होली की उमंग…वेद और पुराण में भी किया गया है होली के त्योहार का इस रुप में उल्लेख…!
होली का उल्लेख वेदों और पुराणों में कई स्थानों पर मिलता है और यह एक प्राचीन हिंदू पर्व है।इसका धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व वेदों और पुराणों में वर्णित है। होली के त्योहार के साथ जुड़ी प्रमुख कथाएँ वेदों या पुराणों में मिलते हैं। आइये जानते हैं होली की कथाएं।
वेद-पुराण में होली का उल्लेख
वेदों में विशेष रूप से होली का स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता, लेकिन रंगों के प्रतीकात्मक उपयोग और उत्सवों का संदर्भ मिलता है। ऋग्वेद में कई स्थानों पर वसंत ऋतु के आनंद और प्रकृति के उन्नति का उल्लेख किया गया है। वसंत ऋतु के साथ जुड़े त्योहारों के संदर्भ में होलिका दहन और रंग खेलना प्रतीकात्मक रूप से दर्शाया जाता है। यह वसंत ऋतु में उगने वाली फसलों, फूलों, और रंगों का उत्सव है।
पद्म पुराण
पद्म पुराण में होली की कहानी को विस्तार से बताया गया है। इसमें हिरण्यकश्यप और प्रह्लाद के साथ जुड़ी कथा का वर्णन है।होली का दिन होलिका दहन से जुड़ा हुआ है। जिसमें बुराई होलिका का विनाश और अच्छाई प्रह्लाद की विजय का प्रतीक होता है। हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को मारने के लिए होलिका को अपने गोदी में लेकर अग्नि में बैठने को कहा क्योंकि होलिका को अग्नि से बचने का वरदान था। लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद बच गए और होलिका जलकर राख हो गई। इस दिन को बुराई पर अच्छाई की विजय के रूप में मनाने की परंपरा है।
भविष्य पुराण
भविष्य पुराण में भी होली के आयोजन का वर्णन किया गया है। इस पुराण के अनुसार, होली एक धार्मिक और सांस्कृतिक उत्सव के रूप में मनाने की परंपरा का आरंभ भगवान कृष्ण और राधा के समय से हुआ। इस पुराण में कृष्ण और राधा के रंगों के साथ खेल की बात की गई है, जिससे यह संदेश मिलता है कि होली प्रेम और समर्पण का पर्व है।
माल्ली पुराण
माल्ली पुराण में भी होली के बारे में उल्लेख है। जिसमें होलिका दहन की कथा है और कैसे इस दिन को बुराई के नाश के रूप में मनाया जाता है।
वृष्णि पुराण
विष्णु पुराण में भगवान विष्णु की कई अवतारों की कथाएँ दी गई हैं, और उसमें प्रह्लाद और हिरण्यकश्यप की कहानी भी है, जो होली के उत्सव से जुड़ी है। इस कथा में भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद बचते हैं और होलिका जलकर नष्ट होती है।
कृष्ण और राधा की लीला
होलिका और कृष्ण की लीला के रूप में होली का आयोजन भगवान कृष्ण के जीवन से जुड़ा हुआ है। कृष्ण जी ने राधा और गोपियों के साथ रंगों से खेला था, जो प्रेम का प्रतीक था। यह भी एक कारण है कि होली के दिन रंगों से खेलने की परंपरा आज भी है।
वेदों में होली का कोई विशिष्ट उल्लेख नहीं है, लेकिन वसंत ऋतु के उत्सव और रंगों के प्रतीकात्मक संदर्भ मिलते हैं। पुराणों में विशेष रूप से पद्म पुराण, भविष्य पुराण, और विष्णु पुराण में होली के पीछे की धार्मिक कथाएँ और भगवान कृष्ण के रंग खेलों का उल्लेख है। होलिका दहन और प्रह्लाद की कथा से जुड़ा हुआ होलिका दहन का पर्व भी पुराणों में वर्णित है। जो बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है। यह पर्व पूरी तरह से प्रेम, समाज में एकता, और धार्मिक शुद्धता का प्रतीक माना जाता है और इस परंपरा का गहरा धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है।