नरेंद्र मोदी सरकार ने लेटरल एंट्री के जरिए भर्ती वाले विज्ञापन को वापस ले लिया है। इसके जरिए भारत की शीर्ष नौकरशाही में 45 पदों पर लेटरल एंट्री के जरिए भर्ती होना थी।
*यूपीएससी ने वापस लिया नोटिफिकेशन
पीएम मोदी के आदेश पर यूपीएस सी ने लेटर एंट्री के नोटिफिकेशन को वापस ले लिया है। कार्मिक मंत्री जितेंद्र सिंह ने यूपीएससी की चेयरमेन प्रीति सुदन को पत्र लिखकर नोटिफिकेशन वापस लेने की बात कही। हांलाकि इस मामले में सरकार लगतार यूपीए सरकार की याद दिला रही है। लेटर में जितेन्द्र सिंह ने लिखा कि लेटरल एंट्री की परंपरा यूपीए सरकार से ही शुरू हुई है। 2005 में यूपीए सरकार ने राष्ट्रीय सलाहकार परिषद बनाई थी जिसकी अध्यक्ष सोनिया गांधी थी।
*NAC थी सुपर कैबिनेट
मंत्री जितेन्द्र सिंह ने अपने पत्र मे लिखा कि राष्ट्रीय सलाहकार परिषद की अध्यक्ष सोनिया गांधी थी और इसके जरिए पीएमओ को कंट्रोल किया जाता था और ये सुपर ब्यूरोक्रेसी की तरह काम करती थी। जितेंद्र सिंह के मुताबिक इसके सदस्यों को भी लेटरल एंट्री के ही जरिए लिया जाता था। यूपीए सरकार के समय राष्ट्रीय सलाहकार परिषद को लेकर हमेशा सवाल उठते थे साथ ही ये आरोप भी लगता था कि सोनिया गांधी परिषद के जरिए मनमोहन सरकार को कंट्रोल करती थी।
*कैसे काम करती थी यूपीए की NAC
यूपीए सरकार के गठन के साथ ही दून 2004 में राष्ट्रीय सलाहकार परिषद बनी। ये मनमोहन सरकार के पूरे दस साल के कार्यकाल तक 2014 तक रही। इसकी चेयपर्सन सोनिया गांधी थी । सोनियां गांधी के अलावा इस परिषद में कई सारे अर्थशास्त्री, प्रोफेसर,राजनेता उद्योगपति और नौकरशाह शामिल थे। इस परिषद का काम सरकार को सलाह देना था। कहा जाता है कि इसके जरिए सरकार के बाहर से सोनिया गांधी पूरी यूपीए सरकार को कंट्रोल करती थी। कहा जाता है कि खाद्य सुरक्षा, सूचना का अधिकार जैसे कई कानून बनाने में भी इस सलाहकार परिषद का इनवाल्मेंट रहा। इसमें मिहिर शाह, प्रोफेसर प्रमोद टंडन, दीप जोशी, आशीष मंडल,फरहा नकवी ,प्रोफेसर स्वामीनाथन , अरूणा राय,माधव डाडगिल हर्ष मंदार शामिल थे।
आलोचक मानते हैं कि ये परिषद एक पैरलल कैबिनेट या कहें है कि पैरलल सरकार की तरह काम करती थी, जो संविधान के तहत नहीं माना जा सकता।