लोकसभा चुनाव में इस बार मुसलमान के वोट पर सियासत हो रही है। बात करें बिहार की यहां मुसलमान को रिझाने में नीतीश कुमार से लेकर इंडिया गठबंधन और एनडीए के नेता जुटे हुए हैं। 2019 और 2020 में भी नीतीश ने मुसलमान को साधने में कई तरह के प्रयोग किए थे। जिसमें उन्हें नाकामी हाथ लगी थी। बिहार के मुसलमान के सियासी रसूख को एक बार फिर से उजागर कर दिया है।
- बिहार में लोकसभा की 40 सीटें
- 17 सीट पर मुस्लिम मतदाताओं का बोलबाला
- रखते हैं जीत को हार में बदलने की ताकत
- आबादी में प्रतिशत का हिसाब
- किशनगंज में सबसे अधिक मुस्लिम मतदाता
- किशनगंज सीट पर 68 फीसदी
- कटिहार में 43 फीसदी
- अररिया में 42 फीसदी
- पूर्णिया में 38 फीसदी
- मधुबनी में 26 फीसदी
- दरभंगा में 23 फीसदी
- सीतामढ़ी में 21 फीसदी
- पश्चिमी चंपारण में 21 फीसदी
- पूर्वी चंपारण में 19 फीसदी
- सीवान में 18 फीसदी मुस्लिम मतदाता
दरअसल 40 लोकसभा सीटों वाले बिहार में काम से कम 17 लोकसभा सीट ऐसी हैं। जहां मुसलमान हर और जीत में एक बड़ी भूमिका निभाते रहे हैं। जाति आधार पर राजनीति करने वाले बिहार में मुसलमान को पसंगा भी माना जाता है। पसंगा यानी तराजू का वह पत्थर होता है जिस तरफ रखा जाता है उसे तरफ का भार बढ़ जाता है। बिहार की वह सीट जहां मुसलमान मतदाताओं का दबदबा है। ऐसी 10 सीट हैं। जहां करीब 18 फ़ीसदी से अधिक मुसलमान वोटर हैं। इन सीटों में किशनगंज सीट सबसे अधिक सुर्खियों में रहती है। क्योंकि यहां करीब 68 फ़ीसदी मुस्लिम मतदाता निवास करते हैं। इसी तरह कटिहार और अरिया के साथ पूर्णिया सीट पर करीब 40% के आसपास मुसलमान वोटर हैं। 2019 से पहले बिहार के तीन से चार मुस्लिम नेता हर लोकसभा चुनाव में जीतकर देश की संसद में पहुंचते थे। किशनगंज सीमांकन सीमांचल इलाके के इस सीट की गिनती देश के सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी वाली सीटों में होती है। 1967 का चुनाव छोड़ दिया जाए तो यहां से हर बार मुस्लिम प्रत्याशी ही चुनाव में जीत कर सांसद बनते रहे हैं। 2009 में यहां से कांग्रेस नेताओं को जीत नेताओं को जीत मिली थी। 2009 से यहां लगातार कांग्रेस के प्रत्याशियों को जीत मिलती रही है। 2019 में भी मोदी लहर के बीच यहां मुस्लिम समुदाय के नेता ही जीत कर लोकसभा पहुंचे। किशनगंज लोकसभा सीट में करीब 6 विधानसभा सीट शामिल है और वर्तमान में इन सभी 6 विधानसभा सीटों में मुस्लिम विधायक हैं। कटिहार लोकसभा सीट की बात करें तो यह एक मुस्लिम बाहुल्य सीट है। यहां करीब 43% मुस्लिम मतदाता निवास करते हैं। 1952 से लेकर अब तक छह बार इस सीट पर मुस्लिम प्रत्याशियों ने ही जीत तर्ज की है। चाहे वह पूर्व केंद्रीय मंत्री तारीख अनवर हो या कोई दूसरा बता दे तारीख अनवर यहां पांच बार सांसद रहे हैं। 