जम्मू-कश्मीर में फिर से उथलपुथल का दौर जारी है। लोकसभा चुनाव में यहां भारी मात्रा में मतदाताओं के कतार मतदान केन्द्र पर नजर आईं थीं। इसके बाद अब विधानसभा चुनाव की उम्मीदें पुख्ता हुई तो लगातार एक के बाद एक चार आतंकी हमले बढ़ गए। जिसने सुरक्षा बलों और सरकारी हलकों को परेशान कर दिया है।
- आतंकी हमलों से राज्य की इकॉनमी का होगा नुकसान
- टूरिज्म पर आधारित है जम्मू कश्मीर की इकॉनमी
- सीमा पार से संचालित हो रहा आतंकवाद
- आतंकियों से संयम और सोच की अपेक्षा नहीं की जा सकती
- जम्मू-कश्मीर में उथलपुथल का दौर जारी
- लोकसभा चुनाव में दिखाई दिया था मतदाताओं में उत्साह
- मतदान केन्द्र पर नजर आईं थी मतदाताओं की कतार
- अब विधानसभा चुनाव की उम्मीदें हुईं पुख्ता
- आतंकियों को पसंद नहीं आ रहा मतदाताओं का उत्साह
- घाटी में चुनाव के बाद एक के बाद एक चार आतंकी हमले
यह हमले न सिर्फ आतंक के पैटर्न में बदलाव का संकेत नजर आ रहे हैं बल्कि देश-दुनिया को यह संदेश देने की भी कोशिश है कि जम्मू कश्मीर में अभी सब कुछ ठीक नहीं है। इसे संयोग नहीं माना जा सकता कि इन आतंकी हमलों की शुरुआत के लिए आतंकियों ने 9 जून की तारीख को चुना। यह वो तारीख है जब लोकसभा चुनावों के बाद नरेंद्र मोदी सरकार नया कार्यकाल शुरू करने जा रही थी। इस हमले से जाहिर है आतंकी इससे नाखुश हैं। इससे तो यही लगता है कि जम्मू-कश्मीर में लोकसभा चुनाव शांतिपूर्वक संपन्न होना और उसमें लोगों की उत्साहपूर्ण भागीदारी दिखना आतंकवादियों को रास नहीं आ रहा है।
शांत इलाकों में भी पहुंचे दहशतगर्द !
बता दें जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 के तहत विशेष दर्जा खत्म किए जाने के बाद यह पहला चुनाव था। अब 30 सितंबर से पहले जम्मू कश्मीर में विधानसभा चुनाव संपन्न करवाए जाने हैं। आतंकवादियों और पाकिस्तान में बैठे उनके आकाओं का अगला लक्ष्य विधानसभा चुनाव में जहां तक हो सके बाधा पहुंचाने का हो सकता है। ऐसे में सुरक्षा बलों ने आतंकियों की नकेल कसने के जो प्रयास पिछले कुछ वर्षों में किए हैं। उनका असर आतंकी घटनाओं में आई कमी में ही नहीं बल्कि आतंकवादियों को लगातार अपनी रणनीति बदलना पड़ी। पहले आतंकियों ने टारगेटेड किलिंग का सहारा लेकर वहां आम लोगों को निशाना बनाने की कोशिश की थी। जो लोग उनके लिए सॉफ्ट टारगेट हो सकते थे।
पर्यटन और इकॉनमी के लिए नुकसान दायक
लेकिन राज्य में सुरक्षा बलों के कड़े बंदोबस्त को देखते हुए अब जम्मू के उन इलाकों में गतिविधियां बढ़ाई गई हैंं जो लंबे समय से शांत और आतंकवाद से मुक्त माने जाते थे। गौरतलब है कि आतंकियों ने हाल ही में रियासी में तीर्थयात्रियों से भरी बस को निशाना बनाया था। चरम उग्रवाद के दौर में भी जम्मू- कश्मीर में टूरिस्टों और अमरनाथ यात्रा को निशाना बनाने से बचने का ट्रेड हमेशा नजर आया था और इसकी वजह यह बताई जाती थी कि इससे जम्मू कश्मीर जो की पर्यटन पर आधारित इकॉनमी है उसे नुकसान होगा। लेकिन सीमा पार से संचालित आतंकवादियों से अब ऐसे संयम और सोच की अपेक्षा नहीं की जा सकती है।
अब आशंका बढ़ गई है कि आने वाले दिनों ऐसे हमले और बढ़ सकते हैं।
पाकिस्तान के पूर्व पीएम नवाज शरीफ के साथ वहां के मौजूदा प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ जरूर बार बार दोस्ती का राग अलाप रहे हों, लेकिन उनके इस दोस्ती वाले राग को पाकिस्तान की सेना की असली मंशा का संकेत नहीं माना जा सकता है। क्योंकि अतीत में इन दोनों के बीच का फर्क बेहद खतरनाक रूप में सामने आता रहा है। हालांकि ऐसे में 90 के दशक के पैटर्न पर सुरक्षा बलों की तैनाती का फैसला वक्त की जरूरत है। लेकिन इसके साथ ही सरकार को यह संकल्प बनाए रखना होगा कि किसी भी सूरत में जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव आगे खिसकाने की नौबत नहीं आने पाए। क्योंकि जब स्थानीय लौग अपने सूबे की सरकार चुनेंगे तो राज्य की सियासी व सामाजिक तस्वीर में नये रंग उभरेंगे, इससे लोगों के बीच अपनी सरकार का भाव बढ़ेगा तो आतंकी तत्वों का हौसला भी टूट सकता है। कश्मीर में चुनाव के लिये सरकार ने पहले भी कुछ प्रक्रिया शुरू की थीं, अब चुनौती है कि आतंकियों की कमर तोड़ी जाए और स्थानीय लोगों में चुनाव के लिए जागा हौसला कायम रखते हुए यहां सरकार को अस्तित्व में लाया जाए।