चंद्रयान 3 की सफलता के बाद अब भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने सूर्य की ओर कदम बढ़ा दिए हैं। इसरो ने अपना पहला सूर्य मिशन ‘आदित्य-एल1’ लॉन्च कर दिया है। मिशन आदित्य एल1 को शनिवार 2 सितंबर को सुबह 11.50 बजे श्रीहरिकोटा अंतरिक्ष केंद्र से लॉन्च किया गया। भारत के इस पहले सौर मिशन के जरिए इसरो सूर्य का अध्ययन करेगा। पृथ्वी से लगभग 15 लाख किमी की यात्रा पूरी करते हुए, आदित्य एल1 के 125 दिनों में लैग्रेन्जियन पॉइंट 1 के पास एक प्रभामंडल कक्षा में प्रवेश करने की संभावना है। यह बिंदु पृथ्वी से सूर्य की दिशा में 15 लाख किलो मीटर दूर है। सूर्य को लगातार देख सकते हैं
- श्रीहरिकोटा अंतरिक्ष केंद्र से लॉन्च किया आदित्य-एल1
- धरती से 15 लाख किमी दूर है L1
- मिशन आदित्य का L1 पहला पॉइंट है
- सौर मिशन के जरिए इसरो करेगा सूर्य का अध्ययन
आदित्य एल 1 सूर्य के चारों ओर उसी सापेक्ष स्थिति में चक्कर लगाएगा और इसलिए लगातार सूर्य को देख सकता है। वहीं निर्धारित कक्षा में पहुंचने पर विश्लेषण के लिए आदित्य एल1 प्रतिदिन करीब 1440 तस्वीरें ग्राउंड स्टेशन पर भेजेगा। यह सूर्य का अध्ययन करने के लिए सात पेलोड ले जाता है। जिनमें से चार सूर्य से प्रकाश का निरीक्षण करेंगे और शेष तीन प्लाज्मा और चुंबकीय क्षेत्र के यथास्थान मापदंडों को मापेंगे। दरअसल सातत्य चैनल से जो कि इमेजिंग चैनल है। प्रति मिनट एक छवि आएगी। इसलिए 24 घंटों के लिए लगभग 1440 छवियां ग्राउंड स्टेशन पर प्राप्त होगी। आदित्य एल 1 परियोजना वैज्ञानिक और वीईएलसी के संचालन प्रबंधक डॉ मुथु प्रियाल ने कहा आईआईए वीईएलसी पेलोड संचालन केंद्र की मेजबानी करेगा, जो इसरो के भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान डेटा सेंटर से कच्चा डेटा प्राप्त करेगा। इसे वैज्ञानिक विश्लेषण के लिए उपयुक्त बनाने के लिए इसे आगे संसाधित करेगा। इसे प्रसार के लिए आईएसएसडीसी को वापस भेज देगा। इसके अलावा भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान या आईआईए द्वारा कोरोनल मास इजेक्शन की घटना और उसके घटित होने के समय का स्वचालित रूप से पता लगाने के लिए एक अनूठा सॉफ्टवेयर विकसित किया गया है, जो 24 घंटों के भीतर विज्ञान समुदाय को प्रदान किया जाएगा। चाहे वह पृथ्वी की ओर निर्देशित हो या क्या यह बहुत ऊर्जावान घटना है। अगर गति तेज़ है। यह पृथ्वी से टकराएगी या नहीं ऐसे कई विषयों की सभी जानकारी उपलब्ध कराई जाएगी।
5 साल तक तस्वीरें भेजेगा भारत का आदित्य L1
आईआईए अधिकारियों के अनुसार 190 किलोग्राम वीईएलसी पेलोड पांच साल तक तस्वीरें भेजेगा। जो उपग्रह का नाममात्र जीवन है, लेकिन ईंधन की खपत आदि के आधार पर यह लंबे समय तक चल सकता है। भारत का आदित्य L1 पूरी तरह से स्वदेशी है। इस मिशन को बेंगलुरु के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स IIA ने तैयार किया है। इसरो से मिली जानकारी के मुताबिक आदित्य L-1 अपने साथ फोटोस्फीयर, क्रोमोस्फीयर और सूर्य की सबसे बाहरी परतों कोरोना का निरीक्षण करने के लिए सात पेलोड ले जाएगा। इनमें से 4 पेलोड सूरज पर नज़र रखेंगे। बाकी 3 एल-1 पॉइंट के आसपास का अध्ययन करेंगे। सूर्य के आसपास के वायुमंडल का अध्ययन किया जाएगा। साथ ही क्रोमोस्फेरिक और कोरोनल हीटिंग की स्टडी भी की जाएगी। फ्लेयर्स पर रिसर्च की जाएगी। सौर कोरोना की भौतिकी और इसका तापमान को भी मापेगा। इसके अलावा कोरोनल और कोरोनल लूप प्लाज्मा का निदान करना। इसमें तापमान, वेग के साथ घनत्व की जानकारी जुटाई जाएगी। वहीं सूर्य के आसपास हवा की उत्पत्ति के साथ उसकी संरचना और गतिशीलता की जांच की जाएगी।
L1 पॉइंट का ये है राज
धरती से सूरज की दूरी तकरीबन 15 करोड़ किलोमीटर है। इस दूरी के बीच पांच लैग्रेंज पॉइंट्स हैं। इन्हें L1, L2, L3 और L4 के साथ L5 पॉइंट के नाम से जाना जाता है। जिनका नाम 18वीं सदी के इतालवी खगोलशास्त्री गणितज्ञ जोसेफ-लुई लैग्रेंज के नाम पर रखा है। L1, L2, L3 स्थिर नहीं है क्योंकि इनकी स्थिति हर समय बदलती रहती है। वहीं L4 और L5 पॉइंट स्थिर है। इनकी अपनी स्थिति नहीं बदलती। L1 इसका पहला पॉइंट है जो धरती से 15 लाख किलोमीटर दूर स्थित है। L1 पॉइंट को लैग्रेंजियन पॉइंट के साथ लैग्रेंज पॉइंट, लिबरेशन पॉइंट या एल-पॉइंट के तौर पर भी जाना जाता है।