बिहार लोकसभा चुनाव के पहले और दूसरे चरण की वोटिंग हो चुकी है। पहले चरण में बिहार के चार सीट पर वोटिंग हुई ,तो वही दूसरे चरण में पांच सीट पर वोटिंग हुई। दोनों ही फेज में वोटिंग की प्रतिशत काफी कम नजर आया। जिसमें की पहले फेज में कुल 48% वोटिंग हुई तो वहीं दूसरे फेज में कुल 58.58% वोटिंग हुई। जो की 2019 की लोकसभा चुनाव की वोटिंग प्रतिशत से लगभग 10 प्रतिशत कम है। हालांकि बिहार की आवादी और सीटो की संख्या दोनों ही ज्यादा है, फिर भी वहां 70 प्रतिशत तक भी वोटिंग नहीं हो रही।
बिहार में भी कम वोटिंग ने बढ़ाई चिंता
फेज में 48% वोटिंग हुई
दूसरे फेज में 58.58% वोटिंग हुई
2019 की तुलना में घट गया वोटिंग प्रतिशत
लगभग 10 प्रतिशत कम हुई इस बार वोटिंग
क्या माइग्रेशन या पलायन है बड़ी वजह
वोटिंग प्रतिशत कम होने की हैं कई वजह
13 करोड़ से ज्यादा आबादी वाले राज्य बिहार में बढ़ती आबादी के साथ वोटिंग प्रतिशत साल दर साल कम होता नजर आ रहा है। इसके पीछे की एक खास वजह है माइग्रेशन या पलायन, यहां की कुल आबादी में से 50 लाख से ज्यादा लोग अपना राज्य छोड़ कर दूसरे राज्य में जा बसे है। कुछ लोग रोजगार की तलाश में तो कुछ हायर एजुकेशन के लिए बिहार से बाहर जा चुके है। जब राज्य के युवा राज्य में होंगे ही नहीं तो वोट देंगे कैसे। बिहार के पिछड़ा राज्य होने का एक मूल कारण है बेरोजगारी । सालों से बोरोजगारी से परेशान यहां के युवा हर बार चुनाव से पहले नई सरकार से यही उम्मीद लगाते है कि आने वाली सरकार राज्य में रोजगार लाएगी और युवाओं को नई अपॉर्चुनिटी मिलेगी, लेकिन ऐसा हो नहीं रहा। आज भी बेरोजगारी की वजह से लाखों की तादात में युवा दूसरे राज्य में शिफ्ट हो रहे है। बात करे बिहार के एजुकेशन सिस्टम की तो उसका हाल भी बदहाल ही है। 10वीं के बाद से ही बच्चे अपनी आगे की पढ़ाई के लिए अपना घर छोड़कर दूसरे राज्य में बस रहे हैं। इन सब के पीछे बिहार की राजनीति एक बड़ी वजह है।
डबल इंजन सरकार..फिर भी बदहाल बिहार
दूसरा बड़ा कारण है बिहार का राजनीतिक सिस्टम। ज्यादातर स्थानीय और क्षेत्रीय दल है। जिनके नेता केवल सत्ता के लिए बार बार दलबदल करते रहते है। जिससे जोड़तोड़ कर सरकार ते बन जाती है। नेताओं को सत्ता का सुख मिल जाता है। लेकिन जनता की परेशानियां जहां की तहां बनी रहती है। मौजूदा सरकार की बात करें तो मुख्यमंत्री नीतिश कुमार सीएम पद की नौ बार शपथ ले चुके है। 2005 से लेकर अब तक नीतिश कुमार ही मुख्यमंत्री है। जिनका कार्यकाल सबसे लंबे समय से चल रहा है। नीतीश कुमार का सत्ता में रहने का अपना ही स्टाईल है। अपने जुब़ा से जाएं पर सत्ता से न जाएं। यही वजह है कि एनडीए से गठबंधन के बाद नीतीश कुमार को सोशल माडिया पर जमकर ट्रोल भी किया गया था। वहीं नीतीश कुमार दलबदलू और पार्टी बदलू के नाम से भी इसलिए जाने जाते है क्योंकि सत्ता में बने रहने के लिए इन्होंने कई बार पार्टी बदली है। कभी एनडीए छोड़ कर राजद को ज्वाइन किया तो कभी राजद को छोड़ फिर एनडीए का दामन थाम लिया। इस बीच बिहार में कितना विकास हुआ। कितना रोजगार मिला इसका सवाल न विपक्ष ने पूछा न सत्ता पक्ष ने जनता को जवाब दिया। बिहार की राजनीति की इसी सिस्टम के चलते राज्य के हाल बेहाल हो गए।
आगे भी कम वोटिंग की आशंका!
जब तक बिहार में सरकारें युवाओं को रोजगार नहीं देती। जनता को शिक्षा और स्वास्थय की सुविधाएं नहीं देती तब तक बिहार में पलायन इसी तरह जारी रह सकता है। और अगर हालात ऐसे ही बने रहे तो आने वाले दिनों में युवा मतदाता का चुनाव से रुझान खत्म हो सकता है और वोटिंग प्रतिशत और कम होनी की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता।
प्रकाश कुमार पांडेय