लोकसभा चुनाव 2024 के पहले और दूसरे चरण में प्रचार के दौरान आरोप प्रत्यारोप और बयान की जमकर बयार बही। चुनावी मंच से हिंदू मुसलमान हुआ। घुसपैठियों पर भी जमकर बयानबाजी हुई। मंगलसूत्र से लेकर पाकिस्तान प्रेम तक मंच से उछाला गया। फिर तीसरे चरण में लड़ाई शहजादे और शहंशाह पर आ गई। लड़ाई को मतदाता ने देखा सुना भी। इसे लेकर जमकर प्रचार में उछलते देखा गया। सबसे मजेदार यह है कि कोई भी मुद्दा रियलइश्यू के नजदीक नहीं था। यह रियल इश्यू से बहुत दूर था। बल्कि भावनात्मक मुद्दों को भी दरकिनार कर दिया गया। तीसरे चरण के ठीक बाद चौथे चरण की चुनाव की तैयारी जोरों पर है। इस चौथे चरण में दो उद्योगपति का नाम चुनावी बहस में शुमार हो गया है। अंबानी और अडानी। गौतम अडानी और मुकेश अंबानी दोनों ने इस चुनावी बहस में एंट्री ले ली है। यह एंट्री कहां से हुई यह तेलंगाना के करीमनगर से हुई। जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बड़ा बयान दिया और राहुल गांधी पर प्रहार किया। प्रधानमंत्री ने कहा पिछले पांच साल से कांग्रेस के शहजादे दिन-रात एक माला जपते थे। उद्योगपति अंबानी अदानी के नाम की लेकिन जब से चुनाव घोषित हुआ है इन्होंने अंबानी अडानी को गाली देना बंद कर दिया आखिर क्यों। प्रधानमंत्री ने कहा वह कांग्रेस के शहजादे से पूछना चाहते हैं कि उन्हें अडानी अंबानी से कितना माल मिला। कितना माल उठाया। काले धन के कितने बोरे भरकर लूटेगए। मांगे गए। और सबसे बाद में प्रधानमंत्री यह कहा क्या टेंपो भर के चोरी का माल आपने छुपाया है। कांग्रेस पार्टी को चुनाव के लिए उन उद्योगपतियों से कितना धन प्राप्त हुआ बताना पड़ेगा। यह हुंकार भरी प्रधानमंत्री ने तेलंगाना के करीमनगर से।
- तीसरे चरण में लड़ाई शहजादे और शहंशाह
- करीमनगरी की सभा से बदली सियासी बयानों की हवा
- पीएम ने पूछा था अडाणी अंबानी को गाली देना बंद क्यों कर दिया
- प्रियंका गांधी वाड्रा ने किया पलटवार
- कहा—हम हर दिन सामने रखते हैं अडाणी अंबानी की सच्चाई
उसके बाद सिलसिले वार तरीके से कांग्रेस ने जवाब देना शुरू कर दिया। सबसे पहले प्रियंका गांधी वाड्रा सामने आईं और बोलीं कि हम तो हर दिन बताते हैं कि भाजपा बड़े उद्योगपतियों की सरकार है। भाजपा की सरकार ने अपने दोस्तों का 16 लाख करोड़ रुपए का कर्ज माफ कर दिया। राहुल गांधी आए दिन अंबानी अडानी की बात कर रहे हैं। उनकी सच्चाई जनता के सामने लाते हैं। यह प्रियंका गांधी ने सबसे पहले जवाब दिया था। उसके बाद सिलसिलेवार तरीके से कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और पवन खेड़ा के साथ दूसरे प्रवक्ताओं ने जवाब दिया। मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा वक्त बदल गया है दोस्त दोस्त ने रहा ना रहा। तो वहीं पवन खेड़ा याद दिलाते हैं नजर आए कि राहुल गांधी 3 अप्रैल के बाद से अब तक 103 बार अडानी का और 30 बार अंबानी का नाम ले चुके हैं। कुल मिलाकर चौथे चरण में चुनावी लड़ाई टोटल उद्योगपतियों पर यानी देश के कॉर्पोरेट पर शिफ्ट हो गई है। ऐसे में सवाल है कि इस आरोप के पीछे चाहे वह राहुल गांधी कहते हो या बीजेपी ने कहा हो। इसके पीछे की सच्चाई क्या है। हम पिछले कुछ आंकड़ों को देखें तो सच्चाई सामने आ जाती है। क्या वाकई उद्योगपतियों को लेकर या कॉर्पोरेट को लेकर हर सरकार थोड़ी सी दरियादिली रखती है। क्या उद्योगपतियों के प्रति।
