चुनावी सभा में नेता जोश में आकर कई बार ऐसे शब्दों का उपयोग कर लेते हैं जो शायद एक मंच से करना उन्हें शोभा नहीं देता। ऐसे में कई बार उन नेताओं को परेशानी का सामना भी करना पड़ता है। ऐसी ही एक परेशानी राहुल गांधी के सामने आ खड़ी हुई है। बीजेपी नेता राधामोहन दास अग्रवाल और ओम पाठक सहित एक प्रतिनिधिमंडल ने राहुल गांधी के खिलाफ चुनाव आयोग में शिकायत की। जिस पर आयोग ने एक्शन भी लिया है।
- कांग्रेस नेता राहुल गांधी को चुनाव आयोग का नोटिस
- पीएम नरेंद्र मोदी को पनौती जेबकतरा कहने वाले बयान पर नोटिस
- चुनाव आयोग ने माना बयान को आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन
- बीजेपी ने की थी चुनाव आयोग से राहुल गांधी की शिकायत
- चुनाव आयोग ने राहुल से 25 नवंबर तक मांगा जवाब
- राजस्थान के बायतु की सभा में की थी टिप्पणी
- राहुल गांधी के तीन बयानों पर आयोग का एक्शन
- विवादित बयानों से पहले भी बटोरी सुर्खियां
पीएम नरेंद्र मोदी के खिलाफ ‘पनौती’ और ‘जेबकतरा’ जैसी स्तरहीन टिप्पणी कर कांग्रेस नेता राहुल गांधी फंस गये हैं।चुनाव आयोग ने बीजेपी की शिकायत पर गुरुवार को उन्हें नोटिस थमाया है। चुनाव आयोग की ओर से उनसे शनिवार की शाम तक इस पर जवाब मांगा गया है। दरअसल बीजेपी ने राहुल की टिप्पणियों को अशोभनीय करार दिया था। राहुल गांधी ने मंगलवार ने को राजस्थान की एक चुनावी रैली को संबोधित करते हुए कहा था कि पीएम का मतलब पनौती मोदी क्रिकेट विश्वकप फाइनल में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ भारत की हार का जिक्र करते हुए राहुल ने दुर्भाग्य से जुड़े इस शब्द का इस्तेमाल किया था। ऐसे में शिकायत मिलने पर चुनाव आयोग ने राहुल गांधी की पनौती और जेबकतरा वाली टिप्पणी को आचार संहिता का उल्लंघन की श्रेणी माना है। और इसे लेकर राहुल गांधी को नोटिस दिया गया है। जिसका जवाब पेश करने के लिए चुनाव आयोग ने राहुल गांधी को 25 नवंबर तक जवाब का समय दिया है।
ये कहा था राहुल गांधी ने जनसभा के दौरान
कांग्रेस नेता राहुल गांधी के तीन बयान पर चुनाव आयोग ने एक्शन लिया है। दरअसल राहुल गांधी ने 22 नवंबर को राजस्थान बाड़मेर स्थित बायतु की जनसभा में जेबकतरे वाला बयान दिया था। चुनावी जनसभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम लिये बगैर उन पर पनौती और जेबकतरा जैसी टिप्पणी की थी। राहुल गांधी ने पहला बयान 22 नवंबर को बायतु की जनसभा में दिया था। इस दौरान उन्होंने कहा था जेबकतरे होते हैं। जब दो जेबकतरे किसी की जेब काटना चाहते हैं तो सबसे पहले क्या करते हैं। ध्यान हटाने का काम करते हैं। एक आता है आपके सामने और आपसे कोई ना कोई बातचीत करता है। आपका ध्यान इधर-उधर ले जाता है। पीछे से दूसरा आता है। जेब काट लेता है। चला जाता है। मगर जेबकतरा सबसे पहले ध्यान हटाता है। नरेंद्र मोदी जी का काम आपके ध्यान को इधर- उधर करने का और आपकी जेब काटने का है। दोनों आते हैं, एक टीवी पर आता है आपसे कहेगा हिंदू-मुस्लिम…। राहुल गांधी का दूसरा बयान विश्वकप क्रिकेट के फाइनल मैच को लेकर दिया था। जिसमें कहा था कि कभी क्रिकेट मैच में चला जाएगा। वो अलग बात है कि हरवा दिया, पनौती। पीएम मतलब पनौती मोदी। तीसरे बयान में राहुल गांधी ने उद्योगपतियों के कर्ज माफ करने पर सवाउ उठाते हुए कहा था कि पिछले 9 साल में नरेंद्र मोदी जी ने 14 लाख करोड़ रुपये हिंदुस्तान के सबसे बड़े अरबपतियों का कर्जा माफ किया। वे पूछना चाहते हैं इन 14 लाख लोगों में 14 लाख करोड़ रुपए में जो इन्होंने 10 सौ 15 लोगों को दिया…।
कितना नुकसानदायक हो सकता है ‘पनौती’
