जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनाव: घाटी की तस्वीर बदलने की उम्मीद के बीच बढ़ता आतंक अलगाववादियों का समर्थन चिंता का सबब …!

जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव की घोषणा के साथ  ही घाटी में प्रजातंत्र के महाकुंभ को लेकर उत्साह नजर आने लगा है। चुनाव की अधिसूचना भी जारी हो गई है। जम्मू-कश्मीर की 90 विधानसभा सीटों में से कश्मीर में विधानसभा 47 और जम्मू में 43 सीटें हैं। 18 सितंबर को पहले चरण में 24 सीटों पर मतदान होगा। इसमें 16 सीट कश्मीर घाटी की ओर 8 सीट जम्मू इलाके की हैं।

कश्मीर में 47 विधानसभा सीट
जम्मू में विधानसभा की 43 सीट
लोकसभा चुनावों में  50 प्रतिशत से अधिक मतदान
चुनाव की घोषणा के साथ बनाई जाने लगी सियासी  रणनीति
चरण की 24 सीटों पर अधिसूचना जारी
एक – दो दिन में उम्मीदवारों का ऐलान

लोकसभा चुनावों में वहां  50 प्रतिशत से अधिक मतदान ने साबित कर दिया है कि छह साल के केंद्रीय शासन के बाद जम्मू-कश्मीर के लोग लोकतांत्रिक की मुख्यधारा से जुडने को लेकर बेताब हैं।  2019 में अनुच्छेद 370  निरस्त होने के बाद से जम्मू और कश्मीर के हालात बदले हैं। वहां पर पुरानी व्यवस्था बिखरने के साथ ही नई संभावना विकसित हुई है। हालांकि, इस अशांत घाटी में लोकतंत्र की वापसी का उत्साह सावधानी के साथ ही मनाया जाना चाहिए। इसकी कई वजह है। हाल  में जम्मू में आतंकी हमलों में बढ़ोतरी दर्ज की गई , ऐसे में वहां चुनाव कराना सुरक्षा के लिहाज से बढ़ी चुनौती है।
मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल की शुरुआत के  बाद से अब तक  कम से कम 9 से 10 आतंकी घटनाएं हो चुकी हैं।  कई सैनिक शहीद हुए और कई घायल हुए हैं।  नागरिकों की भी इसका शिकार बने हैं।
चुनाव कार्यक्रम की घोषणा से पहले प्रशासन और पुलिस राजन में बड़े पैमाने पर जम्मू-कश्मीर में तबादले किए गए थे, जो निश्चित ही शांतिपूर्ण चुनाव कराने में संभावित खतरों से निपटने का महत्वपूर्ण कदम है। जम्मू कश्मीर में चुनाव की घोषणा के बाद से लेकर अब तक सियासी दलों की रणनीति सामने नहीं आई है।

तय नहीं हुए चुनावी गठबंधन

चुनावी गठबंधन को लेकर  भी तस्वीर साफ नहीं हुई है।  यह स्पष्ट हो सका है कि  कौन-सी राजनीतिक पार्टियों जो पहले से चुनाव मैदान में उतर करती थी इस बार किस किस तरह और कितनी सीटों पर अपने प्रत्याशी खड़े करेंगी। चर्चा है कि जम्मू कश्मीर में सैयद गिलानी की प्रतिबंधित जमात-ए-इस्लामी  भी अपने प्रत्याशी चुनावी मैदान में उतार सकती है । बीजेपी इस बार अकेले अपने दम पर चुनाव मैदान में उतरने की रणनीति बना रही है। हालांकि  लोकसभा चुनाव के समय सीटों पर चुनाव कश्मीर में तीन नहीं लड़ने के बीजेपी के फैसले से उसकी इस रणनीति पर संदेह के बादल मंडरा रहे है। हालांकि बीजेपीने जम्मू की दोनों लोकसभा सीट पर जीत दर्ज की थी, लेकिन एनसी के साथ गठबंधन में कांग्रेस प्रदर्शन भी आश्चर्यजनक रूप से अच्छा था। कांग्रेस ने ने मुस्लिम और एससी वोटों को एकजुट करके अच्छे  परिणाम दिए । कांग्रेस का का वोट शेयर भाजपा से केवल 10 ही प्रतिशत कम था।

नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी का कम हुआ जनाधा

लोकसभा चुनाव में बारामुला सीट से नेशनल कॉन्फ्रेंस के उमर अब्दुल्ला को हार में का सामना करना पड़ा था। जेल में बंद अलगाववादी इंजीनियर राशिद ने निर्दलीय के रूप में न सिर्फ जीत हासिल की बल्कि घाटी के युवाओं का साथ भी उन्हें मिला। ऐसे में माना जा रहा है कि विधानसभा चुनाव में भी इसी तरह के रुझान दिखाई दिए  तो अप्रत्याशित नतीजे आ सकते हैं। नेशनल कॉन्फ्रेंस के साथ ही महबूबा मुफ्ती की पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी को अपनी राजनीतिक जमीन से हाथ धोना पड़ा था।

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