सरकार से नाराज हैं ‘भगवान’,चुनाव की चिंता में ‘विकास यात्रा’ लेकर सड़क पर उतरे शिवराज

Vikas Yatra Chief Minister Shivraj Singh Chouhan

Vikas Yatra: मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अक्सर अपने भाषणों में प्रदेश की साढ़े सात करोड़ जनता को भगवान कह संबोधित कर चुके हैं। मुख्यमंत्री अक्सर कहते रहते हैं कि प्रदेश की जनता उनके लिए भगवान है और वे पुजारी है सेवक हैं। लेकिन ये भगवान यानी प्रदेश की जनता सरकार से नाराज है। योजनाएं कई तरह की बनाई गई हैं,लेकिन उनका लाभ महज रसूखदारों को मिल रहा है। सत्ता से जुड़े लोगों को मिल रहा है। यहा वजह है कि जनता इन दिनों अपने पुजारी से नाराज दिखाई दे रही है। और यही वजह है कि विकास यात्रा के बहाने मुख्यमंत्री प्रदेश की जनता की नाराजगी को दूर करना चाहते हैं।

शिवराज सरकार के खिलाफ एंटी इनकम्बेंसी

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि विकास यात्रा निकालकर सीएम शिवराज जनता को मनाने का प्रयास कर रहे है, ये विधानसभा चुनाव से पहले एंटीइंकम्बेंसी की चुनौती से निपटने की सुनियोजित रणनीति का हिस्सा है। क्योंकि बीजेपी और उसके नेता बाहरी तौर पर भले ही ये कहते रहें कि प्रदेश में सबकुछ ठीकठाक है लेकिन दबी जुबान में वे ये स्वीकार करते हैं कि सरकार के खिलाफ कहीं न कहीं एंटी इनकम्बेंसी दिखाई दे रही है। बता दें गुजरात के बाद बीजेपी मध्य प्रदेश में बम्पर जीत हासिल करने की रणनीति पर काम कर रही है। इंटरनल सर्वे और इंटेलीजेंस की रिपोर्ट से हाईकमान को पक्का यकीन हो गया है कि अगले विधानसभा चुनाव में प्रदेश में एंटी इनकम्बेंसी से बड़ा नुकसान होने वाला है। गुजरात में विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी ने कई बड़े और कड़े फैसले लिए थे। जिसके चलते चुनाव में सफलता मिली ऐसे में वहां के रिजल्ट ने मुहर लगा दी है कि शिवराज सरकार की बड़ी सर्जरी करके ही जनता के गुस्से को कम किया जा सकता है।

2018 के चुनाव में भारी पड़ गई थी एंटी इनकम्बेंसी

दरअसल एंटी इनकम्बेंसी तो है। वजह साफ है कि 18 साल से एक ही पार्टी की सरकार का होना। कमलनाथ सरकार के 15 महीनों को छोड़ दें तो शिवराज सिंह चौहान 16 साल से मुख्यमंत्री हैं। बीजेपी 2018 के चुनाव में एंटी इनकम्बेंसी को नहीं भांप पाई और कठोर फैसले नहीं लिए गए। परिणाम ये हुआ कि उसे सत्ता से बाहर होना पड़ा था। 2013 की तुलना में 2018 में 56 सीटों का नुकसान झेलना पड़ा। बीजेपी की राजनीति पर गौर करें तो बीजेपी के लिए विधानसभा चुनाव से ज्यादा अगले साल 2024 का लोकसभा चुनाव महत्वपूर्ण है। माना जा रहा है कि मध्यप्रदेश में होने वाला विधानसभा चुनाव दिल्ली से लड़ा जाएगा।
बीजेपी से जुड़े सूत्र बताते हैं चुनाव से पहले कराए गए इंटरनल सर्वे में मुख्यमंत्री और  कई मंत्रियों के बारे में नेगेटिव फीडबैक मिला है। यही वजह है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के चेहरे को आगे रखा जा रहा है। कुछ समय पहले अमित शाह ग्वालियर आए थे। उन्होंने कहा था कि वोट नरेंद्र मोदी के नाम पर दीजिए। चेहरे से कितना फर्क पड़ता है इसके लिए मप्र के पिछले 2018 के चुनाव परिणाम को ही देखा जा सकता है। 2018 में शिवराज के नेतृत्व में हुए चुनाव में बीजेपी को बहुमत नहीं मिला लेकिन कुछ महीने बाद हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 29 में से 28 सीटें मिलीं।

शिवराज के साथ कई मंत्रियों को लेकर नाराजगी

हालांकि प्रदेश में बड़े वर्ग में शिवराज के साथ कई मंत्रियों को लेकर नाराजगी है। इसके बाद भी अब तक मप्र में मुखिया नहीं बदला, लेकिन विधानसभा चुनाव में जीत हासिल करने के लिए उसे मंत्रिमंडल में बड़ा बदलाव करना होगा। नए चेहरों को मौका मिलेगा। एससी-एसटी वर्ग के ज्यादा विधायक मंत्री बनाए जा सकते हैं। भौगोलिक क्षेत्र और जातिकरण समीकरण देखते हुए संख्या घटाई-बढ़ाई जाएगी। अभी 30 मंत्री हैं। जिनमें 10 क्षत्रिय, 8 ओबीसी, 3 एससी, 4 एसटी, 2 ब्राह्मण और 1 सिख कोटे से है।

कटेंगे 60 से 65 विधायकों के टिकट

विधानसभा चुनाव में चेहरा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ही होगा। मौजूदा 127 विधायक जिनमें मंत्री भी शामिल में से करीब 65 के टिकट कटेंगे। हालांकि जहां मंत्रियों को टिकट नहीं मिलेगा वहां प्रत्याशी का नाम फाइनल करने में उनकी सहमति ली जाएगी। कुछ सीटों पर एंटी इनकम्बेंसी कम करने के लिए मंत्री के परिवार से किसी को टिकट दिया जा सकता है। गुजरात की तरह ही मप्र में नई जिम्मेदारी देने की बात कहकर आलाकमान मंत्रियों को खुद हटने की घोषणा करने के लिए राजी कर सकता है। जिन विधायकों के टिकट काटे जाएंगे। उनसे भी वन-टू-वन चर्चा की जाएगी ताकि भितरघात के हालात नहीं बनें।

निकाय चुनाव में बीजेपी ने खो दिए बड़े शहर

पिछले साल नगरीय निकाय चुनाव ने बड़े शहरों में बीजेपी के लिए अलॉर्म का काम किया। बीजेपी का सक्सेस रेट जहां 100% था, वह घटकर 56% पर आ गया है। विंध्य से रीवा, ग्वालियर, चंबल में मुरैना जैसे बड़े शहर बीजेपी के हाथ से जा चुके हैं। मालवा-निमाड़ के उज्जैन, बुरहानपुर जैसे शहरों में जरूर इनके महापौर जीते, लेकिन कांग्रेस से कड़ी चुनौती मिली। पिछले चुनाव में बीजेपी ने सभी 16 नगर निगमों में कब्जा किया था लेकिन 2022 में बीजेपी ने 7 महापौर गंवा दिए।

सिंधिया गुट के साथ शक्ति संतुलन बड़ी चुनौती

मध्यप्रदेश में सिंधिया गुट एक महत्वपूर्ण फैक्टर बन गया है। कांग्रेस का एक पूरा धड़ा बीजेपी में शामिल हुआ, ऐसे में विधानसभा चुनाव के समय शक्ति संतुलन बनाना बीजेपी के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है।

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