2014 से 2023 तक 14 लाख 56 हजार करोड़ का कर्ज बट्टे खाते डाला
कुछ आंकड़ों पर हम नजर डालते हैं जो चुनावी बहस से हटकर है। सबसे पहले जो यूपीए का 10 साल का कामकाज है उस पर नजर डालते हैं। मनमोहन सरकार के दौरान राइट ऑफ हुआ लोन 2 लाख 20 हजार करोड़ का 2014 तक। फिर आई प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार। जिसमें 2015 से 2019 तक 7 लाख 94 हजार करोड़ का लोन राइटऑफ किया गया। यह जानकारी आरटीआई के तहत रिजर्व बैंक ने जारी की है। 2019 से 2023 तक संसद में जानकारी दी गई की 14 लाख 56 हजार करोड़ का कर्ज बट्टे खाते में डाला गया 2023 तक। आंकड़ों पर नजर आंकड़ों पर नजर डालें तो दोनों सरकार के दौरान जो पैसा बटटे खाते में डाला गया। उसमें बड़ा अंतर है। यह आरबीआई की ओर से आरटीआई के तहत दी गई जानकारी में खुलासा है। कांग्रेस कई बार आरोप लगा चुकी है कि कॉरपोरेट टैक्स में कटौती हुई। उद्योगपतियों का टैक्स में कटौती की गई किसानों का कर्ज माफ नहीं हुआ। कॉरपोरेट टैक्स की बात करें तो सितंबर 2019 में जीएसटी काउंसलिंग की मीटिंग हुई। जिसमें यह घोषणा की गई इसके बाद 2019 में एक अध्यादेश आया अध्यादेश के जरिए कॉरपोरेट टैक्स की आधार दर जो बेसिक दर थी उसको घटकर 30 परसेंट से 22% कर दिया गया। यह 2019 में एक ऑर्डिनेंस के जरिए किया गया। जिससे सरकार को राजस्व की हानि हुई 1 लाख 45 हजार करोड़ का। इस पर भी कांग्रेस बड़ी हमलावर रहती रही है।
2014 से 2024 तक उद्योगपतियों की नेटवर्थ में इजाफा
गौतम अडानी का जिक्र किया जाए तो 2014 में यह नेटवर्थ थी 7.01 अरब डॉलर और अब 2024 में हम आंकड़ा देखते हैं तो यह नेटवर्थ करीब 150 अरब डॉलर बढ़ गई। सारी चीज एक तरफ इशारा करती है कि कॉर्पोरेट पर दरियादिली ही दिखाई गई। कॉर्पोरेट फ्रेंडली सरकार है। लेकिन फिर सवाल कांग्रेस से भी खड़ा होता है। कर्नाटक में उसकी सरकार बनी तो कर्नाटक में अदानी या अंबानी के लिए या फिर उद्योगपतियों के लिए रेड कारपेट बिछाया दिया गया। जिनकी कभी मुखालफत पर कांग्रेस करती रही थी। कांग्रेस के शासन में छत्तीसगढ़ और राजस्थान में भी यही सब हुआ। जब निवेश आया तो उद्योगपति के लिए रेड कारपेट बिछाया गया। राजस्थान में तकरीबन 1 लाख करोड़ का इन्वेस्टमेंट हुआ। सबसे बड़ी बात यह है कि उद्योगपति हमारे देश की इकोनॉमी में एक बड़ा रोल प्ले करते हैं।
देश के किसानों पर 21 लाख करोड़ का कर्ज!
उद्योगपतियों का जो साथ है वह देना बुरा है या गलत है यह बहस का अलग मुद्दा है। लेकिन सवाल यह खड़ा होता है कि फिर इस देश का गरीब किसान भी इसी दरियादिली का हकदार है। क्योंकि देश के किसानों पर भी 21 लाख करोड़ का कर्ज है। देश का हर किसान इस देश का तकरीबन हर किसान 1 लाख 35000 रुपये कर्ज के बोझ के नीचे दबा है। सवाल है कि गरीब किसान आखिर क्यों इस रहम का। इस दरिया दिली का हकदार नहीं है। यह एक बड़ा सवाल है क्योंकि चुनाव है तो चुनाव में जिस तरीके से बहस शिफ्ट होती दिख रही है तो हकीकत क्या है फसाना क्या है इसे समझना बहुत जरूरी है।