सियासी चौपाल पर धैर्य नाम का कोई शब्द नहीं होता है। यहां सब कुछ तात्कालिक होता है। राजनैतिक दल और उससे जुड़े नेता वर्तमान पर भरोसा करते हैं। भविष्य की कोई नहीं सोचता। वजह ये है कि एक दूसरे पर भरोसा नहीं होता है। कौन कब और कहां गच्चा दे दे कोई नहीं जानता। शायद यही कारण है कि इन दिनों सियासी चौपाल पर कुनबा बढ़ाने की होड़ लगी हुई है। एनडीए के पास 38 दल हैं तो इंडिया के पास 26 है। आपको बता दें कि यूपीए ने बेंगलुरु में आयोजित विपक्षी दल की बैठक में नाम बदलकर नाम बदलकर इंडिया कर लिया है। दो ही गठबंधन को लेकर सियासी जानकार किस तरह की चर्चा कर रहे हैं,इस पर विचार करने की जरूरत है।
इं.डि.या. में है विवाद के कई कारण
भाजपा के विरोधियों ने अपने गठबंधन का नाम इंडिया रखा है जिसका मतलब है इंडियन नेशनल डेवलपमेंट इंक्यूलूसिव अलायंस। इस नए नाम के साथ कई भाजपा विरोधी दल जुड़े हुए है। इनकी संख्या 26 हो गई है। लेकिन मूल प्रश्नों के जवाब एक भी दल के नेता के पास नहीं हैं। यही वजह है कि इस महागठबंधन में कई तरह के पेंच फंसे हुए है। नेता कौन होगा किसी को नहीं मालूम,संयोजक कौन बनेगा पता नहीं,यहां तक की पीएम का चेहरा कौन होगा,इसके भी अते पते नहीं है। यही वो सवाल है जिसके कारण विपक्षी दलों में भिडंत होने की संभावना है।
ममता,नीतीश और राहुल के सपनों का क्या होगा
प- बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी सालों से पीएम का सपना देख रहीं है। उन्हे केंद्र में मंत्री और सीएम का पद कई बार मिल चुका है। अब अगर कोई ख्वाइस उनकी होगी तो वो पीएम का पद ही होगा। ममता जानती हैं कि ये मौका आखरी है। यदि अभी भी पीएम नहीं बन पाए तो भविष्य में क्या होगा कोई नहीं जानता। ऐसे में निश्िचत है कि ममता बनर्जी पीएम के लिए प्रयास जरूर कर सकतीं हैं। इसी तरह बिहार के सीएम नीतीश कुमार पहले भी पीएम के दावेदार बताए जा चुके हैँ। वे इसकी कतार में भी माने गए हैं। जिस तरह से सभी विपक्षी दलों को जोड़ने की उन्होंने कवायत की है वे इतनी आसानी से किसी और को पीएम बनने नहीं देंगे। जानकारों का कहना है कि नीतीश ने जो कुनबा जुटाया है वो किसी दूसरे के लिए नहीं है। इसी तरह कांग्रेस ने जिस तरह से खुद की सरकार वाले राज्य में विपक्ष दलों की दूसरी बैठक की है उसका मतलब ही है कि पहली लाइन में कांग्रेस ही बैठेगी।