कानपुर देहात। महौली गांव में अतिक्रमण हटाने के दौरान हुई मौत बड़ा मुद्दा बनकर उभर रही है। झोंपड़ी में आग लगने से मां-बेटी की जिंदा जलकर हुई मौत के मामले में प्रदेश सरकार ने एसआईटी का गठन भी कर किया है और पीड़ित परिवार को 10 लाख की आर्थिक सहायता भी दी है। मुख्यमंत्री ने पीड़ित परिवार को सुरक्षा देने के भी निर्देश भी जारी किए हैं, लेकिन क्या इतना काफी है?
- कानपुर देहात के मड़ौली गांव में हुए अग्निकांड की जांच के लिए दो सदस्यीय एसआईटी गठित की गई है
- एसआईटी में कानपुर मंडल आयुक्त राजशेखर और एडीजी कानपुर जोन आलोक सिंह को रखा गया है, इनको एक सप्ताह के अंदर पूरे मामले पर अपनी विस्तृत रिपोर्ट शासन को देने के निर्देश भी दिए गए हैं
- एसआईटी की रिपोर्ट के आधार पर ही दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी
अब, एक बार जानें कि कानपुर देहात में हुआ क्या
कानपुर देहात के मैथा तहसील में है एक गांव- मड़ौली। गांव में कृष्ण गोपाल दीक्षित के खिलाफ अवैध कब्जा करने की शिकायत थी। सोमवार को एसडीएम मैथा ज्ञानेश्वर प्रसाद, पुलिस व राजस्व कर्मियों के साथ गांव में अतिक्रमण हटाने पहुंचे थे। इसी दौरान जेसीबी से नल और मंदिर तोड़ने के साथ ही छप्पर गिरा दिया गया। इसी दौरान छप्पर में आग लग गई और वहां मौजूद प्रमिला (44) व उनकी बेटी नेहा (18) आग की चपेट में आ गए। उनकी जलकर मौके पर ही मौत हो गई, जबकि कृष्ण गोपाल गंभीर रूप से झुलस गए थे।
योगी आदित्यनाथ के लिए बन सकता है नासूर
कृष्ण गोपाल दीक्षित के कई वीडियो और फोटो आ रहे हैं। सोशल मीडिया पर कानपुर देहात ट्रेंड कर रहा है। इसके साथ ही डीएम नेहा जैन और एसपी के नाचते-गाते हुए ऑडियो-वीडियो भी वायरल किए जा रहे हैं। इसके बहाने विकास दुबे के एनकाउंटर से इस घटना को जोड़ करके समुदाय विशेष के खिलाफ भी योगी की सरकार को बताया जा रहा है। लोग यह भी सवाल पूछ रहे हैं कि यही घटना अगर किसी बाकी जाति या समुदाय के व्यक्ति के साथ हुई होती तो सरकार का क्या स्टैंड होता?
जब गैंगस्टर विकास दुबे का एनकाउंटर हुआ था, तब भी योगी सरकार के खिलाफ कई दिनों तक माहौल बन गया था। इस बार तो लोगों ने देखा है कि पुलिस-प्रशासन ने किस तरह मामले में अ-विवेक से काम लिया है।
समुदाय-विशेष के खिलाफ है क्या सरकार?
योगी आदित्यनाथ की सरकार लॉ एंड ऑर्डर के मसले पर काफी सख्त मानी जाती है। इसी क्रम में कई बार सरकार पर मानवाधिकार आयोग वालों की टेढ़ी नजर भी होती है। 10 जुलाई 2020 को मशहूर बिकरू कांड हुआ था, जिसमें माफिया विकास दुबे का एनकाउंटर यूपी पुलिस ने कर दिया था। उसके बाद से हमेशा ही योगी सरकार को कठघरे में खड़ा किया जाता रहा है।
विकास दुबे प्रकरण में आलोचना के मूल में विकास दुबे और उनका अपराध नहीं बल्कि विकास दुबे के साथ संबंध रखने के आरोप में जो दूसरे एनकाउंटर हुए हैं, वे सभी हैं। इन सभी एनकाउंटर्स पर न सिर्फ़ सवाल उठ रहे हैं बल्कि जिनके एनकाउंटर किए गए हैं, उनमें से ज़्यादातर के ख़िलाफ़ पुलिस में कोई आपराधिक रिकॉर्ड भी नहीं है।
योगी पर आरोप लगता है कि उन्होंने किसी ब्राह्मण नेता को प्रमोट नहीं किया। कैबिनेट में भी ब्राह्मणों की तुलना में क्षत्रियों की संख्या ज़्यादा हैऔर नियुक्तियों और तैनातियों में भेद-भाव के आरोप लगते रहे हैं. लेकिन इस घटना ने उन पर यह आरोप पुख़्ता करने में मदद की है कि ब्राह्मणों को निशाना बनाया जा रहा है।
अगला वर्ष चूंकि चुनाव का है, तो देखना यह होगा कि मुख्यमंत्री इस समस्या से कैसे निबटते हैं?