कृष्णा गौर की सीट पर कमलनाथ की नजर,मजदूर दिवस के बहाने सियासत साध रहे कमलनाथ

Kamal Nath's eye on Krishna Gaur's seat

भोपाल की गोविंदपुरा विधानसभा सीट भी उन 66 सीटों में शामिल है। जिन पर कांग्रेस लंबे समय से चुनाव में हार का सामना करती रही है। गोविंदपुरा क्षेत्र से पहले बाबूलाल गौर और अब उनकी बहू कृष्णा गौर बीजेपी के टिकट पर दो बार चुनाव जीत चुकी हैं। ये वो क्षेत्र है जहां सबसे अधिक मजदूर वर्ग के लोग रहते हैं। ऐसे में कमलनाथ ने 1 मई को मजदूर दिवस पर इस क्षेत्र में बड़ी जनसभा कर रहे हैं।

बता दें गोविंदपुरा विधानसभा खेत्र में सबसे अधिक मजूदर वर्ग निवास करते हैं। बता दें कांग्रेस उन सीटों पर विशेष रणनीति अपना रही है जहां पार्टी कई बार से चुनाव हार रही है। इसी रणनीति के तहत कमलनाथ गोविंदपुरा विधानसभा क्षेत्र में जनसभा करने जा रहे हैं। बता दें इस विधानसभा क्षेत्र में संगठन को मजबूती देने के लिए पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह मंडलम-सेक्टर अध्यक्षों की बैठक ले चुके हैं। दिग्विजय सिंह ने यहां कार्यकर्ताओं को चुनाव प्रबंधन का पाठ पढ़ाया था। अब कांग्रेस यहां शक्ति प्रदर्शन करने करने जा रही है।

भेल से जुड़े हैं 70 फीसदी मतदाता

दरअसल गोविंदपुरा विधानसभा क्षेत्र में करीब 3 लाख 65 हजार मतदाता हैं। सबसे खास ये है कि इनमें 70 फीसदी मतदाता भेल से जुड़े हैं। यानी मजदूर दिवस पर कमलनाथ यहां जनसभा कर भेल के कर्मचारियों को साधने की कोशिश में हैं। इससे पहले भी पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह भी कई बार भेल कर्मचारी संगठनों के पदाधिकारियों से मेल मुलाकात कर चुके हैं। दिग्विजय सिंह लगातार भेल के निजीकरण और कर्मचारी हितों की अनदेखी का मुद्दा उठाते रहे हैं। कांग्रेस ने इस बार के चुनाव में बीजेपी के इस अभेद गढ़ में सेंध लगाने की तैयाारी कर ली है। गोविंदपुरा क्षेत्र से वर्तमान में कृष्णा गौर विधायक हैं। बता दें वे प्रदेश के पूर्व सीएम बाबूलाल गौर की बहू हैं और गोविंदपुरा क्षेत्र बाबूलाल गौर का कर्मक्षेत्र माना जाता रहा है। दरअसल स्वर्गीय बाबूलाल गौर भी कभी भेल के कर्मचारी हुआ करते थे। गोविंदपुरा से विधायक रहते हुए उन्होंने मुख्यमंत्री की कुर्सी तक का सफर तय किया था।

भेल से जुड़े पदाधिकारी का प्रदर्शन

बता दें कांग्रेस जब जब यहां भेल कर्मचारी संघ से जुड़े किसी पदाधिकारी को टिकट देती है तो प्रदर्शन काफी बेहतर होता है। कांग्रेस ने यहां से दो बार आरडी त्रिपाठी को टिकट दिया था। आरडी त्रिपाठी भेल कर्मचारी यूनियन के नेता रहे थे। साल 1985 और 1998 में आरडी त्रिपाठी ने कांग्रेस के टिकट पर इस सीट से चुनाव लडा और बेहद कम अंतर से चुनाव हारे। जबकि पिछले 2018 विधानसभा चुनाव की बात करें तो बीजेपी की कृष्णा गौर 57 फीसदी वोट शेयर के साथ जीत दर्ज करने में कामयाब रही थीं। अब इस बार चुनाव में यहां निजीकरण और कर्मचारियों की पुरानी पेंशन के साथ कई दूसरे मुद्दे हैं जो बीजेपी के लिए परेशानी बन सकते है। इतना ही नहीं कर्मचारियों में बीजेपी सरकार को लेकर काफी रोष भी देखा जा रहा है। ऐसे में अब देखना होगा कि कर्मचारियों के गुस्से को कांग्रेस अपने हक में कितना भुना पाती है।

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