर ने चुनाव जीत रहे हैं। राजगढ़ लोकसभा सीट पर अब तक करीब 16 बार चुनाव हो चुके हैं। जिनमें से सात बार कांग्रेस तो चार बार बीजेपी और दो बार जनसंघ के साथ दो बार जनता पार्टी के प्रत्याशी ने जीत हासिल की। एक बार इस सीट से निर्दलीय प्रत्याशी ने भी जीत हासिल की है। सात चुनावों में राघौगढ़ राजपरिवार के सदस्य सांसद चुने गए। जबकि एक बार नरसिंहगढ़ रियासत के पूर्व महाराजा भानु प्रकाश सिंह बतौर निर्दलीय प्रत्याशी चुनाव जीते। हालांकि राजपरिवारों को यहां जीत के साथ हार का भी सामना करना पड़ा है। चाहे दिग्विजय सिंह हों या उनके छोटे भाई लक्ष्मण सिंहएदोनों ही इस सीट पर चुनाव हार चुके हैं। राजनीति के गलियारों में इस बार चर्चा तेज हैं कि कांग्रेस यहां से दिग्विजय सिंह या उनके छोटे भाई लक्ष्मण सिंह को 2024 के चुनाव के मैदान में उतार सकती है।

‘लक्ष्मण’ से हारे थे ‘कृष्ण’

राजगढ़ लोकसभा सीट पर 1999 के चुनाव में महाभारत में कृष्ण की भूमिका निभाने वाले नितीश भारद्धाज को लक्ष्मण सिंह से चुनाव में हार का सामना करना पड़ा था। 1999 के चुनाव में महाभारत में भगवान श्रीकृष्ण की भूमिका निभाने वाले नितीश भरद्वाज बीजेपी के टिकट पर मैदान में उतरे थे। कांग्रेस की ओर से उनके सामने दिग्विजय सिंह के भाई लक्ष्मण सिंह को उतारा था। उस समय चुनाव खासा सुर्खियों में रहा। क्योंकि भगवान श्रीकृष्ण की भूमिका निभाने की वजह से नितीश भरद्वाज की लोकप्रियता चरम पर थी। प्रचार के दौरान वे आकर्षण का केंद्र थे। राजनीतिक जानकार उस समय उन्हें उनकी जीत को लेकर आश्वत भी थे लेकिन यह तनजा है जो नतीजें चौकाने वाले देती है और चुनाव में कांग्रेस के लक्ष्मण से बीजेपी के कृष्ण को हार का सामना करना पड़ा।

विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी का पलड़ा भारी

राजगढ़ लोकसभा क्षेत्र में तीन जिलों की आठ विधानसभा सीट शामिल हैं। जिनमें राजगढ़, नरसिंहगढ़, ब्यावरा, खिलचीपुर और सारंगपुर शामिल हैं। इसके साथ ही गुना जिले की राघौगढ़ और चाचौड़ा जबकि आगर मालवा जिले की सुसनेर विधानसभा सीट भी इसी लोकसभा क्षेत्र में शामिल हैं। पिछले 2023 के विधानसभा चुनाव में आठ सीटों में से बीजेपी को 6 सीट पर जीत हासिल हुई थी। 2 सीट कांग्रेस के खाते में गई थी।

निर्णायक भूमिका में सौंधिया और दांगी मतदाता

लोकसभा क्षेत्र का जातिगत समीकरण देखें तो राजगढ़ लोकसभा सीट में ओबीसी वर्ग सबसे ज्यादा प्रभावशाली है। इसके बाद गुर्जर, दांगी, यादव, सौंधिया और धाकड़ समाज ओबीसी का नेतृत्व करता है। जबकि यहां ब्राह्मण ओर राजपूत मतदाता भी प्रभावी माने जाते हैं। इस अतिरिक्त कुछ विधानसभा सीटों पर एससी वर्ग का दबदबा माना जाता है। साथ ही करीब 6 प्रतिशत आबादी यहां अल्पसंख्यक वर्ग की है। हालांकि राजगढ़ लोकसभा क्षेत्र में सौंधिया और दांगी समाज के वोटर्स को ही निर्णायक माना जाता है।

पिछले दो चुनाव में राजगढ़ से रोडमल जीते

2019 में हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी के टिकट पर रोडमल नागर ने जीत दर्ज की थी। उन्होंने कांग्रेस की मोना सुस्तानी को परास्त किया था। रोडमल नागर को उस चुनाव में करीब 8 लाख 23 हजार से अधिक वोट मिले थे। जबकि कांग्रेस प्रत्याशी मोना सुस्तानी को महज 3 लाख 92 हजार वोट ही हासिल हुए। बीजेपी प्रत्याशी ने करीब 4 लाख से भी ज्यादा मतों से जीत दर्ज की थी। इससे पहले 2014 के लोकसभा चुनाव में भी बीजेपी की ओर से रोडमल नागर ने कांग्रेस प्रत्याशी अंलाबे नारायण सिंह को 2 लाख 28 हजार 737 मतों से परास्त किया था।

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