इन दिनों गीता प्रेस सुर्खियों में बनी हुई है, कारण है गांधी शांति पुरस्कार. सरकार ने साल 2021 के लिए गीता प्रेस को गांधी शांति पुरस्कार के चुना है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली कमेटी ने रविवार को इसकी आधिकारिक घोषणा की. पीएम की घोषणा के बाद ही इस पर विवाद शुरू हो गया है. कांग्रेस सरकार के इस फैसले के विरोध में उतर आई है. कांग्रेस इसे सावरकर और गोडसे को सम्मान देना बता रही है.हालांकि बीजेपी इसे सनातन संस्कृति को फैलाने के लिए सम्मान बता रही है. गांधी शांति पुरस्कार के साथ गीता प्रेस को 1 करोड़ रुपये की धनराशि से भी पुरस्कृत किया गया था. लेकिन गीता प्रेस ने इस राशि को लेने से इंकार कर दिया.
क्यों मच रहा विवाद ?
गीता प्रेस को गांधी पुरस्कार देने पर विवाद भी शुरू हो चुका है. कांग्रेस गीता प्रेस को गांधी पुरस्कार देने पर भड़क गई है. कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने केंद्र सरकार के इस कदम की आलोचना करी है.पार्टी के वरिष्ठ नेता ने इसे गोडसे और सावरकर को पुरस्कार देने जैसे बताया है. जयराम रमेश का कहना है कि लेखक अक्षय मुकुल ने गीता प्रेस के संस्थापकों पर एक बहुत ही अच्छी जीवनी लिखी है, जिसमें महात्मा गांधी के साथ इसके संबंधों और अलग अलग मोर्चों पर चल रही लड़ाइयों का पता चलता है.
हिंदु धर्म ग्रंथों की सबसे बड़ी प्रकाशक है प्रेस
उत्तरप्रदेश के गोरखपुर में स्थापित गीता प्रेस का इतिहास बहुत पुराना है. इसकी स्थापना 29 अप्रैल , 1923 को जय दयाल गोयनका, घनश्याम दास जालान और हनुमान प्रसाद द्वारा गोरखपुर में की गई थी. गीता प्रेस हिंदु धर्म ग्रंथों का सबसे बड़ा प्रकाशक है. इसका मुख्य उद्देश्य ही सनातन धर्म के सिध्दांतों के प्रचार प्रसार का है. बता दें कि गीता प्रेस अभी तक हिंदु धर्म की 41 करोड़ किताबे छाप चुका है. .यह किताबे 14 भाषाओं में उपलब्ध हैं. प्रेस ने अभी तक सबसे ज्यादा श्रीमद्भगवद्गीता की 16.21 करोड़ प्रतियां छापी है.
कैसे काम करता है गीता प्रेस ?
प्रेस की बेबसाइट के अनुसार इसका प्रबंध गवर्निंग काउंसिल यानि ट्रस्ट के द्वारा संभाला जाता है. बता दें कि गीता प्रेस न तो चंदा मांगता है न ही किसी तरह के विज्ञापनों से पैसे कमाता है. इसका सारा खर्चा सामाजिक संगठनों और लोगों द्वारा वहन किया जाता है जो सस्ती कीमत पर प्रिटिंग की चीजे प्रदान करते हैं.
क्या है गांधी पुरस्कार ?
गांधी पुरस्कार एक वार्षिक पुरस्कार है, जो गांधीवादी तरीकों से सामाजिक, आर्थिक क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए दिया जाता है. यह पुरस्कार हर साल महात्मा गांधी के आदर्शों को याद दिलाने के स्वरूप में दिया जाता है. पुरस्कार की शुरूआत 1995 में तत्कालीन नरसिम्हा राव सरकार द्वारा की गई थी. गांधी पुरस्कार पाने वाले व्यक्ति को सरकार की तरफ से एक करोड़ रूपए राशि , एक . प्रशस्ति पत्र और एक पट्टिका उपहरा स्वरूप दी जाती है. पुरस्कार पाने के लिए आपका भारतीय होने मायने नहीं रखता है. बता दें कि 2019 में यह पुरस्कार ओमान के सुल्तान को दिया गया था, वहीं 2020 में यह पुरस्कार बांग्लादेश के पहले राष्ट्रपति मुजीबुर रहमान को दिया गया था. इसरो , रामकृष्ण मिशन,विवेकानंद केंद्र जैसे सामाजिक संस्थानों भी यह पुरस्कार जीत चुके हैं.