लोकसभा चुनाव की सरगर्मी अब बढ़ती जा रही है। 19 अप्रैल को पहले चरण का मतदान होना है। इससे पहले उम्मीदवारों के नाम और नामांकन का दौर जारी है। इस बीच मोदी सरकार में वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने लोकसभा का चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया है। साल 1984 के बाद ऐसे करीब आठ वित्त मंत्री हैं जो चुनाव लड़ने से पीछे हट गए थे। एक लड़े भी तो बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा।
- बढ़ती जा रही लोकसभा चुनाव की सरगर्मी
- 19 अप्रैल को पहले चरण का मतदान
- उम्मीदवारों के नाम और नामांकन का दौर जारी
- वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण का चुनाव लड़ने से इनकार
- 1984 के बाद आठ वित्त मंत्री,जो नहीं लड़े चुनाव
- एक लड़े भी तो बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा
- आखिर वित्त मंत्री क्यों नहीं लड़ते चुनाव
- पूर्व वित्तमंत्री यशवंत सिन्हा से लेकर डॉ.मनमोहन सिंह
- पी.चिदंबरम से लेकर अरुण जेटली तक के नाम शामिल
- 1980 के बाद शुरु हुआ वित्तमंत्री के चुनाव न लड़ने का ट्रेंड
- 1984 में पहली बार चुनाव से दूर रहे दो वित्त मंत्री
- शंकर राव चव्हाण ने बेटे को मैदान में उतारा
- राजीव गांधी सरकार में वित्त रहे शंकर राव चव्हाण
- 1989 में चुनाव लड़ने से पीछे हट गए थे शंकर राव चव्हाण
- वित्त मंत्री से PM बने डॉ.मनमोहन सिंह नहीं लड़े चुनाव
- जसवंत ने नहीं लड़ा चुनाव- यशवंत को मिली हार
- चुनावी राजनीति से दूर रहे पी चिदंबरम
- मोदी सरकार में वित्त मंत्री जटली ने नहीं लड़ा चुनाव
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने लोकसभा चुनाव लाड़ने से साफ मना कर दिया है। हाल ही में एक इंटरव्यू में वित्त मंत्री सीतारमण ने कहा है कि मुझे पार्टी ने तमिलनाडू या आंध्र प्रदेश से चुनाव लड़ने का ऑफर किया, लेकिन उन्होंने काफी सोचने के बाद यह फैसला किया है। सीतारमण के मुताबिक उनके पास न तो चुनाव लड़ने के लिए संसाधन हैं और न ही चुनाव जीतने की कला। हालांकि यह पहली बार नहीं है जब देश के वित्त मंत्री ने लोकसभा चुनाव लड़ने से इनकार किया हो। साल 1984 के बाद कुछ अपवाद को छोड़ दें तो अधिकांश ने वित्त मंत्री रहते या तो लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ा और लड़ा भी तो चुनाव में जीत नहीं मिली। इस सूची में पूर्व वित्तमंत्री यशवंत सिन्हा से लेकर डॉ.मनमोहन सिंह और पी.चिदंबरम से लेकर अरुण जेटली तक के नाम शामिल हैं।
1980 के बाद शुरु हुआ वित्त मंत्री के चुनाव न लड़ने का ट्रेंड
साल 1952 में सीडी देशमुख के कंधों पर वित्त मंत्रालय की कमान थी। हालांकि इसके पांच साल बाद 1957 के आम चुनाव से पहले देशमुख को वित्तमंत्री के पद से हटा दिया गया था। उनके स्थान पर कृष्णामाचारी को वित्त मंत्रालय की जिम्मेदारी मिली। कृष्णामाचारी के बाद मोरारजी ने वित्त मंत्रालय की कमान संभाली। इंदिरा गांधी की सरकार में यशंतराव चव्हाण और सी सुब्रमण्यम जैसे दिग्गज नेताओं ने वित्त मंत्रालय की जिम्मेदारी संभाली थी। लेकिन जब मोरार जी देसाई प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने वित्त मंत्री की कमान हिश भाई पटेल को सौंपी। चौधरी चरण सिंह सरकार में हेमवती नंदन बहुगुणा वित्त मंत्री बनाए गए थे। वहीं 1980 तक वित्त मंत्री लोकसभा के चुनाव लड़ते भी थे और जीत भी हासिल की। लेकिन 1980 बाद वित्त मंत्री के लेकसभा चुनाव नहीं लड़ने वा हारने का ट्रेंड शुरु हो गया।
1984 में पहली बार चुनाव से दूर रहे दो वित्त मंत्री
