लोकसभा चुनाव 2024 में इस बार उत्तर प्रदेश की तस्वीर बदली हुई है। अब तक चुनाव में माफिया और गैंगस्टर का आतंक और दबदबा देखा जाता था लेकिन इस बार के चुनाव में यह फैक्टर बेअसर नजर आ रहा है। यूपी की योगी आदित्यनाथ सरकार के आॅपरेशन माफिया की सफाई का ही असर है कि यूपी के कई हिस्से खासकर पश्चिमी यूपी यानी पूर्वांचल में कई ऐसी जगह हैं जहां प्रचार के लिए प्रत्याशी 30 साल बाद मतदाताओं के बीच वोट मांगने पहुंचे। माफिया के गढ़ में अब अपने लिए प्रत्याशी बैखाफ होकर वोट मांगते नजर आ रहे हैं। जी हां हम बात कर रहे हैं यूपी के पश्चिमी पूर्वांचल क्षेत्र की।
- लोकसभा चुनाव में यूपी के पूर्वांचल में बदली तस्वीर
- अब तक रहता था चुनाव में माफिया का आतंक और दबदबा
- इस बार के चुनाव में बेअसर नजर आ रहा है माफिया फैक्टर
- यूपी सरकार के आॅपरेशन माफिया का असर
- यूपी सरकार के ऑपरेशन माफिया की सफाई का असर
- पूर्वांचल में 30 साल बाद प्रत्याशी पहुंचे मतदाताओं के बीच
- माफिया के गढ़ में अब अपने लिए बेखौफ प्रत्याशी और मतदाता
दरअसल यूपी में इस बार लोकसभा चुनाव 2024 में माफिया और गैंगस्टर का प्रभाव लगभग खत्म हो चुका है। माफिया डॉन मुख्तार अंसारी की जेल में मौत और इससे पहले अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ की मौत ने यूपी में माफियागिरी खत्म कर दी है। बात करें घोसी लोकसभा सीट की तो यहां माहौल बदला हुआ नजर आ रहा है। यह क्षेत्र की मऊ सीट से मुख्तार अंसारी का बेटे और सुभासपा से विधायक अब्बास का है। जो इस समय जेल में बंद है। वहीं सुभासपा भी अब बीजेपी के साथ यानी एनडीए के साथ आ गई है। ऐसे में गाजीपुर में अंसारी परिवार के दबदबे की परीक्षा इस बार के चुनाव में होगी। पिछले साल पुलिस हिरासत में अतीक अंसारी और उसके भाई अशरफ की हत्या के बाद प्रयागराज का माहौल भी इस समय शांत नजर आ रहा है तो जौनपुर सीट से बाहुबली विधायक धनंजय सिंह इस समय जेल में हैं लेकिन उनकी पत्नी बसपा के टिकट पर चुनाव मैदान में नजर आ रहीं हैं। धनंजय सिंह की पत्नी श्रीकला रेड्डी लगातार रोड शो और जनसभा करती नजर आ रही हैं।
हाशिए पर माफिया मुख्तार अंसारी का परिवार
पूर्वांचल की घोसी लोकसभा सीट से सुभासपा के अरविंद राजभर इस बार एनडीए के प्रत्याशी बनाए गए हैं। इस क्षेत्र की मऊ विधानसभा सीट से मुख्तार अंसारी लगातार चुनाव जीत रहा था। तीन चुनाव तो मुख्तार जेल में रहकर ही जीत चुका है। साल 2017 में मुख्तार के खिलाफ चुनाव लड़ चुके बसपा नेता अशोक सिंह का कहना है कि क्षेत्र में दूसरे दल के नेता जा तो सकते हैं लेकिन जैसे ही किसी दूसरे दल के प्रचार की गाड़ी पहुंचती थी। मुख्तार के लोग उसे घेर लेते थे। दहशत के मारे लोग वहां के पास नहीं आते थे। 10 से 25 पोलिंग स्टेशन के लिए एजेंट बनाने में भी उस समय मुश्किलों का सामना करना पड़ता था। मुख्तार का ऐसा ही नेटवर्क गाज़ीपुर सीट पर भी था लेकिन इस बार हालात बदले नजर आ रहे हैं।
