कैसा होगा महायुति का मंत्रिमंडल शिवसेना को लेकर फंसा पेंच

कैसा होगा महायुति का मंत्रिमंडल शिवसेना को लेकर फंसा पेंच

महाराष्ट्र में नए मुख्यमंत्री की शपथ की तारीख तय हो चुकी है । हालांकि मुख्यमंत्री के नाम को लेकर अभी भी सस्पेंस बरकरार है। बीजेपी की बंपर जीत के बाद महायुति की एक दौर की बैठक हो चुकी है। कार्यवाहक मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और एनसीपी के अजीत पंवार ने प्रेस कांफ्रेस कर कहा कि वो बीजेपी के सीएम को भी स्वीकार करेंगे । एकनाथ शिंदे ने तो यहां तक कहा कि उनके लिए सीएम मतलब कि कॉमन मैन। इस मीटिंग के बाद एकनाथ शिंदे की तबीयत बिगड़ी और फिर महायुति की बैठके टलती रहीं। अब खबरें है कि 5 दिसंबर को महाराष्ट्र में बीजेपी के मुख्यमंत्री शपथ लेगें। लेकिन अब सवाल ये है कि महायुति का मंत्रिमंडल क्या होगा। कैसे और किन किन चेहरों को जगह मिलेगी। इससे पहले ये कि किस घटक दल के कितने मंत्री बनेंगे और किस दल के पास कौन सा विभाग होगा।

मंत्री मंडल में देखने को मिल सकता है ये फॉर्मूला
आइए समझने की कोशिश करते है कि आखिर महायुति का मंत्रिमंडल कैसा होगा। जानकारों की माने तो सबसे पहले मुख्यमंत्री के साथ दो उपमुख्यमंत्री शपथ लेंगे। जिसमें बीजेपी के मुख्यमंत्री और दोनों घटक दलों के उपमुख्यमंत्री होंगे। इसके अलावा मंत्रिमंडल की बात करें तो उसी को लेकर लगातार पेंच फंस रहा है। कार्यवाहक मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे चाहते हैं कि उनके दल के पास गृहमंत्रालय हो । लेकिन बीजेपी एपने पास गृहमंत्रालय और विधानसभा स्पीकर का पद रखना चाहती है। मंत्रिमंडल पर फंसे पेंच के चलते अभी तक मुख्यमंत्री का नाम आधिकारिक तौर पर घोषित नहीं किया जा सका है। खबरें है कि बीजेपी अपने पास बीस से ज्यादा मंत्रालय रखेगी वहीं मंत्रिमंडल में बीजेपी के बाद सबसे ज्यादा मंत्री शिवसेना के होंगे जिनकी संख्या 12 तक हो सकती है इसके बाद अजीत पंवार की एनसीपी को जगह मिलेगी। एनसीपी को तकरीबन नौ से दस मंत्री मिलेगें।

एकनाथ शिंदे कर रहे है गृहमंत्रालय की मांग
एकनाथ शिंदे अपने मंत्रियों के लिए तकरीबन 16-18 मंत्रालयों की मांग कर रहे हैं। जिसमें गृहमंत्रालय भी शामिल है। इसके अलावा शहरी विकास मंत्रालय शिवसेना के ही पास रहने की संभावना है। फिलहाल शपथ का दिन तो तय हो चुका है लेकिन मंत्रिमंडल में फंसे पेंच के चलते अभी मंत्रियों के नाम तय नहीं है। वही बताया जा रहा है कि दिल्ली में बीजेपी के एकनाथ शिंदे के सात सांसदों की सख्त जरूरत है, जिसके चलते बीजेपी शिंदे को भी नाराज नहीं कर सकती। यही कारण है कि बीच के रास्ते को निकालने में वक्त लग रहा है।

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