साल 1980 में इंदिरा गांधी जब तीसरी बार प्रधानमंत्री बनीं तो उन्होंने अपनी सरकार में आर वेंकटरमण और प्रणव मुखर्जी को वित्त मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंपी। प्रणव मुखर्जी वित्त मंत्री बने उस समय वे गुजरात से राज्यसभा सदस्य थे। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद साल 1984 में लोकसभा चुनाव हुए तो दोनों वित्त मंत्री आम चुनाव मैदान से दूर रहे। वेंकटरमण देश के उपराष्ट्रपति बनने की वजह से चुनाव से दूर हो गए, जबकि प्रणव मुखर्जी को राजीव गुट ने अलग-थलग कर दिया था।
शंकर राव चव्हाण ने बेटे को मैदान में उतारा
राजीव गांधी सरकार में वित्त रहे शंकर राव चव्हाण भी 1989 में चुनाव लड़ने से पीछे हट गए थे। चव्हाण जब चुनाव नहीं लड़ने की बात कही। पार्टी ने उनके बेटे अशोक चव्हाण को प्रत्याशी बना दिया। अशोक के सामने जनता पार्टी के के. वेंकटेश को मैदान में उतारा। अशोक चव्हाण यह चुनाव 24 हजार वोट से हार गए थे। दूसरी तरफ राज्यसभा के सहारे शंकर राव चव्हाण सदन पहुंचे। वे 1996 तक राज्यसभा के सांसद रहे। पार्टी ने राज्यसभा में कांग्रेस संसदीय दल का नेता भी बनाया। बाद के दिनों में अशोक चक्राण कांग्रेस के बड़े नेता बन गए।
वित्त मंत्री से PM बने डॉ.मनमोहन सिंह कभी चुनाव ही नहीं लड़े
1991 में कांग्रेस की जब सत्ता में वापसी हुई तो पार्टी ने पीवी नरसिम्हा राव को प्रधानमंत्री बनाया। राव ने अपने कैबिनेट में डॉ.मनमोहन सिंह को शामिल किया। मनमोहन सिंह उस वह किसी भी सदन के सदस्य नहीं थे। उन्हें पार्टी ने राज्यसभा के जरिए सदन में भेजा। मनमोहन सिंह इसके बाद राज्यसभा के जरिए ही राजनीति की। 1996, 2004 और 2009 में सिंह के चुनाव लड़ने की चर्चा थी, लेकिन वे चुनाव नहीं लड़े। 2004 में जब मनमोहन सिंह पीएम बने तब वे राज्यसभा सदस्य थे।
जसवंत ने नहीं लड़ा चुनाव- यशवंत को मिली हार
1999-2004 तक प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की कैबिनट में दो लोगों को वित्त मंत्री बनाया गया था। शुरुआत के साल जसवंत सिंह वित्त मंत्री रहे जबकि बाद में यशवंत सिन्हा को वित्त मंत्रालय सौंपा गया। 2004 में अटल कैबिनेट में वित्त मंत्री रहे जसवंत सिंह चुनाव नहीं लड़े वहीं यशवंत सिन्हा चुनाव तो लड़े लेकिन हजारीबाग सीट से उन्हें हार का सामना करना पड़ा। 2004 के चुनाव में सीपीआई के भानुप्रताप मेहता ने सिन्हा को एक लाख वोटों से हराया।
चुनावी राजनीति से दूर रहे पी चिदंबरम
2004 में पीएम बने डॉ.मनमोहन ने वित्तमंत्रालय खुद रख लिया था। बाद में कैबिनेट में चिदंबरम को वित्त मंत्रालय की जिम्मेदारी दी गई। मुंबई हमले के बाद चिदंबरंम को गृह मंत्रालय की जिम्मेदारी देते हुए वित्त मंत्रालय मनमोहन सिंह ने अपने पास रख लिया। लेकिन 2009 में वे चुनाव नहीं लड़े। यूपीए के दूसरे कार्यकाल में भी दो वित्त मंत्री बने लेकिन दोनों ने चुनाव नहीं लड़ा। मनमोहन सरकार के दूसरे कार्यकाल में प्रणब मुखर्जी को पहले वित्त मंत्री बनाया। वे 2012 में राष्ट्रपति बनाए गए तो यह विभाग पी चिदंबरम के हवाले किया गया लेकिन 2014 के चुनाव में चिवंबरम ने चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया।
मोदी सरकार में वित्त मंत्री जटली ने नहीं लड़ा चुनाव
2014 में नरेंद्र मोदी सरकार में अरुण जेटली वित्त मंत्री बने। वे उस वक्त राज्यसभा से सांसद थे। कुछ महीनों को छोड़ दें तो पांच साल जेटली ही वित्त मंत्री की कुर्सी पर बैठे। 2019 में पीयूष गोयल भी वित्त मंत्री रहे लेकिन दिलचस्प बात है कि साल 2019 के लोकसभा चुनाव में इन दोनों ने चुनाव नहीं लड़ा। अब मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भी लोकसभा चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया है।