राहुल गांधी ने इस तरह विवादित बयान पहली बार नहीं दिया है। राहुल और कांग्रेस नेता पहले भी कई बार इस तरह के बयान और टिप्पणी कर चुके हैं। चुनाव के दौरान विवादित बयानों की वजह से कांग्रेस को सियासी नुकसान उठाना पड़ा है। बात करें साल 2017 के गुजरात चुनाव की तो उस दौरान कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर ने पीएम मोदी को नीच कहा था। बाद में चुनावी मुकाबले में कांग्रेस की हार का एक अहम फैक्टर बन गया। ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या पीएम मोदी को पनौती और जेबकतरा कहना कांग्रेस के लिए राजस्थान में नुकसानदायक साबित हो सकता है। सियासी जानकार कहते हैं कि कांग्रेस अपनी गलती से अब भी सीख नहीं ले रही है। भाजपा करीबी मुकाबले वाले चुनाव के दौरान हर बार में विवादित बयान की ताक में रहती है। जिससे चुनावी भावना को प्रधानमंत्री मोदी से जोड़ा जा सके। कांग्रेस ने कभी नरेंद्र मोदी को चाय वाला कहा था। इसके बाद तो भाजपा ने चाय पर चर्चा की रणनीति तैयार कर ली। जब पीएम को नीच कहा गया तो इसे बीजेपी ने पिछड़ा वर्ग के अपमान से जोड़ दिया। उसे इसका चुनावी लाभ भी मिला। ऐसे में जाहिर है राजस्थान में भी भाजपा का इसका चुनावी लाभ लेने की कोशिश करेगी। क्योंकि राजस्थान में भी चुनाव करीबी मुकाबलों में फंसा हुआ है।
जब जुबान फिसलने के साथ हाथ से फिसल गई सत्ता
चुनावी मौसम में विवादित बयान देना कई बार नेताओं और उनकी पार्टियों को भारी पड़ चुका है। उनके लिए मुसीबत का सबब बन चुका है। हम बात करेंगे साल 1962 के लोकसभा चुनाव की। तब पहली बार गलत बयान देने की वजह से भाजपा नेता स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेई को हार का सामना करना पड़ा था। बता दें 1962 के लोकसभा चुनाव में यूपी की बलरामपुर लोकसभा सीट से कांग्रेस की ओर से जनसंघ प्रत्याशी अटल बिहारी वाजपेई के सामने सुभद्रा जोशी को मैदान में उतारा था। चुनावी रैली में सुभद्रा ने बारहो मास छत्तीसो दिन यानी पूरे साल लोगों के बीच रहकर सेवा करने की बात कही थीं। लेकिन इसके विरोध में बोलते समय भाजपा नेता अटल बिहारी वाजपेई की जुबान फिसल गई थी। अटली जी ने यहां तक कह दिया कि महिलाएं महीने में चार दिन सेवा करने लायक रहती ही नहीं हैं। हालांकि बाद में अटलजी ने अपने बयान को लेकर सफाई दी, लेकिन सुभद्रा जोशी तब तक उनके इस बयान को भुनाने में कामयाब हो गईं थी। बलरामपुर से अटल बिहारी को चुनाव में हार का सामना करना पड़ा।
2007 में सोनिया की टिप्पणी कांग्रेस को भारी पड़ी
साल 2007 के गुजरात विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और बीजेपी के बीच काफी करीबी मुकाबला था। लेकिन उस समय तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी का एक बयान कांग्रेस को भारी पड़ गया और कांग्रेस सत्ता की रेस से बाहर हो गई। दरअसल चुनाव प्रचार के दौरान सोनिया गांधी ने भाषण में मौत का सौदागर शब्द का प्रयोग किया था। सोनिया का यह बयान को बीजेपी गुजरात में सत्ता दिला गया क्येंकि बीजेपी ने इसे गुजरात अस्मिता से जोड़ा और मुद्दा बनाया। बता दें सोनिया का यह बयान गुजरात दंगे के संदर्भ में था।
कांग्रेस का चाय वाला बयान, भाजपा को मिली सत्ता
साल 2013 में भाजपा ने गोवा अधिवेशन के बाद नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री का चेहरा घोषित किया था। उस समय कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर ने प्रतिक्रिया देते हुए तब कहा था कि नरेन्द्र मोदी चाय बेचने वाले का बेटा है। उन्हें चाय ही बेचना चाहिए। मणिशंकर अय्यर के इस बयान को भाजपा ने भुनाया और कांग्रेस के लिए नुकसानदायक साबित हुआ। उस सयम भाजपा लड़ाई गांधी परिवार वर्सेज आम आदमी बनाने में कामयाब रही और कांग्रेस 44 सीटों पर सिमट गई।
बिहार में भाजपा को भारी पड़ी थी नीतिश के डीएनए पर टिप्पणी
साल 2015 में दो बयानों ने भाजपा के विजयी रथ को रोकने में अहम भूमिका निभाई थी। बता दें बिहार चुनाव से पहले नरेंद्र मोदी की ओर से नीतीश कुमार के डीएनए पर टिप्पणी की गई थी। जिसे जेडीयू ने बिहार का अपमान बताते हुए पूरे राज्य में डीएनए यात्रा निकाली। इसके पहले आरएसएस प्रमुख ने आरक्षण की समीक्षा की बात कही थी। जिसे महागठबंधन की ओर से मुद्दा बनाया गया। महागठबंधन के नेता चुनाव में पिछड़े को गोलबंद करने में सफल रहे और बिहार में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा।