गाजीपुर में गर्माती राजनीति: ये रहा पर्दे के पीछे का सियासी खेल

एक लाख से अधिक वोटों से हारे थे मनोज सिन्हा

बढ़ती गर्मी और तपन के बीच गाजीपुर की राजनीति भी गर्माने लगी है। वजह ये है कि गाजीपुर लोकसभा सीट खाली है और यहां जल्द ही चुनाव होने की संभावना है। यहां से अफजाल अंसारी सांसद थे। उन्हे गैंगस्टर मामले में चार साल की सजा हुई है। जिसके कारण उनकी सांसदी चली गई। ऐसे में रिक्त सीट को लेकर राजनैतिक उठापटक शुरु हो गई है। सपा,बसपा,भाजपा और कांग्रेस सहित कई क्षेत्रीय दल यहां दांव आजमाने के मूड में हैं। इसके लिए नेताओं ने एक दूसरे को पटकनी देेने के लिए दांव पेंच दिखाना शुरु कर दिया है।

भाजपा के ‘मन की बात’

गाजीपुर लोकसभा सीट को लेकर सबसे पहले समझना पड़ेगा कि भाजपा के मन में क्या चल रहा है। ये सवाल इसलिए भी उठ रहा है कि गाजीपुर लोकसभा सीट भाजपा के लिए कई मायनों में महत्वपूर्ण है। इसलिए किसी भी सूरत में पार्टी यहां रिस्क नहीं लेगी और मजबूत उम्मीदवार पर ही दांव लगाएगी। जानकारों को मानना है कि यहां भाजपा अपने उम्मीदवार को उतारने से बेहतर किसी गठबंधन वाले दल पर भरोसा करेगी। इससे भाजपा को कई फायदे होंगे। एक जीत की ज्यादा उम्मीद होगी और दूसरी उसके अपने गठबंधन को मजबूती मिलेगी।

एक लाख से अधिक वोटों से हारे थे मनोज सिन्हा

पिछले लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने मनोज सिन्हा पर दांव लगाया था। 2019 में हुए इस चुनाव में अफजाल अंसारी ने एक लाख से अधिक वोटों से सिन्हा को हराया था। सिन्हा अभी जम्मू एंड कश्मीर के उपराज्यपाल है। यहां गाजीपुर में उनके बेटे ​अभिनव सिन्हा का नाम भी चर्चाओं में है। तमाम सियासी अटकलों के बीच यह भी कहा जा रहा है कि अभिनव ने अपनी चुनावी तैयारियों के चलते जनसंपर्क करना भी शुरु कर दिया है। इसके अलावा मोहम्मदाबाद की पूर्व विधायक अलका राय और उनके बेटे पियूष राय का नाम भी सुर्खियों में हैं। चर्चाओं गाजीपुर के पूर्व सांसद राधे मोहन सिंह की चर्चा इसलिए भी है कि 2009 में इन्होंने अफजाल अंसारी का हराने का सेहरा बांधा था। अब उन्होंने समाजवादी पार्टी का दामन छोड़ दिया है और भाजपा नेताओं के संपर्क में बताए जा रहे हैं। इसके अलावा करीब 15 साल से भाजपा में संगठन का ​दायित्व निभा रहे प्रोफेसर शोभनाथ यादव के नाम पर भी कयास लगाए जा रह हैं।

क्या सहयोगी दल पर भाजपा भरोसा करेगी

तमाम राजनैतिक अटकलों के बीच एक सवाल यह भी उठ रहा है कि क्या भाजपा अपने सहयोगी दल पर दांव लगाएगी। ये सवाल इसलिए भी है कि भाजपा के लिए गाजीपुर लोकसभा सीट बेहद खास है। इसलिए भाजपा ऐसी कोई रिस्क नहीं लेगी जो उसके लिए नुकसानदायक हो। भाजपा हाई कमान इस मामले में बेहद सोच समझकर कदम उठाएगी। इसलिए कहा जा रहा है कि यह सीट अपने गठबंधन वाले किसी सहयोगी दल के हवाले भी कर सकती है। इसके लिए निषाद पार्टी के उम्मीदवार या कोई सवर्ण चेहरा यहां उतार सकती है।

राजभर पर भी भरोसा कर सकती है भाजपा

हालांकि इसकी उम्मीद कम ही है। लेकिन जिस तरह से सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर का भाजपा के साथ संपर्क बढ़ रहा है उसको देखते हुए इस तरह की अटकलें लगाई जाने लगीं हैं। जानकारों का मानना है कि यदि राजभर के अलावा उनके परिवार के किसी सदस्य को भाजपा मैदान में उतार सकती है।

अन्य दल किस पर करेंगे भरोसा

गाजीपुर लोकसभा सीट के लिए भाजपा के अलावा दूसरें दलों की बात करें तो समाजवादी पाटी तो यहां भी कई नामों पर विचार चल रहा है। हालांकि ऐसी खुलकर किसी के नाम की चर्चा नहीं है लेकिन अंसारी परिवार के किसी सदस्य पर सपा भरोसा कर सकती है। क्योंकि गाजीपुर में भाजपा को अंसारी परिवार ने ही हराया था। अगर बीएसपी की बात करें तो पूर्व विधायक डॉक्टर राजकुमार गौतम के साथ डॉक्टर मुकेश सिंह का नाम भी चल रहे हैं।

ये रहा गाजीपुर का सियासी समीकरण

गाजीपुर वो लोकसभा क्षेत्र हैं जहां लोग हर हाल में अपनी जाति के उम्मीदवार पर भरोसा करते हैं। यहां जातिगत मुद्दों का प्रभाव चुनाव में ज्यादा देखा जाता है। यहां का मतदाता विकास तो चाहता है लेकिन जात बिरादरी और धर्म के नेताओं पर ज्यादा भरोसा करता है। यही कारण है कि कई हजार करोड़ के विकास वाली परियोजना का दावा मनोज सिन्हा ने किया था इसके बाद भी सपा, बसपा और रालोद के संयुक्त प्रत्याशी अफजाल अंसारी से चुनाव हार गए थे।

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