जोशीमठ, डोडा और अब चंबा में जमीन का धंसना, प्रकृति हमें दे रही है बार-बार चेतावनी

अंधाधुंध खनन है जिम्मेदार!

प्रतीकात्मक तस्वीर

चंबा और शिमला। हिमाचल प्रदेश के चंबा जिले के जनजातीय क्षेत्र भरमौर  में एक पुल 4 फरवीर को जमींदोज हुआ। अब यह इलाका शेष दुनिया से कट गया है। यह शनिवार 4 फरवरी को देर रात की घटना है। हालांकि, घटना में किसी के हताहत होने की खबर नहीं है।

जोशीमठ, डोडा, भरमौर और अब चंबा

हिमाचल के चंबा जिले के भरमौर में भी बीते दिन एक वैली ब्रिज टूट गया था। घटना के दौरान दो बड़े ट्रक नाले में गिर गए थ और एक युवक की मौत हो गई, जबकि एक अन्य घायल हो गया था। पुल पर क्षमता से अधिक भार वाले ट्रक गुजरने से यह हादसा हुआ था। हाईड्रो प्रोजेक्ट में लगे यह डंपर रात को पुल से गुजर रहे थे। बीते एक महीने में इससे पहले जोशीमठ में जमीन दरकने से 50 से अधिक परिवारों को शिफ्ट करना पड़ा, हाल ही में दो दिनों पहले जम्मू के डोडा में ऐसी ही घटना हुई तो वहां से भी 16 परिवारों को निकालना पड़ा था। अब हिमाचल में भी ऐसी घटनाएं हो रही हैं।

भूस्खलन के साथ ही बर्फीला तूफान भी हिमाचल में

चंबा में जमीन तो धंस ही रही है, हिमाचल प्रदेश के लाहौल स्पीति जिले में एवलांच यानी बर्फीला तूफान आ गया है। इसके आने से जिले को पांगी-चंबा से जोड़ने वाला मार्ग बंद हो गया है। स्टेट हाईवे-26 पर यह तूफान आने से शनिवार देर शाम को यह मार्ग बंद हो गया और बड़ी संख्या में लोग यहां फंस गए थे। पुलिस ने 70 लोगों को यहां से बचाकर रात को रेस्ट हाउस में ठहराया।

लोगों को रेस्क्यू किया गया है, लेकिन सड़क अब भी बंद है। 70 लोगों को रेस्क्यू किया गया है, सभी को सुरक्षित ठहराया गया है और सड़क को भी जल्द बहाल कर दिया जाएगा।

हाइड्रो प्रोजेक्ट, अंधाधुंध खनन से है खतरा

हिमाचल हो, जम्मू हो या हिमाचल प्रदेश, मानवीय लालच और अंधाधुंध खनन से इन जगहों के पहाड़ों को ही खतरा पैदा हो गया है। इसके अलावा जैसा कि हमने जोशीमठ और जम्मू में देखा, कहीं अगर भूस्खलन हुआ है तो उस मलबे को ठीक से बैठने का मौका दिए बिना ही उस पर नयी बस्ती बना दी जा रही है। जोशीमठ और जम्मू में ठीक यही हुआ था।

हिमाचल प्रदेश की जलविद्युत नीति 2022 के अनुरूप उत्तराखंड में भी जल विद्युत नीतियों में संशोधन के प्रस्ताव के बाद दिसंबर 2022 में ही नयी नीति को मंजूरी दे दी गयी है। इस नीति के अधिकांश आयाम उद्योगपतियों को छूट देने के समान हैं। इसमें पहाड़ों में स्टोन क्रशर लगाने से लेकर फीस को 25 लाख से 1 लाख तक करना शामिल है। जाहिर है, ऐसे में पर्वतीय राज्यों में उद्योगपतियों का रेला लगेगा ही।

इन दोनों ही राज्यों में दर्जनों हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट चल रहे हैं। उत्तराखंड में 20 से अधिक जलविद्युत परियोजनाओं को पुनर्जीवित किया गया है। जोशीमठ के बाशिंदों का आरोप था कि एनटीपीसी की खुदाई और सुरंगों के चलते ही पानी वहां के घरों के नीचे पहुंचा और दरारें पड़ीं।

आरोप-प्रत्यारोप का दौर तो चलता रहेगा, लेकिन फिलहाल सबसे बड़ा सवाल है कि प्रकृति अगर अपने रौद्र अवतार में आयी, तो उससे बचने का उपाय क्या सरकारों ने सोचा है? या सबकुछ भगवान भरोसे छोड़ दिया है?

Exit mobile version