बुद्ध पूर्णिमा एक बौद्ध त्योहार है जो गौतम बुद्ध के जन्म का जश्न मनाया जाता है। गौतम बुद्ध ही बौद्ध धर्म के संस्थापक थे। उनका असली नाम सिद्धार्थ गौतम था और उनका जन्म लुंबिनी नेपाल में हुआ था। बुद्ध पूर्णिमा बौद्धों का सबसे बड़ा पर्व है। इसे बुद्ध जयंती के नाम से भी जाना जाता है। हिन्दू पंचांग के अनुसार वैशाख मास की पूर्णिमा को बुद्ध पूर्णिमा मनाई जाती है। इसीलिए इसे वैशाख पूर्णिमा भी कहते हैं। ये आश्र्चयजनक है कि भगवान बुद्ध का जन्म, ज्ञान और उन्हें महापरिनिर्वाण की प्राप्ति सभी वैशाख पूर्णिमा को हुई थी। गौतम बुद्ध को भगवान विष्णु का 9वां अवतार माना जाता है।
- बुद्ध पूर्णिमा बौद्धों का सबसे बड़ा पर्व
- वैशाख मास की पूर्णिमा को बुद्ध पूर्णिमा मनाई जाती हे
- भगवान श्री विष्णु का 9वां अवतार हैं गौतम बुद्ध
- वैशाख पूर्णिमा पर ही जन्म और महापरिनिर्वाण
भारत में विभिन्न धर्मों के लोग रहते हैं। इसमें बौद्ध धर्म के अनुयायी भी शामिल हैं। बौद्ध धर्म एक प्राचीन भारतीय धर्म है और विश्व के प्रमुख धर्मों में से एक है। एक धर्म और दर्शन है। बौद्ध धर्म की स्थापना तथागत भगवान बुद्ध ने लगभग 2600 वर्ष पूर्व की थी। बुद्ध का जन्म-मृत्यु काल 536 ईसा पूर्व-483 ईसा पूर्व माना जाता है। अधिकांश बौद्ध चीन, जापान, कोरिया, थाईलैंड, कंबोडिया, श्रीलंका, नेपाल, भूटान और भारत जैसे देशों में रहते हैं। आइए आज हम बौद्ध धर्म के बारे में कुछ महत्वपूर्ण और रोचक जानकारी प्राप्त करते हैं। बुद्ध का जन्म और मृत्यु ‘536 ईसा पूर्व – 483 ईसा पूर्व’ मानी जाती है। हाल के शोध से पता चलता है कि बुद्ध का जन्म इस वर्ष से लगभग एक सदी पहले हुआ था। ‘623 ईसा पूर्व – 543 ईसा पूर्व’ बुद्ध का जीवनकाल माना जाता है। बुद्ध का वास्तविक नाम सिद्धार्थ गौतम था। ‘बुद्ध’ एक सम्मानसूचक उपाधि है, व्यक्तिगत नाम नहीं। इसका अर्थ है ‘जागृत मनुष्य। बौद्ध धर्म में एक भी केंद्रीय ग्रंथ नहीं है। बौद्ध धर्म के कई ग्रंथ हैं। जिन्हें कोई भी अपने पूरे जीवनकाल में नहीं पढ़ सकता है। बौद्ध धर्मग्रंथों में त्रिपिटक को सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथ माना जाता है।
लुंबिनी में वैशाख पूर्णिमा के दिन हुआ था बुद्ध का जन्म
बुद्ध का जन्म नेपाल के लुंबिनी में वैशाख पूर्णिमा के दिन एक बगीचे में हुआ था। बौद्ध धर्म में अन्य धार्मिक प्रथाओं की तरह एक निर्माता, ईश्वर या देवताओं में विश्वास करने की आवश्यकता नहीं है। बौद्ध धर्म तीन बुनियादी अवधारणाओं में विश्वास करता है। कुछ भी स्थायी नहीं है। दुनिया के छह देश आधिकारिक तौर पर बौद्ध राष्ट्र हैं। जिनमें भूटान, कंबोडिया, श्रीलंका, थाईलैंड, लाओस और म्यांमार शामिल है। दूसरी