भारत में आगामी लोकसभा चुनाव.2024 नजदीक आ रहे हैं और अगले तीन महीनों के भीतर नई सरकार आने की संभावना है। इसी आशंका के बीच किसानों ने एक बार फिर अपना विरोध तेज कर दिया है। राजनीतिक हलकों में इस बात पर जोरदार बहस चल रही है कि क्या चुनाव से पहले शुरू किया गया यह नया आंदोलन भाजपा के लिए कड़ी चुनौती पेश करेगा।
- किसान आंदोलन को किसान संगठनों का समर्थन
- दूध सब्जी समेत कई चीजों की हो सकती है किल्लत
- आम किसान यूनियन,किसान जागृति संगठन का समर्थन
- कांग्रेस किसान मोर्चा ने भी दिया आंदोलन को समर्थन
- भारतीय किसान संघ का भारत बंद को समर्थन नहीं
- बीकेयू भी बना तटस्थ,किसानों के मुद्दों पर नजर
आधी रात तक चली किसान संगठनों और केन्द्र सरकार के बीच बेनतीजा रही वार्ता
एमएसपी सहित अपनी विभिन्न मांगों को लेकर पंजाब से दिल्ली कूच कर रहे किसानों के जत्थे को पुलिस और पैरामिलिट्री फोर्स ने हरियाणा दृ पंजाब स्थित शंभू बॉर्डर पर रोक रखा है। पंजाब से लेकर हरियाणा ही नहीं दिल्ली से लेकर यूपी तक हाईअलर्ट जारी कर दिया गया है। किसानों के भारत बंद को टालने के लिए केंद्र सरकार की ओर से किसान संगठनों से गुरुवार शाम बातचीत भी की गई। देर रात करीब डेढ़ बजे तकयह बातचीत चली लेकिन बेनतीजा रही। बंद को देखते हुए दिल्ली से लगी सभी बॉर्डर पर सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किये गये हैं।
किसान संगठनों का भारत बंद का आव्हान
दिल्ली कूच के साथ ही किसान आंदोलन अब आगे बढ़ता नजर आ रहा है। इस बीच किसान संगठनों ने आज शुक्रवार 16 फरवरी को भारत बंद बुलाया है। जिसमें ट्रक और ट्रे़ड यूनियन भी किसानों के साथ खड़ी नजर आ रही है। किसानों का समर्थन करते हुए पंजाब में निजी बस उद्योग की ओर से भी आज अपनी निजी बसें बंद रखने का ऐलान किया गया है। हालांकि इस बंद के दौरान इमरजेंसी व्हीकल्स को ही छूट मिलेगी।
शनिवार को तहसील स्तर पर निकालेंगे ट्रैक्टर ट्राली रैली
किसान संगठनों की ओर से आज शुक्रवार 16 फरवरी को बुलाए गए भारत बंद का असर हरियाणा में दिखाई देने लगा है। हरियाणा में दोपहर 12 से शाम 3 बजे तक सभी ट्रोल फ्री कराने की बात कही है। किसान संगठनों का कहना है वे अब अगले कदम में शनिवार को तहसील स्तर पर ट्रैक्टर ट्राली रैली निकालेंगे।
टिकैत बोले बीकेयू का किसानों के मुद्दे पर है पूरा ध्यान
साल 2020 में किसान आंदोलन का नेतृत्व करने वाले संगठन जैसे कि राकेश टिकैत की भारतीय किसान यूनियन और अखिल भारतीय किसान सभा, इस बार सक्रिय रूप से भाग नहीं ले रहे हैं। भारतीय किसान यूनियन ने स्पष्ट किया कि हालांकि वे सीधे तौर पर चल रहे आंदोलन में शामिल नहीं हैं ,लेकिन वे इसका विरोध भी नहीं कर रहे हैं। टिकैत का कहना है कि बीकेयू का ध्यान पूरी तरह से किसानों के मुद्दों पर केंद्रित है राकेश टिकैत ने इस बात पर जोर दिया कि उनका संगठन पूरी तरह से किसानों के मुद्दों पर केंद्रित है। उनका कहना है कि उनका संगठन सिर्फ किसानों की बात करता रहा है और इसका चुनाव या राजनीतिक दलों से कोई लेना.देना नहीं है। टिकैत ने कहा हम किसानों की मांगों के लिए लड़ते रहे हैं। पहले हमने तीन काले कानूनों का विरोध किया और सरकार को उन्हें वापस लेने के लिए मजबूर किया। अब हमारी लड़ाई अन्य लंबित मांगों के लिए है। उनका दावा है कि मौजूदा आंदोलन एमएसपी पर कानून समेत अन्य लंबित मांगों को संबोधित करने की दिशा में है। राकेश टिकैत ने कहा कि अब सभी संगठन यह सोचने पर मजबूर हो जाएंगे कि जिस तरह से हरियाणा में किसानों पर आंसू गैस के गोले और रबर की गोलियां चलाई गईं और जिस तरह से कीलें और बैरियर लगाए गए हैं स्थापित किया गया।
आंदोलन का चुनाव पर कोई असर नहीं!
वहीं राजनीति पर्यवेक्षकों का कहना है कि वर्तमान आंदोलन में केवल पंजाब के किसान संगठन ही भाग ले रहे हैं, सभी नहीं। कथित तौर पर इन समूहों को पंजाब राज्य सरकार का समर्थन प्राप्त है। चूंकि इस बार सभी किसान संगठन एक साथ नहीं हैं। इसलिए इस आंदोलन का चुनाव पर कोई असर पड़ता नहीं दिख रहा है। चूँकि यह आंदोलन एक राज्य में केवल कुछ संगठनों द्वारा किया जा रहा है। इसलिए इसका अन्य राज्यों में कोई राजनीतिक प्रभाव नहीं पड़ेगा। लोकसभा चुनाव में बीजेपी के लिए ये कोई बड़ी चुनौती नहीं है।
कांग्रेस पर किसानों को भड़काने का आरोप
किसानों के विरोध का बीजेपी पर खास असर नहीं पड़ सकता जबकि आंदोलन का लक्ष्य केंद्र सरकार है। कुछ लोगों का तर्क है कि इसका भाजपा पर कोई खास प्रभाव नहीं पड़ेगा। केंद्रीय कृषि मंत्री अर्जुन मुंडा ने कांग्रेस पर राजनीतिक लाभ के लिए आंदोलन को हवा देने का आरोप लगाया है और कहा है कि यह राजनीति से प्रेरित है। लोकसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए रणनीतिक रूप से समयबद्ध है। मुंडा ने कांग्रेस पर किसानों को भड़काने का आरोप लगाया। फिर भी कुछ राजनीतिक विश्लेषकों का सुझाव है कि भाजपा इस अवधि के दौरान किसानों की चिंताओं को संबोधित करके संभावित रूप से एक रणनीतिक कदम उठा सकती है। उनका तर्क है कि चौधरी चरण सिंह और एमएस स्वामीनाथन को मरणोपरांत भारत रत्न देने जैसी हालिया घोषणाओं को चुनावों से पहले एक व्यापक रणनीति का हिस्सा माना जा सकता है।