कन्याकुमारी और रामेश्वरम में कच्चातिवु द्वीप बड़ा मुद्दा….किस राजनीतिक दल के जाल में फंसेंगे यहां मछुआरों के वोट

Kanyakumari Rameshwaram Katchatheevu Island Political Issue Fishermen Vote

उत्तर भारत में जहां रामलला का मंदिर बीजेपी के लिए प्राण वायु बना हुआ है। अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के वक्त पूरा उत्तर प्रदेश भारत राम में नजर आ रहा था लेकिन राम के नाम पर बसे रामेश्वरम में शिव की भक्ति की जा रही थी। दरअसल इसकी एक वजह तमिलनाडु सरकार की एक कथित सख्त टिप्पणी थी। राम की कर्मभूमि और माता सीता को लाने के लिए लंका तक तैयार किए गए रामसेतु की कथा यहां पहले को पर्यटकों को बताने तक भर सीमित थी। लेकिन यह भी एक परम सत्य ही है कि राम के आराध्य शिव के 11 ज्योतिर्लिंग के चलते यह हिंदू आस्था का एक बड़ा केंद्र माना जाता है।

स्पष्ट तौर से राम फैक्टर रामनाथपुरम लोकसभा क्षेत्र में उत्तर प्रभावित नजर नहीं आ है। या यूं कहे कि देश के सबसे ज्यादा मंदिरों वाले इस राज्य में धर्म कभी राजनीतिक सामाजिक निर्णयों का आधार नहीं रहा। रामलला की अभिभूत कर देने वाली प्रतिमा कर्नाटक के ही मूर्तिकार अरुण योगीराज ने तैयार की थी। यह प्रतिमा दक्षिण भारतीय शैली में बनाई गई और तमिलनाडु में इस पर कहीं व्यापक चर्चा नहीं दिखाई थी। यह सिर्फ तमिल वाद का एक सिक्का चलता है। यहां सिर्फ तमिलवाद का ही सिक्का चलता नजर आता है। अब बात करें रामनाथपुरम लोकसभा सीट की तो इसके तहत आने वाली रामेश्वरम विधानसभा और इसके आसपास मछुआरों का एक बड़ा वर्ग रहता है। यह समुद्री जीव पकड़कर और उनकी प्रोसेसिंग के कारोबार से जुड़े होते हैं और अपनी आजीविका इसी से चलाते हैं। इसलिए राजनीति में निर्णायक साबित होते हैं। इनमें हिंदू है तो मुसलमान और सही भी हैं। हिंदुओं में ओबीसी देवर समुदाय की अच्छी खासी संख्या यहां पर है।

निर्णायक होती है 75 फीसदी हिंदू आबादी

रामनाथपुरम लोकसभा क्षेत्र में 17 फीसदी हिंदू पांच फीसदी ओबीसी मुसलमान और इसी कांग्रेस समर्थित इंडिया इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग यानी आईयूएमएल के उम्मीदवार मौजूदा सांसद ​कनि के नवाज का समर्थन करते नजर आ रहे हैं। उधर हिंदुओं का वोट प्रमुख अन्ना प्रमुख और अन्नाद्रमुक से दूर होकर कर भाजपा के समर्थन से निर्दलीय चुनाव लड़ रहे पूर्व सीएम को पनीरसेल्वम यानी ओपीएस के बीच बटता नजर आ रहा है। लेकिन यहां करीब 75 प्रतिशत से अधिक हिंदू हैं। इसलिए मतों की बंदरबांट में सबको कुछ ना कुछ मिलेगा। यह तय माना जा रहा है। हालांकि जिसे जितना ज्यादा मिलेगा। वह उतना ही चुनाव में जीत के करीब पहुंचेगा। बीजेपी ने मसला हल करने का भरोसा देकर तटीय क्षेत्र की राजनीति को गरमाए हुए हैं। अपना सिक्का जमाने की कोशिश कर रहे हैं। वहीं भाजपा प्रदेश अध्यक्ष के अन्नामलाई मछुआरा समुदाय की राजनीतिक ताकत को बहुत अच्छी तरह से समझते हैं। लिहाजा इसे भावनात्मक जुड़ाव वाले कच्चातिबू दीप मसले पर द्रविड़ पार्टियों जैसा स्टैंड लेकर संकेत दे रही है कि केंद्र सरकार ही कच्चातिबू द्वीप मसले को सुलझा सकती है।

भाजपा का भरोसा, वोट दो हम कच्चातिबू लेंगे

दरअसल श्रीलंका के नंदुन्तीव के साथ रामेश्वरम के बीच स्थित कच्चातिबू एक छोटा सा द्वीप है। यह 14वीं सदी में ज्वालामुखी विस्फोट के चलते अस्तित्व में आया था। यह बोलना रामेश्वरम के राजा की संपत्ति का हिस्सा माना जाता था। लेकिन 1974 से 76 के बीच तत्कालीन केंद्र की कांग्रेस सरकार ने समुद्री सीमा निर्धारण समझौते के तहत करीब 285 एकड़ भूमि वाले हिस्से को श्रीलंका के हवाले कर दिया था। तमिलनाडु की सरकारी तब ही इसे वापस लेने की मांग लगातार करती आ रही है। अब श्रीलंका सेना यहां भारतीय मच्छरों को पड़कर जेल में डाल देती है। यानी जो क्षेत्र कभी हमारा था आज हम वहां मछलियां भी नहीं पकड़ पाते। जिन्हें सरकारी हस्तक्षेप से किसी तरह छुड़वाया जाता है। कई बार उनके गार्डों की गोलीबारी में मछुआरे घायल भी हुए हैं। ऐसे में अन्नामलाई ने आरटीआई के जरिए इस मुद्दे को फिर से सुर्खियों में ला दिया है। यह पहली बार है जब तमिल हक से जुड़े मामले का भाजपा ने इस तरह समर्थन दिया है। हालांकि पंबन इलाके में कई बड़े मछुआरे इसे इसे चुनावी शिगुफा मान रहे हैं। मछली कारोबारी कहते हैं यह अंतरराष्ट्रीय मसाला है। केंद्र सरकार द्वीप वापस कैसे ले सकती है। सिर्फ हवा बाजी चल रही है।

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