मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही पार्टियां एक एक सीट पर गुणाभाग कर रही है। सियासी कमजोरी और ताकत का आंकलन किया जा रहा है। सत्ता का रास्ता बगैर ग्वालियर चंबल अंचल को फहत किये पूरा नहीं हो सकता है। ग्वालियर विधानसभा सीट मध्य प्रदेश की वीआईपी सीटों में गिनी जाती है। इस सीट से जीतने वाले बीजेपी कांग्रेस के नेताओं का सियासी करियर खूब आगे बढ़ा है। मध्य प्रदेश में दिसंबर में होने वाले विधानसभा चुनाव में इस बार भी ग्वालियर-चंबल अंचल सूबे की सियासत का केंद्र बना हुआ है। दरअसल 2018 के विधानसभा चुनाव के बाद तत्कालीन कमलनाथ सरकार गिरने से लेकर बीजेपी की शिवराज सरकार बनने में ग्वालियर-चंबल का सबसे अहम रोल रहा था। ऐसे में इस बार भी यहां सबका फोकस बना हुआ है। इसी अंचल की ग्वालियर विधानसभा सीट सूबे की वीआईपी सीटों में गिनी जाती है क्योंकि यहां से विधायक बनने वाले नेता राजनीति में बड़े पदों तक पहुंचे हैं। यही वजह है कि ग्वालियर सीट का सियासी इतिहास और राजनीतिक समीकरण भी दिलचस्प माना जाता है।
ग्वालियर का सियासी ताना बाना
- 1951 से अस्तित्व में आई ग्वालियर विधानसभा सीट
- समय समय पर हुए परिसीमन
- इस सीट का बदलता रहा तानाबाना
- सीट के तहत ग्वालियर का ऐतिहासिक किला
- इस सीट से शिवराज सरकार में
- मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर हैं विधायक
- इस सीट पर होगी सबकी नजरें
- ग्वालियर सीट पर मतदाताओं के समीकरण
- ग्वालियर विधानसभा सीट के मतदाता
- 2018 में 2 लाख 90 हजार 637 मतदाता थे
- 1 लाख 54 हजार 618 पुरुष मतदाता थे
- 1 लाख 35 हजार 996 महिला मतदाता थे
- थर्ड जेंडर वोटर्स की संख्या कुल 23 थे
ग्वालियर विधानसभा का जातिगत समीकरण
- ग्वालियर विधानसभा सीट शहरी इलाका माना जाता है
- जातिगत समीकरण निभाते है अहम भूमिका
- ग्वालियर विधानसभा सीट पर ब्राह्मण
- मुख्य भूमिका में रहते क्षत्रिय और एससी-एसटी वोटर्स
- ब्राह्मण, एससी-एसटी और क्षत्रिय वोटर्स के साथ मुस्लिम
- वैश्य, ओबीसी, जैन, सिंधी और महाराष्ट्रीयन वोटर्स
ग्वालियर विधानसभा सीट का राजनीतिक इतिहास
ग्वालियर विधानसभा सीट मध्य प्रदेश के गठन से ही अस्तित्व में रही है। खास बात यह है कि इस सीट से चुनाव जीतने वाले ज्यादातर नेता राजनीति में अच्छी पॉजिशन पर पहुंचे हैं। चाहे वो नरेंद्र सिंह तोमर हों या जयभान सिंह पवैया और प्रद्युम्न सिंह तोमर जैसे नेता केंद्र और राज्य सरकारों में मंत्री बने हैं। इस सीट पर महल का प्रभाव भी रहता है। ऐसे में सिंधिया परिवार की पसंद का प्रत्याशी भी राजनीतिक दलों से चुना जाता रहा है। साल 2020 में हुए उपचुनाव को मिलाकर पिछले 10 चुनाव की बात की करें तो इस सीट पर 6 बार बीजेपी और 4 बार कांग्रेस को जीत हासिल हुई है।
- तारा सिंह विओगी, कांग्रेस, 1980
- धर्मवीर सिंह, बीजेपी, 1985
- धर्मवीर सिंह, बीजेपी, 1990
- रघुवर सिंह, कांग्रेस, 1993
- नरेंद्र सिंह तोमर, बीजेपी, 1998
- नरेंद्र सिंह तोमर, बीजेपी, 2003
- प्रद्युमन सिंह तोमर, कांग्रेस, 2008
- जयभान सिंह पवैया, बीजेपी, 2013
- प्रद्युमन सिंह तोमर, कांग्रेस, 2018
- प्रद्युमन सिंह तोमर, बीजेपी, 2018 (उपचुनाव)
साल 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की तरफ से चुनाव लड़े प्रद्युमन सिंह तोमर ने बीजेपी के कद्दावर नेता जयभान सिंह पवैया को 21 हजार 044 वोट से हराया था. लेकिन बाद में तोमर ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ बीजेपी में चले गए। इसके बाद 2020 में इस सीट पर उपचुनाव हुए थे। जिसमें प्रद्युमन सिंह तोमर ने कांग्रेस के सुनील शर्मा को 33 हजार 123 वोटों से हराया था। सियासी जानकारी मानते हैं कि इस बार भी इस सीट पर चुनावी मुकाबला दिलचस्प होने की पूरी उम्मीद है।
प्रकाश कुमार पांडेय