कालादान प्रोजेक्ट: इस तरह खत्म होगी चीन और बांग्लादेश की चुनौती…समंदर के रास्ते पूर्वोत्तर को जोड़ने की पहल
भारत की अपने पूर्वोत्तर राज्यों को एक सुरक्षित और स्वतंत्र रूट से जोड़े यही प्राथमिकता रही है और कालादान प्रोजेक्ट इसी सोच का परिणाम है। सड़क नहीं तो समंदर सही, ऐसे में सूत्र बताते हैं कि भारत की ओर से कालादान प्रोजेक्ट को 2025 के अंत तक पूरा करने की तैयारी की जा रही है।
- दिसंबर तक पूरा होगा कालादान प्रोजेक्ट
- खत्म होगी चीन और बांग्लादेश की चुनौती
- समंदर के रास्ते पूर्वोत्तर को जोड़ने की पहल
- पूर्वोत्तर राज्यों को एक सुरक्षित और स्वतंत्र रूट से जोड़ने की पहल
- ऑल्टरनेटिव रूट शुरू कर दिया गया
- म्यांमार के अधिकारियों के साथ की चर्चा
चीन और बांग्लादेश की जुगलबंदी पर नजर
हाल ही में इस पर म्यांमार के अधिकारियों के साथ चर्चा का दौर तेज किया गया है। क्योंकि चीन और बांग्लादेश की जुगलबंदी से चिकन नेक को लेकर आने वाले दिनों में चुनौती खड़ी करने की कोशिश हो सकती है। ऐसे में भारत की ओर से समंदर के रास्ते भी पूर्वोरत्तर के राज्य से जोड़ने का एक ऑल्टरनेटिव रूट शुरू कर दिया गया है।
कालादान मल्टी-मॉडल ट्रांजिट ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट भारत और म्यांमार के बीच स्थित है जो केवल एक इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट नहीं है बल्कि यह भारत की भू-राजनीतिक रणनीति का भी एक अहम हिस्सा है। यह प्रोजेक्ट भारत के लिए सामरिक ही नहीं आर्थिक और रणनीतिक दृष्टिकोण से अभी त्यंत महत्वपूर्ण माना जा रहा है। खासकर ऐसे समय जब चीन अपने पड़ोसी देशों में घुसपैठ करता नजर आ रहा है और बांग्लादेश जैसे पुराने सहयोगी देश भी धीरे-धीरे चीन के प्रभाव में आने के साथ ही भारत से दूर होता जा रहा है।
यह है सामरिक और व्यापारिक महत्व
कालादान प्रोजेक्ट सामरिक दृष्टिकोण से भारत को सिलीगुड़ी कॉरिडोर या चिकन नेक पर निर्भरता से मुक्त करता है। यह कॉरिडोर मात्र 22 किलोमीटर चौड़ा और 60 किलोमीटर लंबा है। चीन या बांग्लादेश के साथ अगर किसी प्रकार का कोई तनाव बढ़ता भी है और यह कॉरिडोर डिस्टर्ब होता है, तो ऐसी दशा में उत्तर-पूर्व भारत मुख्यभूमि से कट सकता है, यही वजह है कि कालादान प्रोजेक्ट को इस दृष्टि से खासा अहम माना जा रहा है। इतना ही नहीं कालादान प्रोजेक्ट से भारतीय सेना की सामग्री, रसद के साथ साजो-सामान और टैंक आसानी से पूर्वोत्तर की धरती पर पहुंच सकते हैं।
चीन की स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स रणनीति के साथ भारत के लिए यह जरुरी है कि वह म्यांमार में चीन के बढ़ते निवेश के चलते म्यांमार के साथ अपनी मजबूत कनेक्टिविटी बनाए। व्यापारिक दृष्टिकोण से भी कालादान प्रोजेक्ट पूर्वोत्तर भारत के लिए व्यापारिक अवसरों के नए द्वार खोलेगा।
समुद्र के जरिए भारत के पूर्वी क्षेत्र के बंदरगाहों से तेजी से व्यापार भी संभव होगा। जिससे समय ही नहीं लागत की भी बचत होगी।
इसके अतिरिक्त म्यांमार और दक्षिण-पूर्व एशिया तक भारत की पहुंच और प्रभाव में वृद्धि होगी।
जाने आखिर क्या है कालादान प्रोजेक्ट
कालादान प्रोजेक्ट को वर्ष 2008 में प्रारंभ किया गया था। इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य भारत में कोलकाता बंदरगाह को सीधे म्यांमार के सित्तवे पोर्ट के जरिए से मिजोरम से जोड़ना है। इस पूरे प्रोजेक्ट में तीन प्रकार के रुट का समावेश है। जिसमें समुद्री के साथ नदी और सड़क मार्ग है जो इसे मल्टी-मॉडल बनाता है।
- कोलकाता से सित्तवे पोर्ट के बीच समुद्री मार्ग 539 किमी
- सित्तवे से पलेतवा नदी मार्ग – कालादान नदी 158 किमी
- पलेतवा से मिजोरम के बीच जोरिनपुई तक सड़क मार्ग 129 किमी
- भारत के अंदर जोरिनपुई से लॉंगतलाई तक 88 किमी
यह रूट और प्रोजेक्ट मिजोरम के साथ अन्य उत्तर-पूर्वी राज्यों को भारत के मुख्य हिस्से से एक वैकल्पिक मार्ग प्रदान करेगा। चीन और बांग्लादेश की रणनीतिक चाल को जो पूरी तरह से चारों खाने चित करेगा।..प्रकाश कुमार पांडेय