दिल्ली। कांग्रेस अक्सर देश में महंगाई को लेकर केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार के खिलाफ सड़क पर उतर कर धरना प्रदर्शन करती रही है। वहीं बढ़ती महंगाई के बीच कांग्रेस ने राज्य कांग्रेस कमेटी के प्रतिनिधियों की सदस्यता फीस बढ़ाने की तैयारी कर ली है। यानी इस महंगाई का असर अब पार्टी कार्यकर्ताओं को भी झेलना पड़ेगा, क्योंकि कांग्रेस अब सदस्यता शुल्क को 100 से बढ़ाकर एक हजार रुपये करने जा रही है। जिसमें 400 रुपये विकास शुल्क और 300 रुपये पार्टी पत्रिका संदेश के लिए वसूले जाएंगे।
- 24 से 26 तक होगा कांग्रेस का 85वां राष्ट्रीय महाधिवेशन
- अधिवेशन से पहले कांग्रेस ने बढ़ाई सदस्यता राशि
- सदस्यता शुल्क अब होगा एक हजार रुपये
- 400 रुपये होगा विकास शुल्क
- 300 रुपये पार्टी पत्रिका संदेश के लिए वसूले जाएंगे
बता दें छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में 24 से 26 फरवरी तक कांग्रेस का 85वां राष्ट्रीय महाधिवेशन होने जा रहा है। इससे पहले कांग्रेस फंड को बढ़ाने और कांग्रेस नेताओं को कार्यकर्ताओं के साथ फिर से जोड़ने के लिए कुछ संगठनात्मक परिवर्तनों को अंतिम रूप देने में जुटी है। इस सेशन का नाम हाथ से हाथ जोड़ो रखा गया है। कांग्रेस इस अधिवेशन में 2024 के लोकसभा चुनाव की तैयारी के लिए समीक्षा भी करेगी। वहीं ऑल इंडिया कांग्रेस कमिटी के वरिष्ठ सदस्यों से शुल्क के रुप में 3000 रुपये लिये जाएंगे। विकास शुल्क पांच साल के लिए हर साल एक हजार रुपये होगा। दरअसल पार्टी को उम्मीद है कि शुल्क वृद्धि के साथ, कार्यकर्ता पार्टी के प्रति अधिक प्रतिबद्ध होंगे। वे इस कठिन समय में पार्टी की मदद करेंगे। माना जा रहा है कि पार्टी में बड़े पैमाने पर फंड की कमी हो गई है। जिसे दूर करने के लिए सदस्यता शुल्क बढ़ाया गया है।
फंड की कमी से जूझ रही कांग्रेस
बता दें राजनीतिक दल के लिए धन बहुत महत्वपूर्ण है और यह उस पार्टी के लिए और भी महत्व रखता है जो सत्ता में नहीं है। कांग्रेस इस समय एक गम्भीर वित्तीय संकट से गुजर रही है। बत दें देश के तीन राज्यों में छत्तीसगढ़, राजस्थान और हिमाचल प्रदेश में ही कांग्रेस की सरकार बची है। वहीं केन्द्र में भी इस समय बीजेपी का कब्जा है। पिछले दिनों पार्टी ने बहुत कम धन प्राप्त किया है। इसकी प्रधानता फिर से शुरू होने की सम्भावना नहीं है। दूसरी बात यह है कि 2014 के बाद से भाजपा कांग्रेस से आगे निकल गई है। कांग्रेस के लिए तीसरा संकट नेतृत्व को लेकर है। चौथा, क्षेत्रीय दल भी चंदे के लिए मारे.मारे फिर रहे हैं। पांचवां, निजीदाताओं से किसी भी पार्टी का धन उसके सार्वजनिक विश्वास पर निर्भर करता है। पहले कांग्रेस के पास हर राज्य में फंड मैनेजर हुआ करते थे लेकिन केन्द्रीय नियंत्रण के कारण अब यह प्रणाली खत्म हो गई।