अतीक और अशरफ की मौत के बाद पहला चुनाव
प्रयागराज यानी इलाहाबाद लोकसभा सीट की बात करें तो यहां पर अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ का डंका बजता था। शहर के पुराने नेता कहते हैं अतीक के प्रभाव वाले करेली, चकिया हटवा और सुलेमान सराय यह वह क्षेत्र हैं जहां अतीक की परमिशन के बिना कोई प्रचार भी नहीं कर सकता था। यानी प्रचार के लिए भी उस समय अतीक अहमद की परमिशन प्रत्याशियों को लेना पड़ती थी। यह ऐसे इलाके थे जहां 30 साल से किसी दूसरे नेता में अपना प्रचार करने की हिम्मत नहीं दिखाई। सियासी जानकारों की माने तो अतीक अहमद की मौत के बाद यहां का माहौल इस बार बदला हुआ नजर आ रहा है। अब अतीक का नेटवर्क बिखर चुका है। अतीक की बेवा पत्नी शाहिस्ता परवीन दर-दर भटकती फिर रही है। पुलिस से बचने के लिए उसे गुर्गों की मदद लेना पड़ रही है। जिन गुर्गों को कभी अतीक पलता था आज यही गुर्गे अतीक की बेवा पत्नी को पाल रहे हैं। इस बार के लोकसभा चुनाव में अतीक के दबदबे वाले क्षेत्रों में मतदाता खुलकर कहते नजर आ रहे हैं कि सब इस बार अपनी पसंद की पार्टी को मतदान करेंगे।
जेल में धनंजय,पत्नी कर रही प्रचार
यूपी की जौनपुर लोकसभा सीट भी सुर्खियों में है। यहां कभी माफिया और बाहुबली धनंजय सिंह की ब्लैक गाड़ियों का खौफ रहता था। हाल ही में धनंजय सिंह की तीसरी पत्नी श्रीकला रेड्डी ने करीब सो ब्लैक गाड़ियों का काफिला निकला। यह नजारा किसी दक्षिण भारतीय फिल्म की तरह था। पूर्व सांसद धनंजय सिंह अपहण और वसूली के मामले में 7 साल की सजा पाने के बाद इस समय जेल की सलाहों के पीछे है। लेकिन उसकी तीसरी पत्नी श्रीकला रेड्डी जो जिला पंचायत अध्यक्ष भी है और बसपा के टिकट पर वह लोकसभा चुनाव का चुनाव जौनपुर सीट से लड़ रही है। हालांकि जेल में रहने के बाद भी धनंजय सिंह का नेटवर्क अभी खत्म नहीं हुआ है स्थानीय लोग कहते हैं कि क्षेत्र में लोग अभी भी धनंजय के दबाव में है।
UP के पहले माफिया थे हरिशंकर तिवारी,अब नाम भी नहीं कोई जानता
यूपी के पहले माफिया कहे जाने वाले हरिशंकर तिवारी का पश्चिमी यूपी के गोरखपुर डुमरियागंज महाराजगंज तक असर था। पिछले साल लंबी बीमारी के बाद हरिशंकर तिवारी का भी निधन हो चुका है। इससे पूर्वांचल में बदले हुए हालात में चुनाव हो रहे हैं। आजमगढ़ में रमाकांत और उमाकांत यादव दोनों सगे भाइयों का कभी दबजबा था। रमाकांत कांत कभी बसपा सपा और भाजपा से चुनाव जीतता रहा तो उमाकांत ने साल 2004 में मछलीशहर में से चुनाव जीता था। दोनों सगे भाइयों पर अपहरण के दर्जनों के दर्ज हैं। जिनमें अब यह दोनों जेल की सलाखों के पीछे है। इधर- पूर्वांचल की बदायूं बुलंदशहर और संभल लोकसभा क्षेत्र में प्रभाव रखने वाले डीपी यादव का दौर भी खत्म हो चुका है। जिससे चुनावी हालात और तस्वीर जुदा नजर आ रही है। लोग निडर होकर होकर मतदान करने की बात कह रहे हैं।