राजनीति में किसी न किसी बहाने विवाद होना आम बात है। विवाद के लिए नेता बहाना ढूंढते हैं। जैसे ही मौका मिलता है बयानबाजी शुरु हो जाती है। ऐसा ही कुछ कांग्रेस और यूपीए में शामिल कई दल और उनके नेताओं में आपसी टसन शुरु होती बताई जा रही है। हालांकि इसके पीछे कोई बहुत बड़ा कारण नहीं है। एक छोटे से विवाद को लेकर कई दिग्गज नेता आमने सामने दिखाई दे रहे हैं। यूपीए का नाम बदलने को लेकर ये विवाद उस समय शुरु हुआ है जब पटना में विपक्षी दलों की बैठक आयोजित होने के पहले यूपीए की एक बैठक हुई जिसमें कुछ इस तरह के विवाद सुनाई दिए।
कांग्रेस की बैठक में कई मुद्दों पर हुई चर्चा
पटना में विपक्षी दलों की बैठक के बाद तय हुआ कि अब आगामी बैठक शिमला में आयोजित की जाएगी। इसके पहले कांग्रेस की बैठक में कई मुदृों पर गंभीरता से चर्चा की गई। इसी आधार पर शिमला में कई दिग्गज नेताओं को बैठक में शामिल होने पर जोर दिया गया। पार्टी से जुड़े एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि बैठक में शिमला में होने वाले गठबंधन के अलावा और भी बहुत सारे मुद्दों पर चर्चा की गई है। इसमें तेलंगाना समेत अन्य राज्यों में चुनाव की रणनीति तय की गई। इस दौरान तेलंगाना के पूर्व मंत्री और पांच बार के विधायक जेपीके राव, पूर्व सांसद पोंगुलेटी श्रीनिवास रेड्डी समेत राज्य के तीन दर्जन बड़े प्रमुख नेता कांग्रेस में शामिल हुए।
यूपीए का नाम पीडीए करने पर घमासान
कांग्रेस की बैठक में यूपीए का नाम बदलकर पीडीए करने का भी मुद्दा उठा। इस पर कई नेताओं ने आपत्ति दर्ज करा दी। हालांकि कुछ नेताओं का कहना था कि नाम बदलने में कोई हर्ज नहीं है और समय रहते चीजें अपडेट होती रहना चाहिए। यूपीए का नाम बदलकर पीडीए यानी पेट्रियोटिक डेमोक्रेटिक एलाएंस करने पर असहमति दिखाने वाले नेताओं का कहना था कि कांग्रेस की पुरानी सरकारें अपने सियासी गठबंधन में यूपीए के नाम से ही पहचानी गई है और उसकी चेयरपर्सन सोनिया गांधी हैं। ऐसे में अगर यूपीए का नाम बदला जाता है तो पीडीए का पूरा सिस्टम नए सिरे से गठित होगा। पार्टी से जुड़े वरिष्ठ नेता कहते हैं कि कई लोग यह नहीं चाहते हैं कि इसका नाम बदला जाए। हालांकि सूत्रों के मुताबिक राहुल गांधी इस बनने वाले नए गठबंधन में किसी भी तरीके की कोई बड़ी शर्त लगाना नहीं चाहते हैं।
2004 में गठित हुआ था यूपीए
यूपीए का मतलब संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन है जो कई पार्टियों का संयोजन है जो चुनाव में एक सीट हासिल करने के लिए एक साथ आते हैं। यह स्थिति उन स्थितियों में उत्पन्न होती है जब आम चुनाव के दौरान कोई भी राजनीतिक दल एक भी विजयी बहुमत प्राप्त नहीं करता है। ऐसी ही स्थिति 2004 के आम चुनाव के दौरान उत्पन्न हुई थी जब किसी भी राजनीतिक दल के हाथ में जीतने वाली सीट नहीं थी। इससे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन के रूप में उदय हुआ और इसमें दस से अधिक दल शामिल हो गए। कथित तौर पर कई पार्टियों के इन गठबंधनों के कारण 2004 के चुनाव में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को विजयी बहुमत मिला, जिसके दौरान सोनिया गांधी अध्यक्ष थीं।