लोकसभा चुनाव : लोकतंत्र का जश्न या रिश्तोंं की लड़ाई? कहीं ननद के विरुद्ध भाभी, तो कहीं लड़ रहे भाई-भाई

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लोकसभा चुनाव में इस बार कई सीट ऐसी हैं जहां रिश्तेदार आपस में एक दूसरे के खिलाफ चुनाव मैदान में नजर आ रहे हैं। महाभारत के मैदान में अर्जुन का संकट था कि अपने सगे रिश्तेदारों से वे कैसे युद्ध करें लेकिन चुनाव के मैदान में भी ऐसा ही होता है क्या। हालात देखकर तो ऐसा ही लग रहा है। यहां एक दूसरे को पराजित कर आगे बढ़ाने की चाहत नजर आ रही है। सत्ता पाने की होड़ लगी हुई है। फैमली ड्रामे के इमोशनल अत्याचार में वोटर फंस गया है, फिर भी अत्याचार वाला प्रचार जारी है।

सियासत में दांव पर रिश्ते

सबसे पहले बात करेंगे महाराष्ट्र की। महाराष्ट्र की राजनीति में इस बार कई रिश्ते चुनावी लड़ाई में आमने सामने हैं। ननद के सामने भाभी मैदान आ गई हैं तो भाई के सामने भाई चुनाव मैदान में उतर गया है। वैसे महाराष्ट्र की राजनीति में चाचा भतीजे और भाई भाई के बीच सियासी लड़ाई जगजाहिर है। चाचा शरद पवार की पार्टी एनसीपी टूट चुकी है उसका नाम और निशान छिनने के बाद भी भतीजे अजित पवार रुकने का नाम नहीं ले रहें हैं। अजीत पवार के टारगेट पर अब चचेरी बहन सुप्रिया सुले हैं। सुप्रिया अपने पिता पिता शरद पवार की सीट बारामती से एक बार फिर चुनाव मैदान में हैं। लेकिन अजीत पवार ने बहन के सामने अपनी पत्नी सुनेत्रा पवार को मैदान में उतार दिया है। बारामती अब ननद भोजाई की लड़ाई वाली सीट बन गई है। यहां अजीत पवार की पत्नी सुनेत्रा ने तो हद कर दी। लोकतंत्र के पर्व में भी करवा चौथ टाइप बात करती नजर आ रहीं हैं। वे कह रही हैं कि चुनाव में ननद से लड़कर पति परमेश्वर के प्रति दायित्व पूरा कर रहीं हैं। सुप्रिया सुले ठहरीं ननद तो वे भी पूरे तेवर में नजर आ रहीं है। सुप्रिया ने कहा किसांसद के तौर पर बारामती में उनके पिता ने बहुत काम किया है। 18 साल उन्होंने भी यहां पसींन बहाया। 18 साल पहले भी चुनाव से पहले यहां सभी से पूछा गया था लेकिन कोई सांसद बनकर दिल्ली नहीं जाना चाहता था। अगर 18 साल उन्होंने काम किया है तो सांसद के तौर पर अब उन्हें ही मौका मिलना चाहिए।

महाराष्ट्र की सियासत में भाई के खिलाफ भाई

महाराष्ट्र में चाचा भतीजा और ननद भाभी के रिश्तों में कड़वाहट तो चली रही है। ठाकरे परिवार के दो भाई उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे आमने-सामने आ गए हैं। उद्धव ठाकरे के सामने चचेरे भाई राज ठाकरे बीजेपी के साथ जाकर खड़े हो गए हैं। बाल ठाकरे के निधन के बाद शिवसेना को लेकर दोनों भाइयों में टकराहट और अलगाव नजर आया। बहुत पहले दोनों के बीच अलगाव भी हो चुका है। इसी अलगाव को लेकर अब रास्ते भी अलग हो गए हैं खासकर सियासी तौर पर।

