जयराम के साथ नड्डा की अग्निपरीक्षा
हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और भाजपा आपने सामने हैं इस बार सत्ता परिवर्तन की उम्मीद की जा रही है। इस संघर्ष में सत्ता परिवर्तन के आसार उभर कर सामने आ रहे है। इस तरह की चिंता अदर ही अंदर भाजपा को डरा रही है। वैसे हिमाचल विधानसभा चुनाव की अधिूसचना जारी होते ही राज्य का सियासी पारा चढ़ गया है। सर्द हवाओं के बीच सियासी पार्टी दावे और कई वादे कर रही हैं। हिमाचल प्रदेश की 68 सीटों के लिए 12 नवंबर को मतदान और 8 दिसंबर को मतगणना होगी।यहा वर्तमान में भाजपा सत्ता में है, लेकिन उसे एक परंपरा सता रही है और वो है सत्ता परिवर्तन। हिमाचल में पिछले 3 दशक से ऐसा होता आया है। हर पांच साल में सत्ता बदल जाती है।
हर पांच साल में बदलती रही है सत्ता
हिमाचल प्रदेश में पिछले साढ़े तीन दशकों से हर पांच साल में सत्ता बदलने का ट्रेंड चला आ रहा है। बीजेपी सत्ता परिवर्तन के सिलसिले को तोड़ने की कवायद में जुटी है तो कांग्रेस सत्ता में वापसी की उम्मीद लगाए हुए हैं। ऐसे में देखना है कि इस बार ट्रेंड बरकरार रहता है या फिर टूट जाएगी परंपरा? हिमाचल प्रदेश की राजनीति और 1985 के बाद से अब तक हुए विधानसभा चुनाव को देखें तो यहां हर पांच साल बाद सत्ता परिवर्तन हुआ है। हिमाचल में पांच साल कांग्रेस तो पांच साल बीजेपी राज करती रही है। मौजूदा समय में बीजेपी सत्ता पर काबिज है। जिसके चलते कांग्रेस का आत्मविश्वास बढ़ा हुआ है। उसे सत्ता में वापसी की आस दिख रही है। लेकिन बीजेपी इस इतिहास को बदलने के लिए हर संभव कोशिश में जुटी है। बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा का गृह राज्य हिमाचल है। जिसके चलते बीजेपी के लिए काफी अहम माना जा रहा है।
शांता कुमार बने थे पहले गैर कांग्रेस सीएम
हिमाचल में लंबे समय कांग्रेस का दबदबा रहा है। हालांकि आपातकाल के बाद से सियासी हालत बदल गई। हिमाचल प्रदेश में 1952 से लेकर 1977 तक कांग्रेस का राज रहा। यशवंत सिंह परमार और रामलाल ठाकुर कांग्रेस सरकार में मुख्यमंत्री बनते रहे। हिमाचल में नए युग की शुरुआत आपातकाल के बाद शुरू हुई। 1977 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को सत्ता से बेदखल होना पड़ा। यहां जनता पार्टी की अगुवाई में सरकार बनी। जनता पार्टी की सरकार में शांता कुमार मुख्यमंत्री बने और इस तरह पहली बार गैर.कांग्रेस सरकार बनी। आपातकाल के बाद 1980 में कांग्रेस सत्ता में वापसी की और 1985 में दोबारा सत्ता में काबिज हुईए लेकिन इसके बाद से ही सत्ता परिवर्तन का ट्रेंड शुरू हुआ। 1990 के विधानसभा चुनाव हुए तो बीजेपी 46 सीटें जीतकर सत्ता में आई। लेकिन अयोध्या में बाबरी विध्वंस के बाद 1992 में सरकार बर्खास्त कर दी गई। ऐसे में 1993 में विधानसभा चुनाव हुए तो कांग्रेस वापसी करने में कामयाब रही और वीरभद्र सिंह मुख्यमंत्री बने। पांच साल के बाद 1998 में विधानसभा चुनाव हुए बीजेपी ने कांग्रेस को सत्ता से बेदखल कर दिया और प्रेम कुमार धूमल मुख्यमंत्री बने।
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कभी वीरभद्र तो कभी धूमल ने संभाली कुर्सी
हिमाचल में कांग्रेस और बीजेपी के बीच ही नहीं बल्कि वीरभद्र सिंह और प्रेम कुमार धूमल के इर्द गिर्द भी सत्ता घूमती रही। 2003 में विधानसभा चुनाव हुए और कांग्रेस ने बीजेपी को मात देकर फिर से सत्ता में वापसी की। वीरभद्र सिंह मुख्यमंत्री बने। इस चुनाव में कांग्रेस 43 सीटें जीती तो बीजेपी 16 सीटों पर संतोश करना पड़ा। इसके बाद साल 2007 में विधानसभा चुनाव हुए। जिसमें बीजेपी को 41 सीट मिली ते कांग्रेस की ढोी में 23 सीटें थी। तब बीजेपी सरकार बनाने में कामयाब रही और प्रेम कुमार धूमल सीएम बने। लेकिन 2012 के चुनाव में कांग्रेस ने वापसी की। 36 सीटों के साथ कांग्रेस ने सरकार बनाई। तब बीजेपी को 26 सीट ही मिली थी। कांग्रेस से वीरभद्र सिंह मुख्यमंत्री बने लेकिन पांच साल के बाद चुनाव हुए तो वीरभद्र कुर्सी नहीं बचा पाए। 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा। सत्ता में बीजेपी ने वापसी की लेकिन लेकिन तब धूमल चुनाव हार गए थे।
क्या जयराम बचा पाएंगे कुर्सी
2017 में बीजेपी की सत्ता में वापसी हुई तो जयराम ठाकुर के सिर सत्ता का ताज सजा। जयराम ठाकुर मुख्यमंत्री की लंबी सूची में नया नाम जुड़कर आया। अब पांच साल के बाद उन्हें परीक्षा देना है। क्योंकि हर पांच साल में सत्ता बदलने की परंपरा बीजेपी और जयराम के लिए चिंता का सबब बनी हुई है। हालांकि बीजेपी इस ट्रेंड को तोड़ने के लिए हर संभव कोशिश में जुटी है।
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