ओर, मंगोलिया, काल्मिकिया और चीन दुनिया के ऐसे देश हैं जो आधिकारिक तौर पर बौद्ध राष्ट्र नहीं हैं, लेकिन बौद्ध धर्म का समर्थन करते हैं। और उसका प्रचार करता है। जब वैज्ञानिकों ने बौद्ध भिक्षुओं के मस्तिष्क का अध्ययन किया, तो उन्होंने पाया कि ध्यान ने भिक्षुओं की मस्तिष्क तरंगों को इस तरह बदल दिया कि खुशी और लचीलापन की भावना कई गुना बढ़ गई। बुद्ध की प्रथम प्रतिमा मथुरा कला के अंतर्गत बनाई गई थी। इसलिए अधिकांश बुद्ध प्रतिमाएँ गांधार शैली के अंतर्गत बनाई गई थीं। पहला विश्व धर्म होने के अलावा बौद्ध धर्म पहला मिशनरी धर्म भी था जो अपने उद्गम स्थल से दूर-दूर तक पूरे विश्व में फैला।
पूर्णिमा को ही बोधिवृक्ष के नीचे मिला था ज्ञान
लुम्बिनी में ईसा पूर्व 563 को भगवान गौतम बुद्ध का जन्म हुआ था। इसके साथ ही 528 ईसा पूर्व वैशाख पूर्णिमा को ही उन्हें बोधगया में वृक्ष के नीचे ज्ञान की प्राप्ती हुई थी। यह भी माना जाता है कुशीनगर में वैशाख पूर्णिमा के ही दिन उन्होंने 80 वर्ष की उम्र में देह का त्याग किया था। बुद्ध के देह त्यागने पर उनकी अस्थियां को आठ भागों में विभाजित किया। जिन पर आठ स्थानों पर 8 स्तूप बनाए गए थे। एक स्तूप उनकी राख और एक स्तूप उस घड़े पर बना था। जिसमें अस्थियां रखी थीं। वहीं नेपाल के कपिलवस्तु में बने स्तूप में रखी अस्थियों के बारे में माना जाता है वे गौतमबुद्ध की ही हैं। लुम्बिनी के बारे में कहा जाता है यह उत्तर प्रदेश के ककराहा गांव से 14 मील और नेपाल-भारत सीमा से सटा है। इस रुमिनोदेई नामक गांव को ही लुम्बिनी माना जाता है जहां गौतम बुद्ध का जन्म हुआ था। बोधगया, यह स्थान बिहार के प्रमुख हिंदू पितृ तीर्थ गया में स्थित है। यहां बुद्ध को एक वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ था। सारनाथ ,यह जगह उत्तरप्रदेश के वाराणसी के पास है। जहां बुद्ध ने ज्ञान हासिल करने के बाद अपना पहला उपदेश यहीं दिया था। यहीं से उन्होंने धम्मचक्र प्रवर्तन प्रारंभ किया था। कुशीनगर भी उत्तरप्रदेश के देवरिया जिले में स्थित है। इसी जगह पर महात्मा बुद्ध का महापरिनिर्वाण यानी मोक्ष हुआ था। गोरखपुर जिले में कसिया नामक जगह ही प्राचीन कुशीनगर है। यहां पर बुद्ध के 8 स्तूपों में से एक स्तूप बना है। जहां बुद्ध की अस्थियां रखी थीं। जबकि श्रावस्ती, स्तूप बहराइच से पन्द्रह किमी दूर सहेठ-महेठ नामक गांव को ही प्राचीन श्रावस्ती कहा जाता है। यहां बुद्ध लंबे समय तक रहे थे। इस स्थान पर 27 साल तक भगवान बुद्ध ने गुजारे। यहां भगवान बुद्ध ने नास्तिकों को सही दिशा दिखाने के लिए कई चमत्कार किए थे। चमत्कारों में बुद्ध ने अपने कई रूपों के दर्शन करवाए थे। आज यहां बौद्ध धर्मशाला बनी है।