2019 में तारीख अनवर जदयू के दुलाली चंद गोस्वामी से चुनाव हार गए थे। वही इंडिया गठबंधन की ओर से तारीख एक बार फिर इस चुनाव में प्रत्याशी के तौर पर अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। कटिहार में 6 विधानसभा सीट हैं। जिनमें से चार हिंदू समुदाय और दो अल्पसंख्यक समुदाय के विधायक सीमांचल की लोकसभा सीट है। यह मुस्लिम माहौल है यहां पर मुसलमान की आबादी करीब 42 फीस दिए 2014 में यहां पहली बार किसी मुस्लिम प्रत्याशी को जीत का सेहरा पहने को मिला था राजद के तस्लीमुद्दीन ने उसे समय भाजपा के प्रदीप कुमार को चुनाव में परास्त किया था। इस बार तस्लीमुद्दीन के बेटे शाहनवाज को राजद ने प्रत्याशी बनाकर चुनाव मैदान में उतारा है।
दरभंगा में किसी ने नहीं उतारा मुस्लिम प्रत्याशी
मधुबनी लोकसभा सीट भी मुस्लिम बाहुल्य मानी जाती है। यहां मुस्लिमतदाताओं की संख्या करीब 26 फीसदी है। 1952 से अब तक करीब चार बार मुस्लिम प्रत्याशी ही चुनाव में जीत दर्ज कर करते रहे। दो बार पूर्व केंद्रीय मंत्री शकील अहमद ने चुनाव जीता। इस बार बीजेपी ने अशोक यादव तो इंडिया गठबंधन से राजद के अली अशरफ आजमी को उम्मीदवार बनाया है। यहां की बस्ती मधुबनी और हरलाखी विधानसभा सीट मुस्लिम बाहुल्य है। सीट की बात करें तो बिहार में बिहार की सीट पर मुस्लिम वोटरों का दबदबा है। दरभंगा में कभी 23 प्रतिशत आबादी मुसलमान की है। अभी हां 6 बार मुस्लिम प्रत्याशी चुनाव में जीत दर्ज कर चुके हैं। दिलचस्प पहले यह है कि 1952 के चुनाव में भी इस सीट से मुस्लिम समुदाय के अब्दुल जलील ही सांसद चुने गए थे। हालांकि इस बार बड़ी पार्टियों ने यहां किसी मुसलमान को टिकट नहीं दिया है। बीजेपी की ओर से ब्राह्मण समुदाय के गोपाल जी ठाकुर और राजद के अहीर समाज से ललित यादव को प्रत्याशी बनाया। इस बार बड़ी पार्टियों ने यहां किसी मुसलमान को टिकट नहीं दिया है। बीजेपी की ओर से ब्राह्मण समुदाय के गोपाल ठाकुर और राजद के अहीर समाज से ललित यादव को प्रत्याशी बनाया है।
मुस्लिम समुदाय का दबदबा फिर भी नहीं मिली जीत
सीतामढ़ी लोकसभा सीट पर भी मुसलमान का दबदबा माना जाता है। यहां करीब 21 फ़ीसदी मुसलमान रहते हैं हालांकि इसके बावजूद अब तक इस सीट से कोई भी मुस्लिम नेता सांसद बनने में कामयाब नहीं हुआ। हालांकि हार्ड हार्ड हिंदुत्व पार्टी को यहां से जीत नहीं मिली है। वहीं बेतियां सीट पर दो बार मुस्लिम समुदाय के प्रत्याशी ने चुनाव जीत कर संसद की सीढ़ी चढ़े। लेकिन नए परिसीमन के बाद पार्टियों ने यहां मुसलमान को टिकट देने से किनारा कर लिया है।इसी तरह पूर्वी चंपारण सीट पर 2008 से पहले मोतिहारी नाम से मशहूर थी। इस पर भी मुस्लिम समुदाय का दबदबा था। हालांकि यहां कोई भी मुस्लिम नेता चुनाव नहीं जीत पाया। इस बार 21 फ़ीसदी वाले इस लोकसभा क्षेत्र से बीजेपी ने राधा मोहन सिंह और इंडिया गठबंधन ने राजेश कुशवाहा को चुनाव मैदान में उतारा है। सीवान सीट पर 18 फीस थी मुसलमान निवास करते हैं। । इस सीट पर 9 बार मुस्लिम समुदाय के नेताओं को जीत मिली चार बार बाहुबली नेता शहाबुद्दीन यहां सांसद रहे। हालांकि इस बार सीवान का राजनीतिक समीकरण बदल हुआ है। जेडीयू ने रमेश कुशवाहा तो आरजेडी ने अवध बिहारी चौधरी को चुनाव मैदान में उतारा है।