जानें हरियाणा चुनाव में कौन है किंग और किंगमेकर…चौटाला परिवार के सामने सियासी वजूद बचाने की चुनौती…

Haryana assembly elections Chautala family political crisis

हरियाणा में भी विधानसभा चुनाव की घोषणा हो चुकी है। राज्य की 90 सीटों पर एक ही चरण में वोटिंग होगी। 1 अक्टूबर को सभी 90 सीटों पर वोट डाले जाएंगे। जबकि चुनाव के नतीजे तीन दिन बाद 4 अक्टूबर को सामने आएंगे। इस बार के विधानसभा चुनाव में चौटाला परिवार के सामने सियासी वजूद बचाने की चुनौती है। हरियाणा की सियासत के ताऊ कहे जाने वाले चौधरी देवीलाल की विरासत चौटाला परिवार संभाल रहा है। इस परिवार की एक समय राज्य में तूती बोलती थी। चौटाला परिवार के बगैर हरियाणा की सियासत अधूरी है। सिरसा स्थित गांव तेजा खेड़ा में जन्में चौधरी देवीलाल का हरियाणा राज्य की सियासत में ऊंचा स्थान माना जाता रहा है।

देश के डिप्टी पीएम रहे चौधरी देवीलाल की सियासी विरासत को ओम प्रकाश चौटाला ने आगे बढ़ाया, जो हरियाणा के मुख्यमंत्री रहे। देवीलाल के नाम की बदौलत आज उनकी चौथी पीढ़ी भले ही राजनीति में सक्रिय हो, लेकिन अब देवीलाल का परिवार न सियासत के किंग है और न ही किंगमेकर। हालात यह है कि चौटाला परिवार को इस बार 2024 के विधानसभा चुनाव में अपने सियासी वजूद को बचाए रखना भी किसी चुनौती से कम नहीं।

वैसे 1952 में आजादी के बाद हुए पहले चुनाव में चौधरी देवीलाल विधायक चुने गये थे। इस चुनाव में मिली जीत के बाद सियासत में उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। देवीलाल ने विधानसभा पहुंचकर भाषा के आधार पर अलग हरियाणा स्टेट के गठन की मांग को उठाया। पंजाब से अलग होकर जब हरियाणा बना तो इसके बाद चौधरी देवीलाल की राज्य के मुख्यमंत्री बंसीलाल से खटपट हो गई। सियासी मतभेद इतने गहराए कि साल 1968 में जब मध्यावधि चुनाव हुए तो कांग्रेस की ओर से चौधरी देवीलाल को टिकट तक नहीं दिया गया और इसके बाद देवीलाल का कांग्रेस से मोहभंग हो गया। साल 1971 में देवीलाल कांग्रेस को छोड़कर आपातकाल के दौर में सक्रिय हुए। इसके बाद वे हरियाणा में जनता पार्टी के सबसे बड़े लीडर के रुप में उभरे। चौधरी देवीलाल ने हरियाणा की राजनीति जो जड़े जमाई तो 1977 और फिर इसके बाद 1987 में हरियाणा के सीएम की कुर्सी तक पहुंचे। इसके बाद वे वीपी सिंह और चंद्रशेखर की सरकार में डिप्टी पीएम की कुर्सी पर बैठे।

इंडियन नेशनल लोकदल की स्थापना करने वाले चौधरी देवीलाल के चार बेटे हुए। ओम प्रकाश चौटाला उनके बाद रणजीत सिंह चौटाला फिर प्रताप सिंह और सबसे छोटे बेटे जगदीश सिंह चौटाला है। ओम प्रकाश चौटाला देवीलाल की सियासी वारिस बनकर उभरे। ओम प्रकाश चौटाला हरियाणा के पांच बार मुख्यमंत्री बने। लेकिन शिक्षक भर्ती घोटाले में घिरने के बाद ओम प्रकाश चौटाला और उनकी सियासत दोनों संकट में आ गये। इसके बाद से ही चौटाला परिवार सियासत में फिर से उभर नहीं पाया।

जब चौधरी देवीलाल ने ओम प्रकाश चौटाला को अपना सियासी वारिस चुना तो उनके दूसरे बेटे रणजीत चौटाला उनसे दूर हो गए। रणजीत चौटाला ने अपने पिता की पार्टी से किनारा कर लिया। कांग्रेस का हाथ पकड़कर सिरसा की रानियां विधानसभा क्षेत्र उन्होंने अपनी कर्मभूमि बनाया। हालांकि 2019 में निर्दलीय विधायक चुने जाने के बाद रणजीत चौटाला ने हरियाणा में बीजेपी की सरकार को समर्थन देकर मंत्री की कुर्सी हासिल की थी लेकिन अब रणजीत को भी अपने सियासी वजूद की चिंता सताने लगी है।

लोकसभा चुनाव में मिली हार

रणजीत चौटाला 2024 के लोकसभा चुनाव में सिरसा सीट से बीजेपी के टिकट पर मैदान में उतरे, लेकिन जीत नहीं मिली। अब उनकी सीट रानियां विधानसभा सीट से गोपाल कांडा के भाई अपने बेटे को चुनाव मैदान में उतारना चाहते हैं। जिसकी घोषणा भी की जा चुकी है। ऐसे में रणजीत चौटाला के लिए कशमकश भरी स्थिति बन गई है। वे बीजेपी से बागी हो चुके हैं। इस बार विधानसभा चुनाव में निर्दलीय के रुप में चुनावी मैदान में उतरते हैं।

दो धड़ों में बंट गई चौटाला की पार्टी

ओम प्रकाश चौटाला ने अपने दोनों बेटे अजय चौटाला और अभय चौटाला को राजनीति में आगे बढ़ाया। लेकिन 2019 के चुनाव में इनेलो दोनों ही बेटों में विभाजित हो गई। बड़े बेटे अजय चौटाला ने अपने बेटे दुष्यंत चौटाला के साथ मिलकर अलग जनता जननायक पार्टी का गठन किया। साज 2019 के विधानसभा चुनाव हुए तो जेजेपी ने दस सीटें हासिल की थी।
जिसके बदले बीजेपी ने दुष्यंत को डिप्टी सीएम बनाया। अब पांच साल के बाद जेजेपी के दस में सात विधायक उनका साथ छोड़ चुके हैं। ऐसे में इस बार के चुनाव में जेजेपी के सामने सियासी वजूद को बचाए रखने की चुनौती है।

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