जम्मू-कश्मीर में 2014 के बाद दस साल के अंतराल पर हो रहे विधानसभा चुनाव के दौरान सब कुछ बदला हुआ नजर आ रहा है। 2014 की अपेक्षा 2024 में परिस्थितियां बदल गईं हैं। समीकरण भी बदल गये हैं। इतना ही नहीं चुनावी नारे और श्लोगन भी बदल गये हैं। माहौल में अब बदलाव नजर आ रहा है। 2014 के बाद पिछले दस साल में तस्वीर बदल गई। राज्य में नए-नए सियासी दल अस्तित्व में आ गए हैं। इस बीच चुनावी मुद्दे भी बदल गये हैं। 2014 की अपेक्षा मौजूदा 2024 के चुनाव में अनुच्छेद 370 और राज्य का दर्जा बहाली बनाम विकास के बीच नजर आ रहा है। दरअसल कश्मीर केंद्रित राजनीति दलों का एक सूत्रीय एजेंडा है कि वे किसी भी सूरत में बीजेपी को सत्ता में आने से रोकना चाहते हैं। वहीं बीजेपी विकास के साथ ही घाटी से परिवारवादी राजनीति को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए चुनाव में पूरा दमखम ठोंकने की तैयारी में जुट गई है।
- परिस्थितियां बदली …समीकरण बदले
- जम्मू कश्मीर में बदल गये चुनावी नारे
- चुनाव से पहले माहौल में आया बदलाव
- 2024 में अस्तित्व में आए नए-नए दल
- 2014 की अपेक्षा 2024 में बदल गये चुनावी मुद्दे
- चुनाव से पहले एक हुए कांग्रेस और नेशनल कॉफ्रेंस
- अनुच्छेद 370,राज्य का दर्जा बहाली बनाम विकास बना मुद्दा
- अपनी पार्टी का दावा—अनुच्छेद 370 हटने से आवाम खुश नहीं
- राज्य का दर्जा छिन जाने से भी जम्मू-कश्मीर की अवाम नाखुश
- अपनी पार्टी का दावा—चुनाव घोषणा पत्र अवाम की आवाज
साल 2014 के बाद पूरे 10 साल के बाद जम्मू-कश्मीर में विधानसभा के चुनाव कराये जा रहे हैं। जम्मू-कश्मीर में आखिर बार 2014 में चुनाव हुए थे। इसके बाद 2015 में जो सरकार बनी वह जून 2018 तक ही चल सकी। इसके बाद से वहां चुनाव नहीं हो सके। इस बीच केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार ने जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 और 35 ए को हटा दिया। नया परिसीमन भी कराया गया। विधानसभा की सीटों की संख्या भी बढ़कर अब 90 तक पहुंच चुकी है। जम्मू और कश्मीर के बीच सीटों का संतुलन बनाने की कोशिश में कई सीटों का अस्तित्व ही खत्म हो गया तो कई नई विधानसभा सीट उभरकर सामने आईं। पीडीपी और नेशनल कॉफ्रेन्स में जमकी टूटफूट हुई। चुनाव से पहले राज्य में डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आजाद पार्टी डीपीएपी और जम्मू-कश्मीर अपनी पार्टी जैसी कुछ राजनीति पार्टियां अस्तित्व में आईं।
बदल गया अलगाववादियों का भी चेहरा
वहीं अलगाववादियों का भी चेहरा बदल गया। लोकतंत्र के प्रति अब उनकी आस्था भी बढ़ती नजर आ रही है। वे लोकसभा चुनाव में मतदान प्रक्रिया का हिस्सा बने। पहली बार 2024 में लोकसभा चुनाव के दौरान जम्मू कश्मीर में न तो किसी संगठन की ओर से कोई बहिष्कार की कॉल आई और ही हिंसा की कोई घटनाएं हुईं। हालांकि घाटी से अनुच्छेद 370 हटाने के फैसले बाद केंद्र सरकार के निर्णय के विरोध में कश्मीर केंद्रित दलों की ओर से गुपकार गठबंधन बनाया था। लेकिन लोकसभा चुनाव के दौरान यह गठबंधन भी अलग-थलग पड़ गया। लोकसभा चुनाव में जहां पीपुल्स कांफ्रेंस और अपनी पार्टी जहां बीजेपी के नजदीक आए वहीं अब इनमें दरारें भी दिख रही हैं।
कश्मीर केंद्रित दल भाजपा के खिलाफ नारा लगा रहे
2014 के बाद पिछले 10 साल के अंतराल में होने वाले बदलावों का असर अब मौजूदा विधानसभा चुनाव पर भी देखने को मिल रहा है। लोकसभा चुनाव की तरह ही कश्मीर केंद्रित राजनीतिक दल विधानसभा चुनाव में भी भाजपा के खिलाफ नारा लगा रहे हैं। कश्मीर की जनता का दिल जीतने के लिए नेशनल कॉफ्रेंस और अपनी पार्टी की ओर से चुनावी घोषणा पत्र में अनुच्छेद 370 के लिए संघर्ष करने और जम्मू कश्मीर का राज्य का दर्जा बहाल करने का दावा किया जा रहा है।
अनुच्छेद 370 के खिलाफ आवाज बुलंद करती रही है पीडीपी
बता दें पीडीपी तो पहले से ही अनुच्छेद 370 के खिलाफ आवाज बुलंद करती रही है। बीजेपी को घाटी में आने से रोकने के लिए नेशनल कॉफ्रेन्स और कांग्रेस ने गठबंधन भी कर लिया है। हालांकि कांग्रेस की ओर से अभी चुनावी घोषणा पत्र जारी नहीं किया गया है। लेकिन कांग्रेस अनुच्छेद 370 के सवाल पर खामोशी का रुख बनाए हुए है। सियासी जानकारों की माने तो यदि कांग्रेस इस बारे में अब कुछ भी कहती है तो उसका असर देशभर में पड़ सकता है। इसके चलते कांग्रेस ने खामोशी की चादर ओढ़ रखी है।