चुनाव के टिकट ने बेटी को किया पिता से बेगाना

अब बात करेंगे उत्तर प्रदेश की। जहां चुनाव के टिकट ने बेटी को पिता से बेगाना कर दिया है। कहते हैं बेटी के आंसू पिता का कलेजा छलनी कर देते हैं लेकिन यहां राजनीति का मारा एक पिता अपनी बेटी के रिश्ते को काटने की धमकी देते नजा आ रहा है। जी हां बेटी है संघमित्रा मौर्य जो बदायूं से बीजेपी की संसद थी। लेकिन इस बार बीजेपी ने उनका टिकट काट दिया है। क्योंकि बीजेपी छोड़ने के बाद से स्वामी प्रसाद मौर्य लगातार बीजेपी के खिलाफ जहर उगलते रहे है। बयान बाजी करते रहे हैं। ऐसे में पिता की गलती का खामियाजा बेटी को उठाना पड़ा। सजा बेटी को मिली वह भी टिकट काटकर। संघमित्रा मौर्य इतनी आहत हुईं के पार्टी के मंच पर ही उनके आंसू निकल आए। वे भावुक हो गईं। पिता की पॉलिटिक्स की वजह से बेटी का टिकट कट गया। फिर भी पिता बेटी के रोने पर उसे खरी खोटी ही सुना रहे हैं। स्वामी प्रसाद मौर्य ने कहा उन्हें अपनी बेटी को बेटी करने में शर्म आ रही है जो मंच पर रोकर अपने पिता के चरित्र के विपरीत अपना आचरण कर रही है। स्वामी प्रसाद मौर्य कहते हैं बेटी होने का मतलब यह थोड़ी की उसकी हर गलतियां माफ कर दें। रोना-धोना बहुत बचकानी चीज है, वे इसे अच्छा नहीं मानते।

ओपी राजभर के बड़बोलेपन की सजा बेटे को!

यूपी की राजनीति में मसाला बेटी का ही नहीं है। यूपी की राजनीति में एक बेटे को भी अपने पिता के बड़बोलेपन की सजा मिल रही है। अब बात कर रहे हैं यूपी की घोसी लोकसभा सीट की। जहां से अरविंद राजभर को टिकट मिला है। इनके पिता का नाम ओपी राजभर है जो योगी सरकार में मंत्री हैं। कुछ दिन पहले समाजवादी पार्टी में थे। पाला बदलने का फायदा हुआ और योगी सरकार में मंत्री बने। लेकिन बेटा जब मैदान में उतरा तो बीजेपी कार्यकर्ता विरोध में खड़े हो गए। ओपी राजभर के पार्टी विरोध बयान सुने और सुनाए जाने लगे। बीजेपी विरोधी बयान सुनकर कार्यर्काओं को बुरा भी लगता था। मौका चुनाव का है हालत नाजुक हैं तो पिता के गोलमाल को ढंकने के लिए बेटे को घुटने पर झुक कर माफी मांगना पड़ी। अब पार्टी हाई कमान का आदेश आया तो वर्कर और नेता ही नहीं मतदाता भी दिल पर पत्थर रखकर वोटिंग का इंतजार करते नजर आ रहे हैं।

आंध्रप्रदेश में भी भाई के खिलाफ मैदान में उतरी बहन

अब बात करेंगे आंध्र प्रदेश की। जहां आंध्र प्रदेश की राजनीति में भी भाई और बहन के रिश्ते के बीच सियासी जंग बढ़ गई है। सीएम जगनमोहन रेड्डी के सामने लोकसभा और विधानसभा चुनाव की दोहरी चुनौती है। बीजेपी और टीडीपी गठबंधन पहले से ही टक्कर दे रहा है लेकिन कांग्रेस ने आंध्रप्रदेश के सीएम जगनमोहन के सामने उनकी बहन वाईएस शर्मिला को चुनाव मैदान में खड़ा कर दिया है। सीएम भाई जगन मोहन और बहन शर्मिला के बीच कड़वाहट बढ़ गई है। चुनाव प्रचार के दौरान शर्मिला अपने सीएम भाई जगन मोहन रेड्डी पर हत्या की राजनीति को बढ़ावा देने का आरोप लगा रहीं है। क्योंकि आंध्रप्रदेश की कडप्पा सीट से जगमोहन ने अपने चचेरे भाई को चुनाव मैदान में उतरने की फैसला लिया है। जिसके पिता पर अपने ही भाई की हत्या का आरोप है। इसलिए शर्मिला का यह आरोप है। वाईएसआर परिवार में भी चाचा भतीजी चचेरी बहन और चचेरे भाई एक दूसरे के खिलाफ चुनाव मैदान में खड़े हैं।

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