देश में अब लोकसभा चुनाव की चर्चा तेज हो गई है। एक तरह जहां इंडिया गठबंधन में सीट बंटवारे को लेकर बैठकों का दौर जारी है तो वहीं दूसरी तरफ सभी की नजर महाराष्ट्र की 48 सीटों पर है। महाराष्ट्र लोकसभा चुनाव के लिए उत्तरप्रदेश के बाद एक महत्वपूर्ण राज्य है। दरअसल लोकसभा की सीटों के लिहाज से यूपी के बाद ये दूसरे नंबर पर महाराष्ट्र आता है। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि लोकसभा चुनाव के चलते महाराष्ट्र में सियासी तापमान आने वाले दिनों में बढ़ने वाला है। लोकसभा चुनाव 2024 के लिए महाराष्ट्र को क्यों महत्वूर्ण माना जा रहा है,इसे भी समझ लेते हैं।
- लोकसभा चुनाव 2024: महाराष्ट्र में महाअखाड़ा
- आने वाले दिनों में चढ़ेगा सियासी पारा
- महाराष्ट्र में है लोकसभा की 48 सीट
- यूपी के बाद महाराष्ट्र में सबसे अधिक सीट
- दो धड़े में बंटी एनसीपी और शिवसेना
कहा जाता हैं दिल्ली की सत्ता का रास्ता महाराष्ट्र से होकर जाता है। दरअसल वो इसलिए क्योंकि उत्तरप्रदेश के बाद महाराष्ट्र ही वह राज्य है जहां लोकसभा की सबसे अधिक 48 सीटें हैं। जिस राजनीतिक पार्टी ने यहां अपनी पकड़ बना ली। जिस दल ने यहां परचम लहराया उसके लिए दिल्ली का राश्ता आसान हो जाएगा। महाराष्ट में इस समय गठबंधन की सरकार है। जिसमें बीजेपी के साथ एकनाथ शिंदे गुट और अजित पवार की एनसीपी का गठबंधन सरकार चला रहा है।
महाराष्ट्र में U P के बाद सबसे अधिक लोकसभा सीट
लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर सभी राज्यों में सियासी हलचल बढ़ गई है। लोकसभा सीटों की संख्या के लिहाजा से उत्तरप्रदेश के बाद महाराष्ट्र ऐसा राज्य है जहां सबसे अधिक सीट हैं। 48 सीटों वाले इस राज्य में हर पार्टी चाहेगी की वो ज्यादा से ज्यादा यहां सीटों को अपने नाम कर सके। महाराष्ट्र में लोकसभा 2024 का चुनाव बेहद खास होने वाला है। दरअसल इसकी वजह भी है और वो यह है कि इस बार महाराष्ट्र में कई गुट पहली बार चुनाव मैदन में आमने-सामने होंगे। दो गुटों में बंटी शिवसेना यानी एकनाथ शिंदे और उद्धव ठाकरे चुनावी पिच पर आमने-सामने होंगे। यही नहीं पहली बार एनसीपी में भी दो फाड़ हुई है। महाराष्ट्र में पहली बार होगा जब राज्य में चाचा-भतीजे आपस में चुनावी लड़ाई में टकरायेंगे। उत्तरप्रदेश के बाद महाराष्ट्र इस साल चुनावी युद्ध का मैदान बनने जा रहा है।
NCP – शिवसेना बंटने के बाद पहला चुनाव
महाराष्ट्र में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और शिवसेना जैसी राजनीतिक पार्टियों में आंतरिक विभाजन के बाद लोकसभा का पहला चुनाव होगा। चुनावी मैदान में शिवसेना UBT की ओर से उद्धव ठाकरे होंगे तो वहीं शिवसेना की तरफ से एकनाथ शिंदे की कड़ी टक्कर देखने को मिलेगी। बता दें शिवसेना में जबसे दो फाड़ हुई है तबसे यह दोनों गुट एक दूसरे पर निशाना साधने से नहीं चुक रहे हैं। वहीं शरद पवार वाली एनसीपी भी दो भाग में बंट चुकी है। एक खेमा शरद पवार के वर्चस्व वाला है तो दूसरा गुट अजित पवार का है। यानी इस बार लोकसभा चुनाव में सभी की नजर चाचा और भतीजे पर भी होगी।
पिछले चुनाव में NDA ने जीती थीं 41 सीट
लोकसभा के पिछले 2019 के चुनाव की बात करें तो इस चुनाव में NDA ने 2019 में 48 में से 41 सीट पर कब्जा किया था। ऐसे में NDA महाराष्ट्र में MVA गठबंधन को कड़ी टक्कर दे सकता है। 2019 के लोकसभा चुनावों में एनडीए ने 48 में से 41 सीट पर अपना कब्जाकर महाराष्ट्र में महत्वपूर्ण जीत हासिल की थी।
शिवसेना के बाद अब NCP की बारी
शिवसेना के बागी विधायकों की अयोग्यता पर फैसला आ चुका है। महाराष्ट्र विधानसभा स्पीकर राहुल नार्वेकर ने शिंदे गुट को ही असली शिवसेना बताया है। स्पीकर ने मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे समेत 16 शिवसेना विधायकों को अयोग्य ठहराने की उद्धव ठाकरे गुट की याचिका खारिज कर दी। इस तरह महाराष्ट्र की राजनीति का एक चैप्टर बंद हो गया। हालांकि भले ही महाराष्ट्र की सियासत का एक चैप्टर बंद हो गया है, लेकिन अब दूसरा चैप्टर भी खुलने वाला है। शिवसेना के बाद अब बारी है राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी यानी एनसीपी विधायको की है। शरद पवार की पार्टी एनसीपी ने अजित पवार गुट वाले एनसीपी विधायकों की अयोग्यता को लेकर विधानसभा स्पीकर राहुल नार्वेकर को याचिकाएं दी है। पार्टी सूत्रों के अनुसार एनसीपी विधायकों के अयोग्यता वाले मामले पर 31 जनवरी तक फैसला आ सकता है। स्पीकर इस मामले पर भी फैसला सुनाने को तैयार हैं। विधानसभा सचिवालय के रिकार्ड को देखने से मालूम चलता है कि मामले पर कार्यवाही का आगाज 6 जनवरी को ही हो चुका है। ऐसे में अब इस बात की उम्मीद जताई जा रही है कि इसी महीने 18 जनवरी से पहले एनसीपी के दोनों धड़े गवाहा और शपथ पत्रों की लिस्ट का आदान प्रदान करने वाले है। गवाहों से पूछताछ 20 जनवरी को ही की जाएगी। जबकि उत्तरदाताओं से पूछताछ के लिए 23 जनवरी की तारीख तय की गई है। वहीं अजित पवार गुट वाली एनसीपी के प्रमुख ने कहा कि शिवसेना के मुकाबले एनसीपी का मामला अलग है। शिवसेना का मामला व्हिप की वैधता से जुड़ा हुआ था और सवाल था कि क्या प्रतिद्वंद्वी गुटों की ओर से जारी किए गए व्हिप कानूनी रूप से वैध थे। अजित पवार गुट वाली एनसीपी के प्रमुख ने कहा उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही तब शुरू की गई, जब हमने एनडीए की मीटिंग में हिस्सा लिया। एनसीपी पिछले साल 2 जुलाई को टूट गई थी, जब अजित गुट के विधायक करते हुए एनडीए में शामिल हो गए थे।